आचार्य श्रीराम शर्मा >> बाल नीति शतक बाल नीति शतकश्रीराम शर्मा आचार्य
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बच्चों में ऊर्जा और उत्साह भर देने वाली कविताएँ और संदेश
बाल-नीति शतक
देखो बच्चो एक है, दुनियां का भगवान।
और बनाए एक से, उसने सब इंसान ॥1॥
हे बच्चो ! जिसने यह सृष्टि बनाई है, वह ईश्वर एक ही है और उसने मनुष्य एक से ही बनाए हैं। 1 ।
दु:ख में सब होते दुखी, सुख में हँसते साथ।
सबके दो-दो पैर हैं, सबके दो-दो हाथ ॥ 2 ॥
इसीलिए सुख तथा दुख की अनुभूति सबको एक जैसी होती है और इन भावनाओं को वे साथ-साथ ही भोगना चाहते हैं। सबके दो हाथ, दो पैर, मुंह, सिर, पेट आदि देकर एक सा शरीर बनाया है।
सबमें उसकी शक्ति ही, करती हास-विलास।
प्राण उसी का मिल रहा, लेते हैं जब श्वांस ॥3॥
हम लोग जो जीवित हैं, वह उसी की शक्ति से। वायु में उसका ही प्राण तत्व घुला है जो हम सबको सांस के साथ मिलता है और हम जीवित रहते हैं।
सब बच्चे हैं वह पिता, भाई-बहिन समान।
सभी मानवों में अत:, हो उसका ही भान ॥4॥
वह सबका पिता है, हम सब उस के बच्चे हैं और इस तरह सब आपस में भाई-बहिन हैं ! हमें चाहिए कि सभी मनुष्यों में उसकी ही उपस्थिति का एहसास करें।
पीर एक की दूसरे, को पहुँचाए त्रास।
दर्द सभी समझें अगर, लगे एक को फांस ॥5॥
इसी नाते हमें एक दूसरे का दुख-दर्द अपना ही समझकर महसूस करना चाहिए। यदि एक व्यक्ति को को चोट लगे या कष्ट हो तो सभी उसे समझें, अनुभव करें।
मिलकर रहने का सुनो, सबसे बड़ा रहस्य।
विश्व एक परिवार है, उसके सभी सदस्य ॥6॥
मिल-जुल कर रहें यह तब सफल हो जाएगा जब हम यह समझने लगेंगे कि यह सारा संसार ही एक परिवार के समान है और हम सब उस एक बड़े परिवार के ही सदस्य-परिजन हैं।
विकसित हो यह भावना, यदि हम सबके बीच।
कोई दिखे न फिर बड़ा, कोई लगे न नीच ॥7॥
और यदि यह समानता की भावना हमारे मन में समा गई तो हमें कोई छोटा और कोई बड़ा दिखाई नहीं देगा।
अलग-अलग रहकर बने, रेती या व्यक्तित्व।
मिलकर रहने से बने, पर्वत सा अस्तित्व ॥8॥
अलग-अलग रहने से हम रेत के कणों के समान बिखर जाते हैं और एक साथ मिलकर रहने से पहाड़ जैसे मजबूत दीखते हैं। यानी हम सबको हिलमिल कर रहना चाहिए। कभी आपस में झगड़ना नहीं चाहिए।
तिनके मिल झाडू बनें, बूंद-बूंद मिल सिन्धु।
रेशे मिल रस्सी बनें, शब्द शब्द मिल छंद ॥9॥
यह प्रक्रिया उसी तरह है जैसे तिनका अकेला रहे तो बहुत कच्चा और कमजोर है और वे ही जब बहुत से मिल कर एक साथ बांध दिए जाते हैं तो झाड़ू बन जाती है। पानी की बूंद अकेली कुछ अस्तित्व नहीं रखती, हाल सूख जाती है, किंतु वे ही बूंदें मिलकर समुद्र भी बन जाती हैं। इसी प्रकार डोरे का एक रेशा अपने आप में कुछ नहीं है, पर उन्हें मिलाकर बट लेते हैं तो मजबूत रस्सी बन जाती है जिससे हम बड़ी से बड़ी चीज बांध सकते हैं। ऐसे ही एक शब्द की अपने आप में बहुत कम सामर्थ्य होती है परंतु बहुत सारे शब्द मिलकर छंद बन जाता है जो एक निश्चित अर्थ तथा आनंद देता है।
हर भौतिक उपलब्धि का, मिलकर हो उपयोग।
प्रेम न आपस का घटे, दुःख हो शोक कि रोग ॥10॥
इसीलिए हमें जो भी मिले उसका मिल-बांटकर उपयोग करना चाहिए चाहे वह दुख हो, उदासी हो या रोग ही क्यों न हो। मिलकर ही वह समय काटना चाहिए। रोग बंटाने से मतलब है-रोगी की सेवा करना और यह सब करें भी पूरे प्रेम से। प्रेम कम न हो पाए।
आपस का यह प्रेम ही, सर्वोत्तम सम्पति।
मिलकर हो जाती सरल, कोई भी आपत्ति ॥11॥
यह आपस का प्रेम ही संसार की सबसे बड़ी चीज है, क्योंकि प्रेम से मिलकर उठाने पर बड़ी से बड़ी मुसीबत भी सरल हो जाती है।
गलती कोई भी करे, उसे सुधारा जाय।
दोषी भाई के लिए, घृणा न मन में आय ॥12॥
यदि हमारे किसी भाई से कोई गलती भी हो जाए तो हम उसे सुधारें। उससे घृणा कभी न करें बल्कि उसे सुधारें।
कोई भी उन्नति करे, हों हम सभी प्रसन्न।
पिछड़े को आगे करें, कोई न दिखे विपन्न ॥13॥
हममें से कोई भी उन्नति करके आगे बढ़ता है तो हमें खुश होना चाहिए। प्रगति करने में जो पीछे रह गया है उसे भी हम आगे बढ़ाएं - उसके सहायक बनें तो फिर कोई भी पिछड़ा या दीन हीन नहीं दीखेगा।
शीश अयोध्या को झुके, अपना बारम्बार।
जहां त्याग और प्रेम की, बहती सुरसरि धार ॥14॥
अयोध्या को हम बार-बार प्रणाम करें क्योंकि वहां राम तथा भरत ने परस्पर राज्य का त्याग करके एक अनूठे प्रेम का उदाहरण रखा था। मानो त्याग और प्यार की गंगा ही बहाई थी।
सबसे मोठा बोलना, है गौरव की बात।
मृदु भाषी को प्यार की, मिली सदा सौगात ॥15॥
हम सभी से मीठी भाषा के बोलने में अपना गौरव समझें। मधुर बोलने वाले को सब प्यार करते हैं।
कड़वा जो बोले उसे, कौआ कहते लोग।
मधुर बोलना मानते, कोयल स्रा संयोग ॥16॥
कटु बोलने के कारण ही कौवा इतना बदनाम है, मीठा बोलने के कारण कोयल सबसे प्रशंसा पाती है।
सबके प्रति मन में रहे, एक प्यार का भाव।
दूर दुष्टता से रहें, उसका हो न प्रभाव ॥17॥
हम सभी से समान रूप से प्यार की भावना के साथ व्यवहार करें और दुष्टता-बुराई से कोसों दूर रहें।
दें न किसी को भी कभी, हम थोड़ा भी कष्ट।
वस्तु काम की हो उसे, करें नहीं हम नष्ट ॥18॥
हमारे द्वारा किसी को भी जरा भी कष्ट न पहुंचने पाए इसका ध्यान हमें हमेशा रखना चाहिए। इसी प्रकार जो वस्तु उपयोगी हो उसे कभी नष्ट नहीं करना चाहिए।
सबके प्रति हम हृदय में, रक्खें सेवा भाव।
सज्जनता, शालीनता, के प्रति रखें झुकाव ॥19॥
सभी की सेवा करने की भावना हमारे मन में हमेशा रहनी चाहिए तथा हमारी प्रवृत्तियां हमेशा शालीनता एवं सज्जनता की बातें सीखने में लगें।
भला न टेढ़ा बोलना, भली न टेढ़ी बात।
टेढ़े होने पर घटी, शशि की भी औकात ॥20॥
हम ऐसी आड़ी-टेड़ी बात कभी न बोलें जो किसी को बुरी लगे। उसी प्रकार जिस प्रकार कि चंद्रमा के गोल होने पर वह सबको अच्छा भी लगता है और उसकी पूजा भी की जाती है लेकिन वही जब उगते समय शुरु की तिथियों में टेढ़ा दीखता है तो उसका वह महत्व नहीं रहता।
जगतपिता को बालको, नित उठ कटो प्रणाम।
आत्म शक्ति देता वही, जिससे होते काम ॥21॥
हे बच्चो ! सुबह सोकर उठने के बाद ईश्वर को प्रणाम अवश्य करना चाहिए। इससे जो आशीर्वाद मिलता है उससे हमें आत्मबल मिलता है जिससे हमारे सब काम पूरे होते हैं।
माता, पिता व ज्येष्ठ जन, इन्हें नवाओ शीश।
सुख, समृद्धि औ सफलता के पाओ आशीष ॥22॥
माता-पिता को तो प्रणाम करो ही साथ ही घर के सभी अपने से बड़े व्यक्तियों को भी प्रणाम करो ! इससे सुखी रहेंगे, समृद्धि तथा सफलता पाने के आशीर्वाद मिलते हैं।
सबसे पहले स्वच्छता, का रखना है ध्यान।
सभ्य बालकों की यही, है पहली पहचान ॥23॥
