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गीले पंख

रामानन्द दोषी

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1959
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15462
आईएसबीएन :0

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5 पाठक हैं

श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…


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ऐसा दीप जलाओ !


ऐसा दीप जलाओ, जिस से घर-घर में उजियार,
प्राण-प्राण में नव चेतनता, नव रस का संचार।

जन-मन  में सोई कल्याणी
शाश्वत शक्ति जगाओ,
अणु-अणु को अनुप्राणित कर दे--
वह अनुरक्ति जगाओ;

द्वार-द्वार पर जा कर निर्मल
प्रीत - सँदेस सुना दो,
सब के स्वर समलय हो जाएँ
ऐसा राग बजा दो;

सहज सुरीला स्वर सन्धानो, सुरभित साँस-सितार।
ऐसा दीप जलाओ, जिस से घर-घर में उजियार।
 
उस ने अपनी सुषमा अनगिन
रूपों में बाँटी है,
कोटि-कोटि दीपों में लेकिन
एक वही माटी है;

अलग-अलग बाती हैं, लेकिन
एक वही है ज्वाला,
सब अधरों पर प्यास एक है
अपना - अपना प्याला;

कितने कृष्ण, गोपियाँ कितनी, एक हृदय का ज्वार !
ऐसा दीप जलाओ, जिस से घर-घर में उजियार।

गहन तिमिर को उज्ज्वल किरणों
के बाणों से काटो,
मानव से मानव की दूरी
दिव्य प्रेम से पाटो;

विभ्रम, मौन, मलिन यदि कोई
थका खड़ा हो पथ में,
उस को मंज़िल तक ले जाओ
अपने करुणा - रथ में;

सब को आलिंगन में भर लो, लम्बी भुजा पसार।
ऐसा दीप जलाओ, जिससे घर-घर में उजियार।

यह अर्चन की बेला, इस में
जन-मन का नीराजन,
यह जाग्रति का मेला, इस में
श्रम जयघोष, पुलक तन;

दीपों की यह माला, इस में
नेह गुँथा जीवन का;
सधी शान्त लौ तेज-पुँज है,
स्वागत नए सृजन का;

दो आँचल की ओट, करो झंझा के निष्फल वार।
ऐसा दीप जलाओ, जिस से घर-घर में उजियार।

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