नई पुस्तकें >> रौशनी महकती है रौशनी महकती हैसत्य प्रकाश शर्मा
|
0 5 पाठक हैं |
‘‘आज से जान आपको लिख दी, ये मेरा दिल है पेशगी रखिये’’ शायर के दिल से निकली गजलों का नायाब संग्रह
शाहिद मेरे सफ़र के...
पं. ज्योतिशंकर शुक्ल -
उनकी वाकपटुता, व्यंग्यात्मक शैली, शायराना लिबास और उससे भी बढ़ के शायराना तबीयत ‘गुरु’ की विशेषता है। व्यक्ति से मिलकर उसकी फ़ितरत जान लेने की सिफ़त, नये कवि से मिलकर की गई पेशीनगोईयाँ जो हमने सच होते भी देखी हैं। इस उम्र में भी उनकी शरारतें नौजवानों को पीछे छोड़ सकती हैं। उनका नाम सुरक्षा कवच है।
नाज़ प्रतापगढ़ी -
पहली मुलाक़ात से लेकर आज तक उस्ताद शायर का मरतबा रखते हुये भी दोस्ताना लहज़ा, मुसलसल हौसला अफ़जाई मेरे हिस्से में आई है। मेरी ग़ज़लों पर ज़रूरी अरूज़ी मशविरे अता करना उनकी नवाजि़श है। मैं दिली तौर से उनका शुक्रगुज़ार रहूंगा।
राम कृष्ण ‘प्रेमी’-
तत्कालीन दबंग सहपाठी 1980-81 में शाहजहाँपुर से लौटने पर एक शाम ऐसे टकराये कि मेरे भीतर के कवि को अपने आग्रह द्वारा जगा कर ही माने। उनका शुक्रगुज़ार हूँ कि शायरी के इस सिलसिले की शुरुआत उनके तुफ़ैल ही हुयी।
राजेन्द्र तिवारी -
प्रेमी जी ने पहली और बड़ी महत्वपूर्ण मुलाक़ात जिनसे कराई, वे भाई राजेन्द्र तिवारी थे। हम लगभग साथ-साथ शुरु हुये और आज उन्हें हिन्दुस्तान भर पढ़ रहा है, सुन रहा है, खुश हो रहा है और मेरी खुशी ये, कि वे मेरे ऐसे अभिन्न मित्र हैं कि एक को देखकर लोग अक्सर पूछते हैं- कहाँ है दूसरा?
अंसार क़म्बरी -
ग़ज़ल की बज्मों, महफ़िलों में उन दिनों काफी चर्चित नाम अंसार भाई का था, जब मैं उनसे मिला। हार्दिकता और स्नेह उनके व्यक्तित्व का हिस्सा हैं और प्रमाण है, उनके अच्छे कवि होने का। उनके माध्यम से मैंने बहुत से अच्छे कवियों, शायरों से परिचय प्राप्त किया। उनमें से अधिकतर हमारे साझे मित्र और आदरणीय हैं। उदारतावश अंसार भाई अक्सर कह भी देते हैं कि लोग मेरे ‘फ़ैन’ हैं और मैं सत्यप्रकाश का।
मुनेन्द्र शुक्ल -
मुनेन्द्र भाई कविता के माध्यम से परिचय में आये परन्तु आज मेरे सगे बड़े भाई का दरज़ा रखते हैं। मेरे परिवार के सदस्य हैं और मैंने महसूस किया है कि वे जिससे भी जुड़ते हैं उसके लिये कुछ भी कर सकते हैं। न मानें तो आप उनसे रिश्ता जोड़ कर स्वयं देख लें...।
विनोद श्रीवास्तव -
अंसार भाई जिस तरह ग़ज़ल में थे, उसी तरह विनोद श्रीवास्तव भी अपने गीतों के लिये चर्चित थे, जब मैं उनके सम्पर्क में आया। मित्रता बरकरार है।
प्रदीप चौबे -
देश उन्हें हास्य-व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में जानता-मानता है, परन्तु वे ग़ज़ल से बेपनाह मुहब्बत करने वाले भी हैं - ये जानकारी कम लोगों को ही होगी। उनका स्नेह और उत्साहवर्धन मेरी पूंजी है।
नवोदित जी-
हमारे शहर में कितने ही सम्पादक आये-गये, परन्तु इन जैसा संभवतः न कोई आया है, न आयेगा। जिन्होंने बग़ैर किसी भेद-भाव के छोटे-बड़े, मशहूर और गुमनाम कलाकारों को अपनाया, उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, महत्व प्रदान किया। मैं उन्हें दिल से प्रणाम करता हूँ।
देवल आशीष -
अपने गीतों की सुगन्ध से देश भर को महकाने वाले देवल, प्रारम्भ से ही मेरे आत्मीय हो गये। इतना ही कह सकूंगा कि हम-दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं।
अखिलेश तिवारी -
शहर से अन्जान, नागपुर से रिज़र्व बैंक कानपुर आये अखिलेश से एक नशिस्त में मुलाक़ात हुई। एक तिकड़ी बनी और खूब बनी। राजेन्द्र, मैं और अखिलेश। स्थानान्तरण के बावजूद ये तिकड़ी आज भी चल रही है, आत्मीयता के तारों पर। वे मख़्सूस तरीक़े से अपना क़द बढ़ा रहे हैं, नाम रौशन कर रहे हैं।
धीरज सिंह -
उन दिनों फूलबाग से बड़ा चौराहा तक साझेदारी रिक्शा चलता था, चवन्नी प्रति सवारी । एक सुबह अपने-अपने आफ़िस जाते हुये ऐसे टकराये कि दोस्त हो गये और रफ़्ता-रफ़्ता ये दोस्ती सुबह-शाम मजबूत होने लगी। कब वे मेरे छोटे भाई और मैं उनका बड़ा भाई हो गया पता ही नहीं चला। कलात्मक अभिरुचि और उससे जुड़ी हर प्रकार की मान्य-अमान्य गतिविधियों को पूरे मनोयोग से जीवन में ढालने वाले व्यक्तित्व हैं, धीरज।
अनिल सविता (सिद्धन भाई) -
राजेन्द्र भाई ने सिद्धन भाई से मिलाया और वे मेरे अन्तरंग हो गये। उनकी साहित्यक अभिरुचि एवं भाषा के प्रति जागरूकता मेरी पांडुलिपि की सहज परिणिति है। मैं विशेष रूप से उनका आभारी हूँ।
|