हम लोग सभ्य समाज में रहते हैं तो हमें सबसे पहले सफाई का ध्यान रखना चाहिए। हमारा घर, शरीर तथा उपयोग की प्रत्येक वस्तु हमेशा साफ रहनी चाहिए।
कपड़े पहनें साफ हम, हरेक वस्तु चमकाएँ।
मन भी इतना साफ हो, कि किसी को न सताएँ ॥24॥
हम अपनी सारी चीजों को तो चमका कर साफ करें ही साथ, कपड़े भी सदा साफ पहनें और साथ ही अपने मन को भी बहुत उज्ज्वल बनाएं अर्थात् किसी को कभी कष्ट न दें हमेशा सब का भला हो करें।
खेल बाद में है सखे, पहले शाला-कार्य।
घर में छोटे कार्य भी, करने हैं अनिवार्य ॥25॥
हमको पहले अपना स्कूल का काम (होम वर्क) करना तथा पढ़ना चाहिए। उसके बाद ही खेलना चाहिए। घर के अन्य छोटे मोटे काम भी आवश्यक रूप से खुद ही करना चाहिए।
चलें नियम से हम सदा, घर हो या स्कूल।
रहे याद हर काम का, समय न जाएँ भूल ॥26॥
घर की व्यस्तता हो या स्कूल का अनुशासन हमें सदा नियम से चलना चाहिए तथा किसी काम का समय नहीं भूलना चाहिए।
गुरुजन के प्रति हृदय में, रहे सदा सम्मान।
उनसे ही मिलता हमें, जीवन व्यापी ज्ञान ॥27॥
हमें अपने गुरुजनों, शिक्षकों के प्रति हमेशा आदर की भावना रखनी चाहिए क्योंकि उनसे हमें जो ज्ञान मिलता है वह सारे जीवन हमारे काम आता है।
जिसने दी शिक्षा हमें, बहुत बड़ा वह व्यक्ति।
उसे झुकाएं शीश हम, रखें हृदय में भक्ति ॥28॥
जो हमें शिक्षा तथा ज्ञान देता है उस व्यक्ति का स्थान बहुत ऊंचा होता है। हमें चाहिए कि हम सदा उसके सामने शीश झुकाएं अर्थात् विनम्र रहें तथा उसके प्रति अपने मन में भक्ति की भावना रखें।
पहली सीढ़ी ज्ञान की, यह ही अक्षर ज्ञान।
इस पर चढ़कर ही मिले, कला और विज्ञान ॥29॥
प्रारंभ में हमें जो अक्षर ज्ञान मिलता है वही प्रत्येक ज्ञान, कला तथा विद्या को प्राप्त करने का प्रथम सोपान होता है।
अनुशासित हो, उचित हो,जीवन का हट काम।
इमली में इन्मली लणे, व्लणे आम में आम ॥30॥
हमारा प्रत्येक काम व्यवस्थित तथा नियमित होना चाहिए जिस प्रकार कि इमली हो या आम जिसका पेड़ होता है उस में वही फल लगता है।
ऋतुएं आती नियम से, क्रम से उगते फूल।
जीवन-क्रम-निर्वाह में, हमसे बने न भूल ॥31॥
जिस प्रकार प्रत्येक ऋतु अपने नियम तथा क्रम से आती तथा जाती है। हर तरह के फूल अपने मौसम में ही खिलते हैं उसी प्रकार हमारे जीवनक्रम का हर काम नियमित तथा व्यवस्थित होना चाहिए।
सबसे पहले हम बनें, बुद्धिमान विद्वान।
यही बड़ी चीजें सखे ! छोटा है धनवान ॥32॥
हमें सबसे पहले खूब पढ़-लिखकर विद्वान तथा बुद्धिमान बनना चाहिए। धनवान बनने के चकर में समय तथा शक्ति नष्ट नहीं करना चाहिए क्योंकि विद्या, बुद्धि, धन से बहुत बड़ी चीज होती है।
फूलों के जैसा बने, हम बच्चों का रूप।
सद् गुण की खुशबू उड़े, मनहर और अनूप ॥33॥
हमारा व्यक्तित्व फूलों जैसा कोमल, सुंदर तथा सुगंधित बनना चाहिए। हमारे अच्छे गुणों की मनोहारी एवं अनुपम सुगंध चारों ओर फैलनी चाहिए।
सबके मन को शांति दें, और नया उल्लास।
खुश हो जाए व्यक्ति जो, आए हमारे पास ॥34॥
हम सबके हृदय को शांति तथा आनंद बांटें। जो कोई भी हमारे पास आए वह प्रसन्नता पाकर ही लौटे।
श्रम से जी न चुराएं हम, हो कोई भी काम।
सबसे पहले काम है, थकने पर आयाम ॥35॥
हमें मेहनत से कभी घबराना नहीं चाहिए। पहले हम अपना सारा काम करें और उससे थक जाएं तभी आराम करें।
पाएँ सबका प्यार हम, और पाएँ विश्वास।
