नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
मुक्ति का मूल्य
महाराज बिम्बसार को निद्रा नहीं आ रही थी। तीर्थंकर महावीर ने साफ-साफ कह दिया था कि 'उन्हें नरक जाना पड़ेगा। महाराज नरक की कल्पना से काँप उठे थे। उन्होंने निश्चय किया, 'कुछ भी हो, मैं नरक से बचने की हर कोशिशकरूँगा। मेरे पास कोष है, साम्राज्य है, मोक्ष मेरे लिए असम्भव कैसे रहेगा?'
दूसरे दिन सूर्य की प्रथम किरण के साथ महाराज तीर्थकर के चरणों में उपस्थित हुए। प्रार्थना करते हुए बोले, "प्रभो! मेरा समस्त कोष और साम्राज्य श्रीचरणों में समर्पित है। नरक से उद्धार करके मुझे मुक्त करें।"
तीर्थंकर के अधरों पर मुस्कान आ गयी। उन्होंने समझ लिया कि अहं ने ही यह रूप धारण किया है। तीर्थंकर बोले, "मैं दान कर सकता हूँ, दान करूँगा, यह गर्व है और जहाँ गर्व है वहाँ मोक्ष कैसा?"
महाराज को आदेश हुआ, "अपने राज्य के पुण्य नामके श्रावक से एक सामयिक का फल प्राप्त करो। तुम्हारे उद्धार का यही उपाय है।"
महाराज उस श्रावक के पास पहुंचे। उनका यथोचित सत्कार हुआ। महाराज ने बड़ी कातरता से कहा, "श्रावकश्रेष्ठ! मैं याचना करने आया हूँ। मूल्य जो माँगेंगे दूंगा, किन्तु मुझे निराश मत करना।"
महाराज की माँग सुन कर श्रावक ने कहा, "महाराज! सामयिक तो समता का नाम है। राग-द्वेष की विषमता को चित्त से दूर कर देना ही सामयिक है। यह कोई किसी को कैसे दे सकता है। आप उसे खरीदना चाहते हैं। किन्तु सम्राट होने के अहंकार को छोड़े बिना उसे आप कैसे प्राप्त कर सकते हैं?"
महाराज सामयिक खरीद नहीं सके। किन्तु उसकी उपलब्धि का रहस्य वे पा गये। समत्व में स्थित होने पर उनको कोई मुक्त करे, यह अपेक्षा ही कहाँ रह गयी।
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