नई पुस्तकें >> रौशनी महकती है रौशनी महकती हैसत्य प्रकाश शर्मा
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‘‘आज से जान आपको लिख दी, ये मेरा दिल है पेशगी रखिये’’ शायर के दिल से निकली गजलों का नायाब संग्रह
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चोट खाते रहे ज़माने से
चोट खाते रहे ज़माने से
बाज़ आए न मुस्कुराने से
चार-सू रौशनी महकती है
एक दिल का दिया जलाने से
हमसे मिल जाओ फिर कभी आकर
ज़ख़्म लगने लगे पुराने से
ज़िक्र उनका कोई करे हमसे
जिनको देखा नहीं ज़माने से
इश्क़ करना गुनाह ठहरा तो
हम गुनहगार हैं ज़माने से
कह रही हैं ख़तों की तहरीरें
हम न मिट पाएंगे मिटाने से
धूप के तज्रिबे सुनाते हैं
बैठकर लोग शामियाने से
हुस्न की शान में ग़ज़ल कहना
सीखिये ‘मीर’ के घराने से
घर-सा लगने लगा है मयख़ाना
रोज़ आने से, रोज़ जाने से
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