इसके हित ईमान और, सचाई हो पास ॥36॥
हमारे सब काम ऐसे हों कि सबका प्यार और विश्वास हमें मिले और यह तब संभव हो पाता है जब ईमानदारी तथा सच्चाई हमारे जीवन में हो।
खाली हों तब हम करें, कुछ रचनात्मक काम।
या अच्छी पुस्तक पढ़ें, करें नहीं आराम ॥37॥
हमको अपने फुर्सत के समय में या तो कोई अच्छा काम करना चाहिए अन्यथा अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़नी चाहिए। आराम या व्यर्थ की बातों में समय नहीं गंवाना चाहिए।
वीर बालकों के पढ़ें, हम गाथा व चरित्र।
अच्छे बच्चे ही बनें, सदा हमारे मित्र ॥38॥
उसमें भी हम वीर बच्चों या महापुरुषों की चरित्र गाथाएं पढ़ें जिससे हम भी वैसे ही बनें। हम जो अपने मित्र बनाएं वे भी अच्छे ही होने चाहिए।
हो न भूल से भी किसी, का हमसे अपमान।
सबके प्रति आदर रखें, यही हमारी शान ॥39॥
कभी भूले से भी हम से वह काम या बात न हो जिससे किसी का अपमान हो। हमारी शान यानी चरित्र की ऊचाई भी इसी में है कि हम सबके प्रति आदर तथा सम्मान का भाव रखें।
कोई बुलाए मान से, तभी वहां पर जाओ।
वैभव लखकर और का, तनिक नहीं ललचाओ ॥40॥
हमें वहीं पर जाना चाहिए जहां कोई हमें इज्जत दे कर बुलाए। खास तौर से जो पैसे वाला है उसे देखकर हमारे मन में जरा भी लालच नहीं आना चाहिए।
झूठ बोलना भी बुरा, उससे घटता मान।
सत्य बोलना ही भले, बच्चों की पहचान ॥41॥
हम कभी झूठ न बोलें क्योंकि इसी से हमारी इज्ज्त घटती है। सत्य बोलने वाले बच्चों को ही अच्छा समझा जाता है व सभी प्यार करते हैं।
छिपकर लो मत वस्तु कुछ, चोरी इसका नाम।
किया जाय छिपकर वही, बुरा कहाता काम ॥42॥
किसी से छिपकर किया जाए वही काम बुरा होता है। खास तौर से किसी की कोई चीज हम उससे छिपाकर लेते हैं तो वही चोरी होती है जो बहुत ही बड़ा अपराध भी होता है।
लालच दे कितना कोई, धोखा हम ना खायँ।
बुरे लोग हमको कभी, बहकाने ना पायें ॥43॥
हमें कोई लालच देकर बहकाने की कोशिश करे तो उस व्यक्ति की बात हमें नहीं माननी चाहिए क्योंकि ऐसे लोग धोखेबाज ही होते हैं। जो बच्चों को किसी भी चीज का लालच देकर कुछ भी काम कराते हैं कि हम तुम्हें यह देंगे, वह देंगे, तुम ऐसा कर दो, वैसा कर दो।
दिखे दूसरे का अगर, हीरा भी बेकार।
अपनी मेहनत से मिले, सिक्कों में ही सार ॥44॥
हम अपनी मेहनत से कमाई हुई संपत्ति का उपयोग करें तथा संतोष करें। दूसरे की धन संपदा देखकर न ललचाएं।
सहनशीलता वृक्ष की, है जग में विख्यात।
देता खाकर चोट भी, मधु फल की सौगात ॥45॥
संसार में वृक्ष को सहनशीलता बहुत बड़ी होती है क्योंकि लोग उसे पत्थर मारते हैं फिर भी वह हमें फलों का उपहार देता है।
खाएँ वही पदार्थ हम, जो न करे नुकसान।
सिर्फ न देखें स्वाद ही, रहे गुणों का ध्यान ॥46॥
हम कोई चीज खाते समय केवल उसके स्वाद से ही आकर्षित न हों। उस वस्तु के गुण अवगुण देखकर ही खाएं। खास तौर से वह वस्तु कभी न खाएं जो नुकसान करती हो।
देश अगर है बाग तो, हम सब उसके फूल।
हमसे बने न देश के, प्रति कोई भी भूल ॥47॥
यदि हम अपने देश को एक बगीचा मान लें तो हम उसके फूल के समान हैं। हमसे अपने देश के सम्मान के प्रतिकूल कोई काम भूल से भी नहीं होना चाहिए।
अपने देश व धर्म का, हो मन में अभिमान।
होती हर एक देश की, संस्कृति ही पहचान ॥48॥
अपने देश तथा धर्म का मन में गौरव होना चाहिए। संस्कृति ही किसी भी देश की अपनी पहचान होती है।
संत, शहीदों के लिए, मन में आदर भाव।
इनके जीवन वृत्त को, पढ़ने का हो चाव ॥49॥
अपने मन में संतों तथा शहीदों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए तथा उनके चरित्रों को पढ़ने का मन में शौक होना चाहिए।
जीवन वही महान जो, काम देश के आय।
जीवन भर सेवा करे, वक्त पड़े मिट जाय ॥50॥
मनुष्य-जो आजीवन देश के काम करे तथा समय आने पर उसके लिए अपनी जान तक दे दे, वही महान कहलाता है।
यों तो हर युग में हुए, व्यक्ति विशेष तमाम।
मिटे देश हित जो, हुआ अमर उन्हीं का नाम ॥51॥
महापुरुष तो हर जगह होते हैं, पर नाम अमर उन्हीं का होता है जो देश के लिए मिट जाते हैं।
मातृभूमि सबसे बड़ी, उसका कर्ज चुकाएँ।
रक्षा का यदि प्रश्न हो, तन-मन-धन बलि जाएँ ॥52॥
मातृभूमि सबसे बड़ी होती है। हमें चाहिए कि हम उसका ऋण उतारें। उसकी रक्षा में अपना तन, मन तथा धन भी भेंट कर दें।
पूज्यनीय है, वंद्य है, इस भारत का ज्ञान।
वेदों को सब मानते, आदि ज्ञान की खान ॥53॥
अपने भारत का ज्ञान सारी दुनियां ने ऊंचा तथा वंदनीय माना है। अपने वेदों को विश्व का सर्वप्रथम ज्ञान का आगार माना जाता है।
भारत का जग में सदा, होता आया मान।
रही यहां की संस्कृति, सबसे अधिक महान ॥54॥
भारत की संस्कृति सबसे ज्यादा ऊंची है इसीलिए संपूर्ण जग में भारत का सम्मान होता है।
संत विवेकानंद ने, दिया दिव्य सन्देश।
इस सूरज की रोशनी, पहुंची देश-विदेश ॥55॥
हमारे यहाँ संत विवेकानंद हुए हैं, उन्होंने भारत के आध्यात्मिक ज्ञान को विदेशों तक में पहुंचाया।
राष्ट्रसेवियों में बड़ा, गांधी जी का नाम।
पौरुष दिखलाया प्रबल, जब था देश गुलाम ॥56॥
राष्ट्र की सेवा करने वालों में गांधी जी का नाम सबसे बड़ा है क्योंकि उन्होंने अपनी बहादुरी से देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराया।
उनका त्याग असीम है, देश प्रेम अनमोल।
सुदृढ़ आत्म-विश्वास से, धरा गई थी डोल ॥57॥
उनका देश के लिए त्याग तथा प्रेम दोनों ही बहुत अद्भुत, विलक्षण तथा अमूल्य हैं। उनके उस विश्वास तथा पुरुषत्व से धरती तक हिल गई थी। यानी सभी के दिल दहल गए थे। अंग्रेज सरकार घबरा गई थी।
तप की भी थी शक्ति वह, जग करता है याद।
उनके बल पर ही हुआ, था भारत आजाद ॥58॥
उनके अंदर तपस्या की भी शक्ति थी जिसे अभी भी यह संसार याद करता है। उन्हीं के बल पर भारत आजाद हुआ था।
उनके जैसा आत्म-बल, अपना सभी बढ़ाएं।
अपने बापू के सभी, सच्चे पुत्र कहाएँ ॥59॥
हमें चाहिए कि उनके जैसा आत्मबल हम अपना भी बढ़ाएं और बापू के सच्चे पुत्र कहलाएं।
देश प्रेम की भावना, है मन का श्रृंगार।
मणि-माणिक से भी बड़ा, मातृभूमि का प्यार ॥60॥
देश प्रेम की भावना से हमारे मानसिक स्वरूप की शोभा होती है। मातृभूमि के प्रति हमारा प्यार हीरे मोतियों से भी अधिक कीमती होता है।
देश भक्ति के संग जुड़ा, भगतसिंह का नाम।
फांसी झूले देश हित, अनुपम था यह काम ॥61॥
देशभक्ति के साथ भगतसिंह का नाम अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ है क्योंकि वे अपने देश की रक्षा के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। उनका यह काम अनोखा तथा विलक्षण था। बहुत ही बड़े साहस की बात थी।
चाचा नेहरु की बनी, गहें शांति की राह।
