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गीले पंख

रामानन्द दोषी

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1959
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15462
आईएसबीएन :0

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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…


31

तथागत से

 
सोचता हूँ -
कौन-सी वह शक्ति है,
जिस के सहारे
काल-वैतरणी करी है पार तुम ने ?
और
इस दगधी डगर के
कौन हिम शीतल करों से
चुन लिए अंगार तुम ने ?
कौन-सा वह मंत्र,
जिस से कोटि हृदयों पर किया है
अन्यतम अधिकार तुम ने ?

सोचता हूँ -
बहुत कौशल,
बहुत जतनों से
समय की बालुका पर
डाल भी आया कोई पदचिह्न,
तो क्या टिक सके वे ?
जब कि विस्मृति का प्रभंजन
रेत बिथुराता,
तब चित्र कोई भी यहाँ
पूरा न रह पाता।
कौन बच पाता?
काल-भैरव के उदर में
सब समा जाता !

किन्तु तुम ने इस नरम
छलनामयी मृदु बालुका पर

पाँव कब डाले !
भले ही फूट आए
बीच छाले के नए छाले,
किन्तु प्रस्तर भी तुम्हारे चरणतल ने
सिर्फ वे चूमे,
कि जो थे वज्रहिय वाले !
और मेरा भाग -
यह विस्मय,
कि कैसे वज्र भी
तुम ने तथागत,
मोम कर डाले !
समोए किस तरह उन में चरण ऐसे
कि उन की ताज़गी
अब एक मनवंतर परे भी यों -
कि जैसे तुम अभी पथ से गए हो !
आँधियाँ गुज़रीं हज़ारों
पर तुम्हारी गंध उन से आज भी आती !

सर्वत्र ही मिलते मुझे हैं,
और आगे भी मिलेंगे।
मील के पत्थर तुम्हारी छाप वाले।
 
किस तरह तुम ने कवच
इस्पात-युग के भेद डाले ?

सोचता हूँ
काल के चंचल तुरग पर
कौन कौशल से करी
कस कर सवारी ?
कौन जादू से किया है
स्वप्न यह साकार तुम ने ?

कौन-सी वह शक्ति है,
जिस के सहारे
काल-वैतरणी करी है पार तुम ने ?

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