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रौशनी महकती है
रौशनी महकती है
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 15468
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आईएसबीएन :978-1-61301-551-3 |
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0
5 पाठक हैं
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‘‘आज से जान आपको लिख दी, ये मेरा दिल है पेशगी रखिये’’ शायर के दिल से निकली गजलों का नायाब संग्रह
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मिसरे प’ तबीयत का जो मिसरा नहीं लगता
मिसरे प’ तबीयत का जो मिसरा नहीं लगता
‘अच्छा नहीं लगता, मुझे अच्छा नहीं लगता’
दुनिया से जुदा इश्क़ का व्यापार है इसमें
दिल लगता है, जाँ लगती है, पैसा नहीं लगता
सरगोशियाँ करती है तेरी याद मुसलसल
जादू ये अभी सर से उतरता नहीं लगता
वीराना सजाया है तेरी याद ने ऐसे
गुलज़ार नज़र आता है सहरा नहीं लगता
आये न मेरा नाम भले उनकी ज़बाँ पर
वो भूल गये हों मुझे ऐसा नहीं लगता
ऐसा भी कोई है जो न चूका हो कभी भी
हर तीर निशाने प’ किसी का नहीं लगता
बेखौफ़ चले आइये दरवाज़े खुले हैं
एहसास की दहलीज़ पे पहरा नहीं लगता
यादों ने लगा रक्खे हैं परदेस में डेरे
अब दिल में किसी शाम भी मेला नहीं लगता
किस्तों में गिरी है जो ये ख़्वाबों की इमारत
यकलख़्त बिखर जाती तो सदमा नहीं लगता
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पुस्तक का नाम
रौशनी महकती है
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