लोगों की राय

गजलें और शायरी >> परिन्दे क्यों नही लौटे

परिन्दे क्यों नही लौटे

कृष्णानन्द चौबे

प्रकाशक : पाँखी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15469
आईएसबीएन :9788190834742

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

अगर सूरज के दिल में आग है तो खुद झुलस जाये ज़मीं पर आग बरसाना हमें अच्छा नहीं लगता

Parinde Kyon Nahi Laute

कृष्णानन्द चौबे जी के अन्दर का शायर कोई रहबर या नासेह नहीं है। वह एक आम आदमी है और उसकी ज़ुबान में एक आम आदमी की रोज़मर्रा की ज़िंदगी के सुख-दुख और चुनौतियों को बेबाकी से बयाँ करता है और यही बात उनकी शायरी को ख़ास बना देती है। उनकी शायरी नें इंसानियत सबसे बड़ा मजहब है। उनकी ग़ज़लें वक्त की नब्ज़ टटोलती चलती हैं। वे बेहद शाइस्तगी से कही गई ऐसी ग़ज़लें हैं जो एक मुश्किलों से घिरे समय में उस इंसान की ज़ुबान बनती हैं जिससे बोलने का हक़ छिन चुका है। कृष्णानन्द जी की शायरी किताबों से सीखी गई शायरी नहीं, उनकी शायरी जिन्दगी के बाग बगीचों से चुने गए गुलों और खारों के मिलने से बनी है। उन्होंने मजाहिया, तन्ज़िया, गीत एवं गद्य-लेखन आदि के बाद ग़ज़ल को साधा, पर ग़ज़ल से मिलने के बाद वे उसी के हो गए। वे उसको कुछ यूँ इजहार करते हैं-


कुछ देर तक तो मैं सभी को देखता रहा
देखा उसे तो फिर उसी को देखता रहा


उलकी शायरी ज़िंदगी की दुश्वारियों, उससे ज़द्दो-ज़हद की शायरी तो हा पर उसमें शिरकत नहीं है बल्कि एक उम्मीद है, आम आदमी के जीतने की उम्मीद-

आप जब भी कभी दिल को बहलाएंगे
सिर्फ़ मेरी कहानी ही दोहराएंगे
ख़्वाब रूठे हुए हैं मगर हम उन्हें
नींद के घर से इक दिन मना लाएंगे


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai