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गीले पंख

रामानन्द दोषी

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1959
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15462
आईएसबीएन :0

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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…


12

एक बटन


एक बटन टूट गया,
सिर्फ एक बटन
अचकन का।

उस में न हीरा था, न पन्ना
सोना छोड़ चाँदी भी नहीं,
यहाँ तक कि इन का मुलम्मा भी नहीं,
बस, एक बटन सूत का,
(क्योंकि खादी की अचकन में वही भरता है)

पुराना-सा एक बटन,
मुहावरेतन कहूँ तो टूट गया,
वर्ना असल में छूट गया,
अलग हो गया,
अचकन से गिर गया।
और फिर खोया भी नहीं
फौरन ही मिल गया,
यानी, नुकसान एकदम 'जीरो' !

फिर भी इस का दर्द है।
इस ज़रा-से बटन ने
मुझे सोचने पर विवश कर दिया है,
झकझोर दिया है।
कुछ बटन झटका खा कर टूटते हैं,
इस ने टूट कर मुझे झटका दिया है,
क्योंकि यह तनाव से टूटा है।

सोचता हूँ, शायद इसीलिए
पहले लोग
अँगरखे पहनते थे
तनीदार,
कि तनाव हो, तो तनी को बढ़ा लें।
जरूरत हो, तो घटा लें।
(क्योंकि जिस्म तो तब भी घटता-बढ़ता ही था)
भेद कुछ नहीं,
दिक्कत कुछ नहीं।
बस, गाँठ यहाँ न लगी, वहाँ लग गई।

पर बटन में एक नियंत्रण है,
एक व्यवस्था।
रियायत उस की 'लाइन' में है नहीं।
तनाव पड़ेगा, तो टूट जाएगा,
बदन घटेगा, तो झोल खाएगा।
यह युग 'डिसिप्लिन' का है ! .
यह युग मशीन का है !
और सिद्धान्त ?
वह तो सिद्धान्त है ही।

मुझे लगता है बटन से तनी अच्छी थी,
क्योंकि उस में 'एडजस्टमेन्ट' था,
वह आदमी के अधिक निकट थी।
आदमी, जैसा कि सब जानते हैं,
कमजोर है
'एडजस्ट' कर लेता है,
'एडजस्ट' हो जाता है।

और मशीन,
यह भी सभी जानते हैं,
कठोर है--
वह तोड़ देती है,
टूट जाती है।

मैं सोचता हूँ पहले आदमी
आदमी के अधिक निकट थे।
तभी तो उन्होंने तनी को अपनाया होगा !
क्योंकि हो सकता है
कभी किसी बुजुर्ग का
कोई बटन
ऐसे ही टूटा हो,
जैसे आज मेरा टूटा है।

यह बात अलग
कि वह बटन,
रण-प्रांगण में,
दस-बारह घंटे --
अनवरत तलवार चला कर
शत्रु को परास्त करने के बाद
गर्व से सिंह-गर्जना करते समय
छाती फूल जाने के तनाव से टूटा हो,
और यह बात अलग
कि मेरा यह बटन
कुर्सी पर मिलने वाले
अनवरत आराम-विश्राम के कारण
तोंद बढ़ जाने के तनाव से टूटा है।

शायद आप को यह बात मालूम न हो
मुझे 'डिस्पेपसिया' हो गया है !

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