उनने भी कब देश हित, की सुख की परवाह ॥62॥
हमारे चाचा नेहरू ने जो शांति का रास्ता बताया है, हम उस पर चलें। देश भक्ति के कामों के सामने उन्होंने कभी अपने सुख की परवाह भी नहीं की थी।
उन जैसे भी हम बनें, दृढ़ निश्चयी महान।
सच्चे अर्थों में बनें, भारत की सन्तान ॥63॥
हम उन जैसे महान तथा निश्चय के दृढ़ भी बनें और सच्चे अर्थों में भारत की संतान कहलाएं।
मिट्टी भी निज देश की, होती पूजा योग्य।
देती साधन, सम्पदा, जीवन अरु आरोग्य ॥64॥
अपने देश की मिट्टी भी पूजा तथा सम्मान करने योग्य होती है। उससे हमें जीवन के समस्त साधन, संपदाएं, जिंदगी का उत्साह तथा आरोग्य प्राप्त होता है। रोग निवारक जड़ी बूटियां भी उसी में उगती हैं।
उच्च हिमालय से बनें, हम ऊंचे व्रतशील।
प्यास बुझाएं देश की, अपनी नदियां, झील ॥65॥
हम अपने देश के सिरताज हिमालय से भी कुछ शिक्षा लें। जैसे उससे निकली नदियां तथा झीलें देशवासियों की प्यास बुझाते हैं, हम भी सबके काम आएं।
गंगा सा पावन बने, अपना विमल चरित्र।
औरों को भी हम सदा, करते चलें पवित्र ॥66॥
हम गंगा के समान पवित्र तथा उदार बनें जो सबको सदा पवित्रता बांटती रहती है।
पीड़ित की सेवा करो, आहत का सम्मान।
बच्चों ! इस व्यवहार से, खुश होते भगवान ॥67॥
हमें दीन दुखियों की सेवा तथा अभावग्रस्तों की सहायता करनी चाहिए क्योंकि इस आचरण से भगवान भी खुश होते हैं।
अपने लिए न जो रुचे, खान, पान, व्यवहार।
वह न दूसरे को करो, यह सुख का आधार ॥68॥
हमें चाहिए कि जो वस्तु, खानपान या आचरण हमें खुद के लिए अच्छा नहीं लगता वैसा हम दूसरों के लिए भी न करें।
व्यर्थ दिखावे से अपन, कहलाते न महान।
शील, सरलता, यादगी, सज्जन की पहचान ॥69॥
शान, शौकत तथा दिखावा करने से हम औरों की दृष्टि में छोटे ही साबित होते हैं। महानता की तथा सज्जनों की पहचान तो सरलता, सादगी एवं शालीनता ही होती है।
गुरुजन का आदर अतिथि, आगत का सत्कार।
मन से जो करते उन्हें, मिलता सबका प्यार ॥70॥
जो अपने घर आए मेहमानों तथा सभी परिचितों का आदर सत्कार व गुरुजनों की सेवा मन लगाकर करते हैं उन्हें सबका प्यार मिलता है।
अपना हर एक काम हो, सर्वोत्तम उत्कृष्ट।
अगर बना यह लक्ष्य, हम, कभी न होंगे भ्रष्ट ॥71॥
हम अपना प्रत्येक काम करने से पहले यह देख लें कि यह उचित, ऊंचा तथा सबसे अच्छा हो। इससे हम कभी भी गलत रास्ते पर नहीं जा सकते।
चीज किसी की लो कभी, रक्खो बहुत संभाल।
कार्य पूर्ण हो जाए तो, लौटाओ तत्काल ॥72॥
यदि हम किसी से कोई वस्तु मांगें तो उसे बहुत सम्हाल कर रखें तथा काम पूरा होते ही वापस कर दें।
नाव झूठ की डूबती, सत् की होती पार।
नम्र और शालीन को, ही करते सब प्यार ॥73॥
झूठ का आश्रय लेकर जो काम किया जाता है वह कभी पूरा नहीं होता और सत्य के बल पर ही हर एक काम पूरा होता है। नम्र तथा शालीन स्वभाव वाले को ही सब प्यार करते हैं।
पेड़ बहुत ऊँचा जिसे, कहते हैं ईमान।
इसके फल मीठे बहुत, सिंचित करते प्राण ॥74॥
ईमानदारी से जीवन जीना उस पेड़ के फलों के समान है जो बहुत ही मीठे तथा लाभकारी होते हैं।
नदियां, कुआं व बावड़ी, सबकी प्यास बुझाएं।
स्वर्ण बने धरती अगर, सब ऐसे बन जाएं ॥75॥
नदियां, कुएं तथा बावड़ियां सबको बिना भेदभाव के पानी देते हैं, सहायता का भाव रखते हैं। ऐसी ही भावना अगर मनुष्यों के बीच भी पनप जाए तो यही धरती, स्वर्ग के समान सुख देने वाली हो सकती है।
