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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

दण्ड बना पुरस्कार

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के जीवन में बचपन की एक विचित्र घटना है। लिंकन का जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ था। बचपन में किसी प्रकार अक्षरों का ज्ञान कर लिया था। इस अक्षरज्ञान ने उन्हें महापुरुषों की जीवनियाँ पढ़ने की रुचि जगा दी। पुस्तक खरीदने को पैसे तो नहीं थे, पर वह किसी प्रकार माँग कर अपना यह शौक पूरा किया करते थे।

एक बार वे किसी एक शिक्षित सज्जन के घर किसी कार्य से गये तो वहाँ उन्हें एक महापुरुष की जीवनी देखने को मिली। उनकी उसे पढ़ने की इच्छा हुई तो उन सज्जन सेप्रार्थना करके पुस्तक माँग ली। उन महाशय को पता था कि उन्हें जीवनियाँ पढ़ने का शौक है। उन्होंने पुस्तक देते हुए कहा, "मैं पुस्तक दे रहा हूँ, किन्तु इसे सम्भाल कर रखना और एक-दो दिन में लौटा देना।"

लिंकन पुस्तक ले आये। दिन को जब समय मिला तब पढ़ी और रात को पढ़ने की इच्छा होने पर भी पढ़ नहीं सकते थे, क्योंकि घर में प्रकाश की व्यवस्था ही नहीं थी। किन्तु लिंकन ने तरकीब निकाल ली। घर को गरम रखने के लिए रात्रि को आग जलाई जाती थी। परिवार आग तापता फिर सो जाता। लिंकन को चैन कहाँ, उन्हें तो पुस्तक समाप्त करनी थी। परिवार सो जाता और लिंकन पढ़ते रहते। अन्त में पुस्तक का पठन पूरा हुआ। लिंकन ने पुस्तक को बरामदे में एक स्थान पर रख दिया और अपने बिस्तर पर जाकर सोगये। दुर्योग से रात को वर्षा हुई। उसकी बौछार के छींटे बरामदे में रखी पुस्तक पर पड़ने से पुस्तक खराब हो गयी।

लिंकन सबेरे उठे और जब पुस्तक पर दृष्टि गयी तो उनको रोना आ गया। पुस्तक को बिना मैली किये शीघ्र लौटा देने का वचन पूरा करना कठिन हो गया।उसी अवस्था में वह उस पुस्तक को स्वामी के पास लौटाने के लिए गये।

पुस्तक की दशा देखकर पुस्तक के स्वामी को क्रोध आ गया। लिंकन ने सारी बात का यथावत् वर्णन कर दिया। किन्तु स्वामी को यह स्वीकार नहीं था। उसने कह दिया, "मैं यह पुस्तक नहीं लूँगा। मुझे नई पुस्तक लाकर दो।"

लिंकन नई पुस्तक कैसे खरीदते, उनके पास तो एक कौड़ी भी नहीं थी। किन्तु पुस्तक का स्वामी था कि किसी प्रकार पसीजने का नाम ही नहीं लेता था। लिंकन बहुत गिड़गिड़ाये, अनुनय-विनय की, किन्तु सब बेकार।

अन्त में उस व्यक्ति ने ही इस समस्या से निपटने का लिंकन को एक उपाय बताया। उसने कहा, "तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं तो तुम मेरे यहाँ मजदूरी करो। तीन दिन तक मेरे खेत में धान काटो और उस मजदूरी से तुम पुस्तक के मूल्य की भरपाई करो।"

लिंकन ने प्रसन्नता से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। तीन दिन तक खेत में धान काटने का कार्य करकेउसने समस्या का समाधान करवा लिया। इससे लिंकन को बड़ी प्रसन्नता हुई।

बाल्यकाल में और किशोरावस्था में इसी प्रकार की अनेक घटनाओं का लिंकन पर प्रभाव पड़ता रहा। उन्हें संसार को देखने, जानने और परखने का अवसर मिला। इसप्रकार वह आगे बढ़ते गये और वही निर्धन लिंकन एक दिन अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।  

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