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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

दूसरों की निन्दा से बचो

प्रजापति ब्रह्मा इस सृष्टि के कर्ता हैं। कहा जाता है कि उन्होंने एक बार मनुष्य को अपने पास बुलाकर पूछा, "बोलो, तुम क्या चाहते हो?"

"मैं उन्नति करना चाहता हूँ, सुख-शान्ति चाहता हूँ और चाहता हूँ कि सब लोग मेरी प्रशंसा ही करें।"

ब्रह्मा जी ने उसके सामने दो थैले रख दिये और कहा, "इन थैलों को ले लो। इनमें से एक थैले में तुम्हारे पड़ोसी की बुराइयाँ हैं, उसे पीठ पर लाद लो तथा उसे हमेशा बन्द ही रखना। न स्वयं देखना और न किसी और को देखने देना।

"ये जो दूसरा थैला है, इसमें तुम्हारे दोष पड़े हैं। उसे सामने लटका लो और बार-बार खोल कर रोज देख लिया करना और अगर दूसरे देखना चाहें तो उनको भी दिखा देना।"

मनुष्य ने दोनों थैले उठा लिए। किन्तु उससे एक भूल हो गयी। उसने अपनी बुराइयों का थैला तो पीठ पर लाद लिया और उसका मुँह कस कर बन्द कर दिया तथा पड़ोसी की बुराइयों वाला थैला उसने सामने लटका लिया। वह उसका मुँह खोल कर वह उसे नियमित रूप से देखता है और दूसरों को भी दिखाता रहता है। इससे उसे जो वरदान मिले थे वे भी उलटे हो गये। वह अवनति करने लगा। उसे दुःख और अशान्ति मिलने लगी। सब लोग उसकी बुराइयाँ करने लगे। उसका जीवन संकटमय हो गया।

मनुष्य यदि उन्नति करना चाहे और आज भी उस भूल को सुधार ले तो उसकी उन्नति हो सकती है। उसको सुख-शान्ति मिलेगी तथा वह संसार में प्रशंसा का पात्र बन सकता है। मनुष्य को केवल करना यह है कि अपने पड़ोसी और परिचितों के दोष देखना बन्द कर दे और अपने दोषों पर सदैव दृष्टि रखे।  

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