आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
अरिषड् वर्गभेदिनी
(१) काम, (२) क्रोध, (३) लोभ, (४) मोह, (५) मद, (६) मत्सर यह छः वास्तविक शत्रु माने गए हैं। सांसारिक शत्रु तो कुछ देर के लिए थोड़ी आर्थिक या शारीरिक हानि ही पहुँचा सकते हैं, पर यह आंतरिक शत्रु दिन-रात साथ रहने के कारण लोक और परलोक दोनों ही नष्ट कर डालते हैं। अंतःकरण की शांति, सदाशयता, सद्भाव, सत्प्रवृत्तियाँ सभी कुछ इन शत्रुओं द्वारा तहस-नहस करके उनके स्थान पर भय, रोग, शोक, चिंता, द्वेष-क्लेश, कुढ़न, असंतोष तथा नाना प्रकार की उलझनें, दुर्गुण एवं कुसंस्कार उत्पन्न हो जाते हैं। उनका परिणाम पतन एवं नरक ही होता है। गायत्री शक्ति का आविर्भाव अंतःकरण में होने से यह छहों आंतरिक शत्रु दुर्बल होने लगते हैं और धीरे-धीरे वे समाप्त होते चले जाते हैं। सांसारिक शत्रुओं का भी मुकाबला जिस प्रकार कानून, दृढ़ता, चतुरता, संगठन, शास्त्रों की सहायता से तथा रोग का निवारण, चिकित्सा से किया जाता है, उसी प्रकार षड्ररिपुओं के भेदन के लिए गायत्री रामबाण है।
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