जीवन भर की नींव हैं, बचपन वाले वर्ष I
इन्हें सुधारा तो हुआ, जीवन का उत्कर्ष ॥76॥
बचपन का जो समय होता है उसमें हम जो कुछ सीखते हैं वही जीवन भर काम आता है इसलिए यदि इस समय में हमने अच्छाई ग्रहण कर ली तो हमारा सारा जीवन ही महान बन सकता है।
बात भले की जो कहे, वह आदर का पात्र।
प्रकाशदाता पूज्य है, हो लघु दीपक मात्र ॥77॥
जो हमारी भलाई की बात कहे उसका आदर करना चाहिए चाहे वह छोटा व्यक्ति हो क्यों न हो। जिस तरह हम छोटे से दीपक की भी पूजा करते हैं, क्योंकि वह हमें रोशनी देता है।
रस लेकर देते शहद, मधुमक्खी के प्राण।
जितना लें हम जगत से, करें अधिक प्रतिदान ॥78॥
मधुमक्खी फूलों का रस लेती है तो उसका मीठा शहद बनाकर वापस करती है। ऐसे ही हम भी संसार से जो भी सेवा, सहायता या लाभ लें उससे कई गुना करके संसार को भी दें।
साथी हो कोई बुरा, तो न करो अपमान।
बल्कि स्नेह देकर करो, उसको स्वयं समान ॥79॥
अपने किसी साथी में कोई दुर्गुण हो तो उसे प्रेम से सुधारना चाहिए और अपनी अच्छाइयां सिखाकर उसे भी अच्छा बना लेना चाहिए।
मित्र बनाने के लिए, पहले करो विचार।
साथी हो गुणवान और, हों अच्छे संस्कार ॥80॥
किसी को अपना मित्र बनाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि वह गुणवान हो और अच्छे संस्कार वाला हो।
साथी हो यदि कष्ट में, काम आओ तत्काल।
यही मित्रता लौह सी, रहती दृढ़ सब काल ॥81॥
अपने किसी साथी को कोई कष्ट हो तो उसके काम आओ उसकी सहायता करो ऐसी दोस्ती हो हमेशा बनी रहती है।
दबकर बीज जमीन में, बनता वृक्ष महान।
भले काम की जड़ बने, धन्य वही इंसान ॥82॥
जिस प्रकार बीज धरती में दबकर, गलकर एक बड़ा वृक्ष उत्पन्न करता है उसी प्रकार किसी भी अच्छे काम की परंपरा जो व्यक्ति स्वयं मिटकर बनाता है वह बहुत महान कहलाता है।
दुनियां में सबसे बड़ा, सबसे ऊंचा ज्ञान।
पढ़ने में सबसे अधिक, रहे इसलिए ध्यान ॥83॥
हमें पढ़ने में सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए। क्योंकि दुनियां में सबसे बड़ी तथा ऊंची चीज ज्ञान ही होती है।
सूरज का नित उगना, होना दिन और रात।
सीखो बच्चों ! प्रकृति से, नियमितता की बात ॥84॥
सूरज रोजाना समय से उगता तथा डूबता है। कभी एक मिनट का भी अंतर नहीं होता। इसी प्रकार दिन रात होते हैं। हमें भी अपना सारा काम नियमितता से करना चाहिए।
कीचड़ में खिलता कमल, कितना किंतु पवित्र।
दुर्गुण सीख न पाएं हम, हों कैसे भी मित्र ॥85॥
कमल कीचड़ में उगता है लेकिन ऊंचा उठकर कीचड़ के स्पर्श से बचा रहता है। इसी प्रकार हमारे मित्रों में यदि कोई गंदी आदत हो तो भी हम उससे बचे रहें।
फूल खिला, और बाग में, भर गई मधुर सुगंध।
हम भी बाटें स्नेह रस, मन में रहे न द्वन्द ॥86॥
कोई भी फूल बाग में खिलता है तो अपनी खुशबू सबको बांटता है। इसी प्रकार हम भी बिना भेदभाव के सबको अपना मधुर प्यार बाटें।
मेंहदी का पत्ता पिसा, रंगा किसी का हाथ।
हम भी कष्ट उठा स्वयं, दें औरों का साथ ॥87॥
किसी ने मेहनत करके मेंहदी पीसी और उसे रचाकर किसी और का हाथ रंगीन हुआ। पत्ता भी पिस गया। इसी तरह हम भी स्वयं कष्ट उठाकर भी दूसरों का भला करें।
होते हैं कुछ फूल भी, जिनमें नहीं सुगन्ध।
ऐसी जड़ खूबसूरती, हम ना करें पसन्द ॥88॥
