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प्रतिभार्चन - आरक्षण बावनी

सारंग त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1985
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15464
आईएसबीएन :0

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५२ छन्दों में आरक्षण की व्यर्थता और अनावश्यकता….

बापू ने कहा था

 

 

यद्यपि हरिजन अल्पसंख्यक हैं तो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य भी अल्पसंख्यक हैं यह हिन्दुओं अभिन्न-अंग हैं। यदि वह अपने को अलग समझते है जो बहुत बुरा है। इन्हें हिन्दुओं के साथ ही रहना है। यदि प्रशासन कोई विशेष सुविधा देती है तो वह 'डिवाइड एण्ड रूल' की पालिसी ही होगी और वे एक दूसरे का आगे चलकर गला खुद ही काटेंगे और स्वराज्य समाप्त हो जायेगा।

 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
(सन् 1646)



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