नई पुस्तकें >> प्रतिभार्चन - आरक्षण बावनी प्रतिभार्चन - आरक्षण बावनीसारंग त्रिपाठी
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५२ छन्दों में आरक्षण की व्यर्थता और अनावश्यकता….
महापुरुषों की उक्तियां
आरक्षण का आधार जातीय नहीं आर्थिक होना वांछनीय है।
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संरक्षण के कारण हरिजन लोग कभी स्वावलम्बी न बन सकेंगे, अपने पैरों पर न खड़े हो सकेंगे और न देश के प्रति अपने उत्तरदायित्व का अनुभव कर सकेंगे।'
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'पिछड़ेपन का कारण गरीबी है न कि जाति है।'
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'राष्ट्रपति का बेटा हो या चपरासी की हो सन्तान।
ब्राह्मण या भंगी का बेटा सबकी सुविधा एक समान।'
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'जाति के आधार पर गरीब की सहायता उचित नहीं'
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आरक्षण से इन्जीनियरिंग शिक्षा का स्तर गिरा।
अध्यक्ष भाभा परिमाणु संस्थान, भारत
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'जाति के आधार पर गरीब की सहायता उचित नहीं।'
भू. पू. राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी
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'आज केवल जाति के कारण अयोग्य होते हुये भी वरीयता दी जा रही है इससे अयोग्य को प्रोत्साहन मिलेगा किसी दिन शत-प्रतिशत ये ही आकर बैठ जायेंगे। अयोग्य काही शासन में साम्राज्य हो जायेगा हम यह कह सकते हैं कि काम-दाम-आराम का वितरण योग्यता और आवश्यकता के आधार पर होना चाहिये जाति के आधार पर नहीं।'
श्री शंकराचार्य (पुरी)
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'यदि हरिजनों को अपने पैर पर खड़ा होना हैतोआर्थिक आधार पर ही लोगों से रोजी-रोटी की लड़ाई लड़नी होगी।'
श्री. वी. पी. मौर्य
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'वे इस तथ्य से अवगत हैं कि श्री जगजीवन राम जैसे आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से सम्पन्न वर्ग के लोग आरक्षण नीति से लाभान्वित हो रहे हों और गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले किसी सवर्ण के बालक के लिए जाति विशेष अभिशाप बन कर उसके विकास और उन्नयन में रोड़ा बन गई है।
श्री अटल बिहारी वाजपेई
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अनुसूचित जाति, अनसूचित जनजाति के लोग बैसाखी (आरक्षण) का सहारा छोड़ दें।
श्री जगजीवनराम
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भारत सरकार में नौकरियों में कमजोर वर्ग के लोगों को आरक्षण देना समस्या का स्थायी हल नहीं है बल्कि तसल्ली मात्र है। सुविधा पाने वाले नैतिक रूप से दब्बू हो जायेंगे तथा प्रशासन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
श्री चौधरी चरण सिंह
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'आर्थिक आधार पर ही आरक्षण उचित है।'
श्री बाला साहब देवरस
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मैं व्यक्तिगत रूप से शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण केलिए आर्थिक पिछड़ेपन को आधार बनाना प्रसन्द करूंगी।
केन्द्रीय शिक्षा राज्य मंन्त्री
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"सम्पूर्ण भारत के समस्त नागरिकों के लिए गरीबी केआधार पर राष्ट्रीय आरक्षण-नीति अथवा राष्ट्रीय संरक्षण-नीति घोषित की जाय जिससे सर्वाधिक लाभ हरिजनों, जन जातियों और सर्वाधिक पिछड़ी जाति वर्गों को मिले, जिनका बहुलांश आज भी70 प्रतिशत के रूप में गरीबी की रेखा के नीचे जिन्दगी बिता रहा है। उक्त नीति के परिपालन में निदेशक सिद्धान्त यहहै कि सर्वाधिक गरीब अनिवार्यतः सर्वोच्च वरीयताप्राप्त करें। हमारा विश्वास है कि इस नीति को आधार बनाने में 90 प्रतिशत् हरिजन, आदिवासी, महिलाएंऔर सर्वाधिक पिछड़े वर्ग वरीयता प्राप्त कर सकेंगे तथा सवर्ण भी उपेक्षित नहीं होंगे।"
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