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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

अनुशासन और उदारता

नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस का राजा था। वह बड़ा परिश्रमी था और अपने कर्मचारियों को भी अपने जैसा ही देखना चाहता था। कर्मचारियों को वह वेतन भी अच्छा देता था। उसके कार्यालय में काम करने वाले एक अधिकारी को प्रति माह एक हजार फ्रेंक वेतन मिलता था। फिर भी अधिकारी के घर का खर्च इतना था कि उस पर दस हजार फ्रेंक का ऋण चढ़ गया। इससे उसकी नींद उड़ गयी। एक रात जब उसको नींद नहीं आ रही थी तो वह उठ कर अपने कार्यालय गया और वहाँ बैठकर काम में डूब कर अपनी चिन्ता भुलाने लगा।

रात में जब नेपोलियन की नींद खुली तो उसको कार्यालय में प्रकाश दिखाई दिया। वह उठ कर वहाँ गया तो देखा कि उसका एक अधिकारी वहाँ काम में व्यस्त है। नेपोलियन कार्यालय के उस कक्ष में गया और अधिकारी से पूछा, "आप इस समय काम क्यों कर रहे हैं? दिन-भर परिश्रम करने के बाद रात्रि को विश्राम करना शरीर के लिए आवश्यक होता है किन्तु आप काम में व्यस्त हैं, क्यों?"

उसने कहा, "श्रीमन् ! मुझ पर बहुत ऋण हो गया है। साहूकार लोग नित्य प्रति मेरे दरवाजे पर दस्तक देकर मुझे परेशान करते हैं। मैं बहुत चिन्ताग्रस्त हूँ, इसी से मुझे आजकल नींद नहीं आती। इसलिए यह अतिरिक्त कार्य कर रहा हूँ, जिससे कि कुछ अतिरिक्त आय हो सके।"

"कितना ऋण हो गया है?"

"दस हजार फ्रेंक।"

"मैं तुम्हें प्रति माह एक हजार फ्रेंक वेतन देता हूँ, फिर भी तुम पर इतना अधिक ऋण हो गया है? इसका मतलब है कि तुम्हारे जीवन में अनुशासन और विवेक नहीं है। तुम बेहिसाब खर्च करते हो, अवसर मिलने पर तुम सरकारी धन का भी दुरुपयोग कर सकते हो। मैं ऐसे व्यक्ति को अपने कार्यालय में नहीं रख सकता। मैंने तुम्हें इसी समय से नौकरी से निकाल दिया है, अब तुम जा सकते हो।"

अधिकारी चुपके से उठा और अपने घर के लिए चल दिया। एक तो पहले ही चिन्ताग्रस्त था। अब यह नौकरी भी हाथ सेनिकल गयी तोचिन्ता और बढ़ गयी। परिवार बड़ा था, कमाने वाला वह अकेला ही था। इसी चिन्ता में उसे बाकी रात नींद नहीं आयी।

किसी प्रकार रात बीती और सवेरा हुआ। वह विचारमग्न लेटा हुआ था कि दरवाजे पर खटखट हुई। उसने उठकर दरवाजा खोला तो देखा कि दरवाजे पर कार्यालय का सेवक खड़ा है। अधिकारी ने देखा, वह हाथ में एक लिफाफा पकड़े हुए है, जिसे उसको देना चाह रहा है। उसने सोचा, 'नौकरी से हटा देने का लिखित आदेश होगा।' उसने लिफाफा ले लिया, सेवक को विदा किया और भीतर आकर लिफाफा खोला।

लिफाफे में एक पत्र था और उसके साथ दस हजार फ्रेंक के नोट थे। पत्र नेपोलियन का था। पत्र में उसने लिखा था, "मैंने तुम्हारे विषय में रात-भर विचार किया और अन्त में इस निर्णय पर पहुँचा कि तुम परिश्रमी हो, तुम्हें नौकरी से निकालना उचित नहीं लगा। जो एक बार मेरा आश्रित हो गया, उसके परिवार की चिन्ता करना भी मेरा ही कर्तव्य होना चाहिए।

"ये दस हजार फ्रेंक भेज रहा हूँ। इससे अपना ऋण उतार कर चिन्तामुक्त हो जाओ और कल से उसी प्रकार अपने कार्य पर आ जाओ। नौकरी से बर्खास्तगी का आदेश मैं वापस लेता हूँ। भविष्य में अनुशासन, संयम और विवेक से जीवनयापन करोगे तो फिर यह कठिनाई नहीं आयेगी।"

अधिकारी ने मन ही मन जहाँ ईश्वर का धन्यवाद किया और नेपोलियन के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त की और अपने कार्य में लग गया।  

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