आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
चरित्रप्रदा
चरित्र को, आचरण को प्रशंसा योग्य बनाने में गायत्री माता बड़ा योग देती हैं। दुराचार से मन हटता है और सदाचार में प्रवृत्ति होती है। माता का अनुग्रह जिसे प्राप्त होता होगा वह चरित्र का धनी बनता जाएगा। पराई बहिन-बेटी को अपनी बहिन-बेटी से बढ़कर मानना, पराए पैसे को ठीकरी के समान समझना, दूसरों के सुख-दु:ख में अपने सुख-दु:ख की अनुभूति करना यह तीन विशेषताएँ उसके चरित्र में अधिकाधिक बढ़ती जाती हैं। आचार और विचार दोनों से मिलकर चरित्र बनता है। मातृभक्त न तो अशुद्ध विचार करता है और न दुष्कर्मों की ओर कदम बढ़ाता है।
ऊपर गायत्री माता के गुणों और उनकी उपासना से विकसित होने वाले गुणों का संक्षिप्त विवरण दिया है। ऐसे-ऐसे हजारों गुण और शक्तियाँ उनमें सन्निहित हैं। उन्हें चंद्रमाश्चन्दनप्रिया, छत्रधरा, छिद्रोपद्रवभदिनी, जातवेदा, जितेंद्रिया, जितक्रोधा, जगतीजरा, ज्वरघ्नी, जितविष्टपा, झिंझिका, झल्लरी, डामरी, डिंडीरवसहा, ढक्कहस्ता, ढिलिव्रजा, नित्यज्ञाना, त्रिगुणा, त्रिपदा, तरुणातरु, तुरीयपदगामिनी, तुहिनातुरा, तनुमध्या, त्रिविष्टपा, तित्तरी, तरुणाकृति, तप्तकांचनभूषणा, त्रिकालज्ञानदायिनी, वृप्तिदा, दोहिनी, दीनवत्सला, देवयानी, दिग्वासा. दंडिनी, देवपूजिता, धात्री, धर्मचारिणी, धर्मशाला, धृतिर्धन्या, धूमकेशी, नन्द-प्रिया, नित्यशुद्धा, निरंजना, नीलग्रीवा, परमोदारा, परतेज:प्रकाशिनी, पावनी, पवनाशिनी, प्रज्ञावती, पयस्विनी, पृथुजंघा, पिंगाक्षी, प्रणवागति, पुण्यभद्रा, पाटली, पूर्णाशा, फलदा, फलकाकृति, बाल-बाला, बहुमता, बालभानुप्रभाकारा, बीजरूपिणी, बहुविक्रमा, बिंदुदर्पणाभृगुलता, भार्गवी, भुवनेश्वरी, भूतधात्री, भीमा, भागधेयिनी, महादेवी, मधुमती, मधुमासा, मंदोदरी, मुद्रा, मलया, मागधी, मातृका, मिहिराभासा, मुग्धा, मृगाक्षी, याजुषी, यंत्ररूपिणी, यातुधानभयंकरी, रोहिणी, राकेशी, रत्नमालिका, ललिता, तुरतविषा, लोकधारिणी, वाराही, विरजा, वर्षा, शोभावती, शुभाशया, शुभ्रा, श्रीमती, षड्भाषा, सर्वज्ञा, सोमसंहिता, सद्गुणा, हिरण्यवर्णा, हंसवाहिनी, क्षोमवस्त्रा, क्षमा आदि नाम और विषयों से भी पुकारते और पूजते हैं। इन नामों में जहाँ उनके गुणों का बोध कराया जाता है वहाँ उनमें शारीरिक, मानसिक, औद्योगिक, आर्थिक, सामाजिक, लौकिक, पारलौकिक सुख-संपदाओं का ज्ञानविज्ञान भी भरा हुआ है।
गायत्री उपासक इन कर्मों को उपासना काल से जानने लगते हैं। यदि कोई न भी बताए तो भी नैतिक उपासक इन गुणों, शक्तियों और वरदानों से स्वयमेव लाभान्वित होता चला जाता है। जिनकी श्रद्धा, निष्ठा अधिक प्रगाढ़ नहीं होती वे प्रारंभ में उतने लाभ प्राप्त नहीं करते तो भी गायत्री मंत्र की विलक्षणता यही है कि उपासक की श्रद्धा भी दिनों-दिन स्वयमेव प्रगाढ़ होती जाती है और वह उपर्युक्त गुणों को भगवती गायत्री में यथार्थ सार्थक हुआ पाता है।
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