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गीले पंख

रामानन्द दोषी

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1959
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15462
आईएसबीएन :0

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5 पाठक हैं

श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…


27

कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?


कौन खड़ी शरमाई हो तुम,
मेरी रीती गागर भरने
कौन अपरिचित आई हो तुम ?

किस से पवन खेलता चंचल
रह-रह उड़ता किस का अंचल
किस सजनी से करना सीखा --
दीपों ने शलभों को पागल?

किस दीपक की स्वर्णिम आभा,
मौन मदिर अलसाई हो तुम ?
कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?

सतरंगी रस - गागर छलकें,
लहर - लहर लहराती अलकें;
नीले सागर की शैया पर  -
झुक-झुक झूम झिपी हैं पलकें;

उन पलकों की ओट सिमट कर
कौन सलज मुसकाई हो तुम ?
कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?

उठ-उठ गिरता झीना घूँघट,
आते-आते खो जाता तट;
प्यासी ही रह जाती आँखें -
प्यासा ही रह जाता पनघट;

किस हल्की बदली से उलझी
पूनम की अँगड़ाई हो तुम ?
कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?

कौन नयन में भर कर सावन,
अधरों में धीमा-सा कंपन;
अस्फुट स्वर में कह जाती हो --
"रुक न सकोगे दो क्षण पाहुन ?"

किस के प्राणों में लय होने
बेबस-सी सकुचाई हो तुम ?
कौन खड़ी शरमाई हो तुम ?

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