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आचार्य श्रीराम शर्मा >> बाल नीति शतक

बाल नीति शतक

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15474
आईएसबीएन :00000

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बच्चों में ऊर्जा और उत्साह भर देने वाली कविताएँ और संदेश

भेड़िया और बकरी

एक बार की बात है, कालू भेड़िया अपने घर जा रहा था। वह शेर से लड़कर आ रहा था इसलिए गुस्से में भरा था। चलते-चलते अंधेरा भी हो गया था। रास्ते में एक जगह कुंआ पड़ता था। पर गुस्से में होने के कारण भेड़िये को यह ध्यान ही न रहा। गुस्से में बहुत से गलत काम हो जाते हैं। बहुत हानि हो जाती है। कालू को भी कुएं का ध्यान नहीं रहा। उसका पैर कुएं के ऊपर पड़ गया। कालू कुएं में गिर गया।

कुएं में पानी अधिक नहीं था। जैसे-तैसे कालू ने वहां रात बिताई। सुबह से ही उसने चिल्लाना शुरू कर दिया-‘‘कोई मुझे कुएं से निकाल लो ! मुझे कुएं से निकाल लो।' पर किसी ने उसे निकाला नहीं। ऐसी बात नहीं थी कि वहां कोई नहीं था। शेर, गीदड़, लोमड़ी, हाथी, ऊँट सभी उस जगह से गए थे। सभी ने कालू, भेड़िये की आवाज भी सुनी थी। पर सभी यह कहते हुए चले गए कि तुम तो सभी से लड़ते-झगड़ते रहते हो ! तुम कभी किसी की सहायता नहीं करते। फिर हम ही तुम्हें क्यों निकालें ? उन्हें डर भी था कि यदि वे भेड़िये को निकालेंगे तो वह उन्हें ही काट खाएगा।

कालू बड़ी देर तक कुएं में पड़ा-पड़ा रोता चिल्लाता रहा। एक रंजू बकरी भी उसी रास्ते से जा रही थी। उसने भी भेड़िए की आवाज सुनी। रंजू ने इधर उधर देखा। उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया। रंजू बकरी ने पूछा-'तुम कौन हो, कहां से बोल रहे हो ?”

कालू चिल्लाया-'दीदी ! मैं यहां कुएं में हूं। मुझे जल्दी निकालोI नहीं तो मैं डूब जाऊंगा।'

रंजू को दया आ गई। वह दौड़ी दौड़ी अपने घर गई। वहां से एक मोटी रस्सी लाई। रंजू ने रस्सी का एक सिरा पकड़ा और एक कुएं में लटका दिया। फिर बोली-'कालू भइया ! तुम जल्दी से रस्सी का सिरा पकड़कर ऊपर आ जाओ। में दूसरा सिरा पकड़े यहां खड़ी हूं।'

भेड़िया रस्सी पकड़ कर धीरे-धीरे ऊपर तक आया। पर यह क्या-कालू, भेड़िये का हल्का सा धक्का लगा, रंजू संभल न पाई और कुएं में गिर पड़ी। वह कुएँ के अंदर ये चिल्लाई-'कालू भइय्या ! जल्दी निकालो! नहीं तो में डूब जाऊंगी।'

पर कालू बड़ा स्वार्थी था। अपनी जान बचाने वाली बकरी की भी उसने परवाह न की। उसने बहाना बनाया 'रात भर कुएं में रहने से मेरे हाथ जकड़ गए हैं। मैं तुम्हें निकाल नहीं सकता।' कालू सोच रहा था कि बकरी मरे तो मर जाए, मुझे इससे क्या ? मैं तो बच ही गया।

बकरी कालू की चालाकी समझ गई। वह बोली- दुष्ट कालू ! सब ठीक कहते हैं कि तू बड़ा स्वार्थी है। तुझे बचाने के कारण मैं कुएं में गिरी, पर तुझे मेरी जरा भी परवाह नहीं। तू न बचाए तो न सही। मुझे निकालने वाले बहुत आ जाएंगे। मैं तो दूध देती हूं, सभी को पिलाती हूं। सभी का उपकार करती हूं। तू ही नीच है जो किसी के काम नहीं आता। सबको हानि पहुंचाता है। इसलिए किसी ने तेरी सहायता नहीं की।’

कालू तो चला गया। थोड़ी देर बाद एक आदमी उधर से निकला। उसने बकरी के मिमियाने की आवाज सुनी। आदमी ने पूछा- ‘तू कहां से बोल़ रही है ?'

‘मैं यहां कुएं में हूं।' बकरी बोली।

आदमी ने सोचा, यह तो बड़े काम की है।

इसे देखकर मेरे बच्चे खुश होंगे। यह दूध देगी। उसने जल्दी से बकरी को निकाल लिया। बाहर आकर बकरी बोली-‘काका ! मैं तुम्हारी कृतज्ञ हूं। तुमने मेरी जान बचाई।'

आदमी ने पूछा कि वह कुएं में कैसे गिरी थी। बकरी ने सारी घटना बताई। 

आदमी बोला-'तू तो बहुत अच्छी है। चल मेरे साथ घर चल। वह बकरी को अपने घर ले गया। वहां बकरी उसके बच्चों के साथ खेलती रहती थी। खूब खाती-पीती थी। खूब काम करती थी। 

इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि जो भेड़िये की तरह दूसरों को हानि पहुँचाता है, किसी की सहायता नहीं करता, उसे कोई नहीं चाहता। जो बकरी की तरह दूसरों को लाभ देता है, अच्छे काम करता है, वह सुखी रहता है। यह शिक्षा भी मिलती है कि मीठी बातें बोलकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले भी दुनिया में कम नहीं हैं अतः प्रत्येक व्यक्ति से समझकर ही व्यवहार करना चाहिए।

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