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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

कल की चिन्ता

शाह शुजा बड़े प्रसिद्ध थे। उनकी एकमात्र पुत्री बड़ी धर्म-परायण और वैरागी भावनाओं से ओत-प्रोत थी। उसकी इन्हीं भावनाओं को ध्यान में रखकर शाह ने उसका विवाह किसी फकीर के साथ करने का निश्चय कर लिया। सौभाग्य से उसको एक सच्चरित्र फकीर का पता भी मिल गया और उसने उस फकीर के साथ अपनी एकमात्र कन्या का विवाह कर दिया।

शाह प्रसन्न था कि उसने अपनी पुत्री को सही स्थान पर भेजा है जहाँ उसकी भावनाएँ आहत नहीं होंगी, जागृत रहेंगी।

जब विवाह हुआ और शाह की पुत्री अपने फकीर पति के साथ रहने उसकी कुटिया में आयी तो कुटिया में पहुँचते ही वह उसकी सफाई करने लगी। उसने देखा कि कुटिया के छप्पर से एक छींका लटका हुआ है। उसने उसको उतारा तो पाया कि उसमें दो रूखी-सूखी रोटियाँ पड़ी हुई हैं। उसको बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने अपने पति से पूछा, "ये रोटियाँ यहाँ क्यों रखी हैं?"

फकीर पहले तो सकपका गया फिर बोला, "दो रोटियाँ हैं, कल हम दोनों मिल कर एक-एक रोटी खा लेंगे, दिन निकल जायेगा।"

पति की बात सुन कर पत्नी को सहसा बड़ी तेज हँसी आ गयी। उसने कहा, "मेरे पिता ने तो आपको वैरागी और फकीर समझ कर मेरा विवाह आपके साथ किया था। किन्तु मैं देख रही हूँ कि आपको तो कल के खाने की चिन्ता आज से ही सताने लगी है। जिसको इस प्रकार की चिन्ता सताती है वह सच्चा फकीर नहीं हो सकता।"

"अगले दिन की फिक्र तो घास खाने वाले पशु भी नहीं करते, न पक्षी ही अगले दिन के लिए कुछ सँजो कर रखते हैं। फिर हम तो मनुष्य हैं। मिल गया तो खा लेंगे, नहीं तो आनन्द से प्रभु चिन्तन में अपना समय बिता देंगे।"

पत्नी की बात सुन कर फकीर की आँख खुल गयी। वह समझ गया कि उसकी पत्नी वैराग्य में उससे बहुत आगे बढ़ी हुई है। वह मन ही मन उसकी प्रशंसा करने लगा और फिर कह उठा, "देवी! आज तो तुमने मेरी आँखें खोल दी हैं, मैं तो अन्धकार में था। वैराग्य का रहस्य अब मेरी समझ में आने लगा है। परमात्मा की कृपा है कि मुझे तुम जैसी पत्नी प्राप्त हुई है। धन्यवाद!"

उस दिन के बाद दोनों पति-पत्नी निश्चिन्तता से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। खाने को मिला तो ठीक, नहीं मिला तो ठीक।

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