आचार्य श्रीराम शर्मा >> बोलती दीवारें (सद्वाक्य-संग्रह) बोलती दीवारें (सद्वाक्य-संग्रह)श्रीराम शर्मा आचार्य
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सद् वाक्यों का अनुपम संग्रह
उद् बोधन हेतु गेय वाक्य
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अगर रोकनी है बर्बादी,
बंद करो खर्चीली शादी। -
अधिक कमायें अधिक उगायें,
लेकिन बाँट-बाँटकर खाएँ। -
अधिकारों का वह हकदार,
जिसको कर्तव्यों से प्यार। -
अनाचार बढ़ता है कब,
सदाचार चुप रहता जब। -
अपना-अपना करो सुधार,
तभी मिटेगा भ्रष्टाचार। -
अपनी गलती आप सुधारें,
अपनी प्रतिभा आप निखारें। -
अहं प्रदर्शन झूठी शान,
ये सब बचकाने अरमान। -
इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य।
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ईश न्याय दृढ़ खरा अटल,
वहाँ न रिश्वत-घूस सफल। -
ईश्वर के घर लगती देर,
किन्तु नहीं होता अन्धेर। -
ईश्वर तो है केवल एक,
लेकिन उसके नाम अनेक। -
ईश्वर ने इन्सान बनाया,
ऊँच-नीच किसने उपजाया। -
ईश्वर बंद नहीं है मठ में,
वह तो व्याप रहा घट-घट में। -
एक पिता की सब संतान,
नर और नारी एक समान। -
एक बनेंगे नेक बनेंगे,
स्वस्थ बनेंगे सभ्य बनेंगे। -
कथनी करनी भिन्न जहाँ है,
धर्म नहीं, पाखण्ड वहाँ है। -
कदम क्रान्ति के नहीं रुकेंगे,
बेटे-बेटी नहीं बिकेंगे। -
करते वही राष्ट्र उत्थान,
जिनको है चरित्र का ध्यान। -
करते वृक्ष प्रदूषण दूर,
देते हैं वर्षा भरपूर। -
करो नहीं ऐसा व्यवहार,
जो न स्वयं को हो स्वीकार। -
कौन हरे धरती का भार,
निष्कलंक प्रज्ञावतार। -
खोजें सभी जगह अच्छाई,
ऐसी दृष्टि सदा सुखदायी। -
गंदे चित्र लगाओ मत,
नारी को लजाओ मत। -
गंदे फूहड़ गीत न गाओ,
मर्यादा समझो, शरमाओ। -
गंदे फूहड़ चित्र हटाओ,
माँ-बहिनों की लाज बचाओ। -
गन्दे गाने गाओ मत,
नारी को लजाओ मत। -
गन्दे गाने गाओ मत,
बच्चों को भटकाओ मत। -
घर में टंगे हुए जो चित्र,
घोषित करते व्यक्ति-चरित्र। -
चाटुकार को जिसने पाला,
उस नेता का पिटा दीवाला। -
चित्र काव्य संगीत कला,
रहें स्वस्थ, है तभी भला। -
जनमानस बदलेंगे कौन,
जो कर सकते सेवा मौन। -
जब तक नहीं चरित्र विकास,
तब-तब कर्मकाण्ड उपहास। -
जहाँ जन्म से जाति जुड़ी है,
वहाँ मनुजता ध्वस्त पड़ी है। -
जहाँ हृदय परमार्थ परायण,
वहाँ प्रकट नर में नारायण। -
जागो शक्तिस्वरूपा नारी,
तुम हो दिव्य क्रान्ति चिनगारी। -
जाति पाति का घातक रोग,
करता विफल एकता योग। -
जाति-पाँति का घातकरोग,
करता विफल एकता-योग। -
जाति-वर्ण जंजाल जहाँ है,
समता नहीं बवाल वहाँ है। -
जिसने बेच दिया ईमान,
उनका करें नहीं गुणगान। -
जिसने बेच दिया ईमान,
करो नहीं उसका गुणगान। -
जीव और वन से जीवन है,
बस्ती का जीवन उपवन है। -
जीवन उनका बना महान् ,
जिनका हर क्षण रत्न समान। -
जीवन यज्ञ विश्व हित धर्म,
आहुतियाँ दैनिक शुभ कर्म। -
जुआ खेलने का यह फल,
रोते फिरे युधिष्ठिर-नल। -
जेवर नहीं बैंक का खाता,
संचित धन को सफल बनाता। -
जैसी करनी वैसा फल,
आज नहीं तो निश्चय कल। -
जो उपहास-विरोध पचाते,
वे ही नया कार्य कर पाते। -
जो करता है आत्म सुधार, मिलता उसको ही प्रभु प्यार।
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जो कुछ बच्चों को सिखलाते, उसे स्वयं कितना अपनाते?