कुछ फूल ऐसे भी होते हैं जिनमें खुशबू नहीं आती। ऐसी निरुपयोगी सुंदरता को हम पसंद नहीं करें। सुगंध होना आवश्यक है और मानव की सुगंध उसके सद्गुण ही होते हैं।
घटता-बढ़ता चंद्रमा, पर रहती गति एक।
बदले मार्ग, न छुट सके, किन्तु लक्ष्य की टेक ॥89॥
जिस प्रकार चंद्रमा के घटने बढ़ने के क्रम में तो अंतर होता है किंतु वह पूर्णिमा के दिन अवश्य अपने पूर्ण स्वरूप में आ जाता है। उसी प्रकार हमारे मार्ग में व्यतिरेक कितने ही आएं किंतु हम लक्ष्य को न भूलें।
निश्चित समयावधि गए, मीठा होता आम।
अपने-अपने समय से, होता है हर काम ॥90॥
जिस प्रकार आम को पककर मीठा बनने में एक सुनिश्चित अवधि लगती है उसी प्रकार हर काम के पूरा होने का एक समय होता है तभी परिपक्वता आती है।
फलों व शाकों में भरा, प्रचुर लाभ भण्डार।
फिर हम तो इंसान हैं, क्यों न करें उपकार ॥91॥
फलों, सब्जियों में लाभकारी तथा पोषक तत्व बहुत बड़ी मात्रा में भरे होते हैं और उनका लाभ वे खाने वालों को देते हैं इसी प्रकार हम भी सदा दूसरों का भला करें।
बनें मेघ, बरसें वहां, जहां मरुस्थल पाएँ।
तृप्ति शांति सुख बांटकर, जीवन सफल बनाएं ॥92॥
हम बादलों की तरह बनें जो सब जगह पानी बरसाते हैं। हम भी उन सबकी सेवा करें, प्यार बाटें, जिन्हें हमारी जरूरत हो।
सोएं हम नित नियम से, घंटे छः या सात।
शीघ्र उठें औ लाभ लॅ, अमृत खान प्रभात ॥93॥
हमें स्वास्थ्य के लिए छ: या सात घंटे सोना पर्याप्त होता है। उसके बाद सुबह जल्दी सोकर उठना चाहिए क्योंकि सुबह का निकलते सूरज का समय जिसे उषाकाल कहते हैं - बहुत ही लाभदायक होता है।
बाल सूर्य की रोशनी, देती जीवन प्राण।
बात न केवल काल्पनिक, कहता है विज्ञान ॥94॥
उगते हुए सूर्य की रोशनी हमारे लिए बहुत ही उपयोगी व चेतना बढ़ाने वाली होती है ! यह बात वैज्ञानिक भी कहते तथा मानते हैं।
इन किरणों में हैं भरे, जीवन दायी तत्व।
इसीलिए हर दृष्टि से, इनका बड़ा महत्व ॥95॥
इन किरणों में हमारा जीवन बढ़ाने वाले तत्व घुले रहते हैं इसीलिए इनका बहुत अधिक महत्व होता है।
आसमान जैसा न कुछ, ऊंचा और पवित्र।
उसके तारों सा बने, अपना विमल चरित्र ॥96॥
आसमान के बराबर ऊंचा और पवित्र कुछ भी नहीं है। हमारा चरित्र भी उसमें चमकते हुए तारों जैसा उज्ज्वल और पवित्र बने।
ध्रुव तारा बनकर रहें, यह अपनी ही टेक।
दिखलाएं भटके हुओं, को हम रस्ता नेक॥97॥
तारों में भी हम ध्रुव तारे की तरह हों जो हर भूले हुए को दिशा का ज्ञान कराता है। हम भी पथभ्रष्टों को सही रास्ता दिखाएं।
शीतलता शशि सी रहे, हो कोई संघर्ष।
ओजस, तेजस सूर्य सा, हो जीवन उत्कर्ष ॥98॥
हमें चंद्रमा जैसी शीतलता तथा सूर्य जैसी ओजमयी प्रखरता धारण करनी चाहिए। इससे हमारी प्रत्येक संघर्ष में विजय होगी तथा जीवन महान बनेगा।
जगतपिता को हम सभी, मिलकर शीश नवाएँ।
उसकी सुन्दर सृष्टि के, बार-बार गुण गाएं ॥99॥
हम उस परमपिता परमात्मा के सदा गुणगान करें तथा उसे शीश झुकाकर प्रणाम करें जिसने यह सुंदर सृष्टि बनाई है।
रखें सुरक्षित सत्य को, सीखें पर उपकार।
जन्म मिले इस भूमि पर, हमको बारम्बार ॥100॥
हम सत्य पर चलते हुए सदा सबकी भलाई का रास्ता ही चलें। यह हमारे भारतवर्ष की विशेषता है। भगवान हमें बार-बार इसी भूमि पर जन्म दें।
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