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जो न कर सके जन कल्याण, उस नर से अच्छा पाषाण।
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दुर्गुण त्यागो बनो उदार, यही मुक्ति सुरपुर का द्वार।
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दुर्व्यसनों से पिण्ड छुड़ायें, स्वस्थ बनें सुख-संपत्ति पायें।
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धनबल जनबल बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बेकार।
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धर्मक्षेत्र में पूज्य वही नर, त्यागे लोभ स्वार्थ आडम्बर।
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धुत्त नशे में जो रहता है, संकट खड़े रोज करता है।
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नशा नाश की जड़ है भाई, इससे दूर रहो हे भाई।।
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नशा बड़ा ही है शैतान, हमें बना देता हैवान।
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नशे को दूर भगाना है, खुशहाली को लाना है।
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नारियो जागो-अपने को पहचानो।
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नारी का असली श्रृंगार, सादा जीवन उच्च विचार।
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नारी का सम्मान जहाँ है, संस्कृति का उत्थान वहाँ है।
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नारी के हैं रूप अनेक, ब्रह्मा, विष्णु और महेश।
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नियमित और संयमित जीवन, हमको देता है चिर यौवन।
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परम्पराएँ नहीं प्रधान, हो विवेक का ही सम्मान।
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परहित सबसे ऊँचा कर्म, ममता-समता मानव धर्म।
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पशुबलि झाड़ फेंक जंजाल, इनसे बचे वही खुशहाल।
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पाण्डव पाँच हमें स्वीकार, सौ कौरव धरती के भार।
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पिटती पत्नी बिकते जेवर, छोड़ शराबी ऐसे तेवर।
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पुलिस-अदालत है आसान, किन्तु अटल है ईश विधान।
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पूत-सपूत वही कहलाता, जो स्वदेश का मान बढ़ाता।
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प्रजनन रोकें वृक्ष लगायें, शिक्षा औ सहकार बढ़ायें।
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प्रभु के बेटे प्रेम सिखाते, निहित स्वार्थ दंगे भड़काते।
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फूहड़ गाने, गंदे चित्र, इनसे दूर रहो हे मित्र।
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बढ़ते जिससे मनोविकार, ऐसी कला नरक का द्वार।
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बना इंद्रियों का जो दास, उसका कौन करे विश्वास।
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बने युवक सज्जन शालीन, दें समाज को दिशा नवीन।
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बनो न फैशन के दीवाने, करो आचरण मत मनमाने।
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बहुत सरल उपदेश सुनाना, किन्तु कठिन करके दिखलाना।
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भारत माँ की असली जय, शोषित-दलित समाज उदय।
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मंदिर में युगधर्म पले, जन जागृति की ज्योति जले।
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मदिरा पीने में क्या शान, गली-गली होता अपमान।।
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मदिरा, मांस, तामसी भोजन, दूषित करते तन-मन-जीवन।
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महाकाल की यही पुकार, बन्द करो सब भ्रष्टाचार।
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मांस मदिरा बीड़ी-पान, असुर तत्त्व की है पहचान।
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मान मिटा संपत्ति नशानी, नशेबाज की यही कहानी।
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मानव मात्र एक समान, एक पिता की सब संतान।
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मानवता की ज्योति जलाएँ, जाति-धर्म मत-भेद भुलाएँ।
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मानवता की यही पुकार, रोको नारी अत्याचार।
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मानवता के दो आधार, सादा जीवन उच्च विचार।
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मानव-समता के प्रिय मानक, बुद्ध मुहम्मद ईसा नानक।
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मिलता है उसको प्रभु प्यार, जो करता है आत्म-सुधार
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यदि सुख से चाहो तुम जीना, कभी भूलकर मद्य न पीना।
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यही सिद्धि का सच्चा मर्म, भाग्यवाद तज करो सुकर्म।
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रहे जहाँ नारी सम्मान, बनता है वह देश महान्।
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लकड़ी छाया दवा फूल फल, देते वृक्ष विशुद्ध वायु-जल।
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लघु सेवा तरु हमसे लेते, अमित लाभ जीवन भर देते।
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लोभ स्वार्थ भोजन का धंधा, करता धर्मक्षेत्र को गंदा।
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वन रोपें, उद्यान लगाएँ, हरा-भरा निज देश बनाएँ।
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वन-उपवन कह रहे पुकार, देते हम जल की बौछार
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वही दिखाते सच्ची गृह, जिन्हें न पद्-पैसे की चाह।
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वही व्यक्ति है चतुर सुजान, जिसकी हो सीमित संतान।
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वही व्यक्ति है सच्चा संत, जिसके स्वार्थ अहं का अन्त।
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वृक्ष और हितकारी सन्त, हैं इनके उपकार अनन्त।
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वृक्ष प्रदूषण-विष पी जाते, पर्यावरण पवित्र बनाते।
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वृक्ष सभी का स्वागत करते, दे फल-फूल पंथ-श्रम हरते।
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वृक्षारोपण कार्य महान्, एक वृक्ष दस पुत्र समान।
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वृक्षारोपण युग अभियान, प्रजनन-संयम पुण्य महान्।
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व्यसनों की लत जिसने डारी, अपने पैर कुल्हाड़ी मारी।
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शासक जहाँ चरित्र विहीन, वहीं आपदा नित्य नवीन।
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शिक्षा समझो वही सफल, जो कर दे आचार विमल।
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शिल्पी-श्रमिक-किसान-जवान, ये हैं पृथ्वी पुत्र महान्।
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शुभ अवसरका भोजन ठीक, मृतक-भोज है अशुभ अलीक।
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शुभ शासककी यह पहिचान, शोषक शमन सृजन सम्मान।
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संकट हो या दु:ख महान्, हर क्षण ओठों पर मुस्कान।
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संभाषण के गुण हैं तीन, वाणी सत्य सरल शालीन।
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सतयुग आयेगा कब, बहुमत चाहेगा जब।
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सद्गुण है सच्ची संपत्ति, दुर्गुण सबसे बड़ी विपत्ति।
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सद्गुण है सच्ची संपत्ति, दुर्गुण सबसे बड़ी विपत्ति।
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सद्गृहस्थ का साधक जीवन, संयम-सेवा भरा तपोवन।
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सफल ज्ञान का फल आचार, कोरा ज्ञान बुद्धि का भार।
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सही धर्म का सच्चा नारा, प्रेम एकता भाई चारा।
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सात्विक भोजन जो करते हैं, रोग सदा उनसे डरते हैं।
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सिर अनीति को नहीं झुकाएँ, चाहे प्राण भले ही जाएँ।
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सिर पर बाँध कफन लड़ेंगे, दुष्वृत्तियाँ दफन करेंगे।
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सुधरें व्यक्ति और परिवार, होगा तभी समाज सुधार।
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सोचो समझो बचो नशे से, जीवन जियो बड़े मजे से।
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हँसना सीखें सृजन विचारें, आशा रखें भविष्य सुधारें।
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हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा।
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हम बदलेंगे युग बदलेगा, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा।
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हमारा है यह लक्ष्य महान्, बने यह धरती स्वर्ग समान।
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हर नारी देवी कहलाए, अबला क्यों ? सबला कहलाए
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हरियाली भूतल-श्रृंगार, जहाँ वृक्ष हैं, वहीं बहार।
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