नई पुस्तकें >> सूक्ति प्रकाश सूक्ति प्रकाशडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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1000 सूक्तियों का अनुपम संग्रह
अगर इज्जत घटा कर रोजी बढ़ती हो तो उस रोजी से गरीबी ही अच्छी।
दूसरे के आधार पर आश्रित रहने से परमेश्वर का आधार छूट जाता है।
आनन्द दूसरों को कष्ट देने से नहीं, बल्कि स्वयं स्वेच्छा से कष्ट सहने से आता है।
शरीर का आनंद स्वास्थ्य में है, मन का आनंद शान में।
संतोष ही आनंद का मूल है। वास्तविक और ठोस आनंद वहाँ है जहाँ अति नहीं है।
आनंद का रहस्य त्याग है।
दुनियावी चीजों में सुख की तलाश फिजूल है, आनंद का खजाना तुम्हारे अन्दर है।
आनंद का प्रथम स्रोत है स्वास्थ्य।
आत्मविश्वास ही वीरता की जान है।
अहंकारी के आभार के दबाव में कभी न आना।
जैसे कुश्ती लड़ने से शरीर-बल बढ़ता है, कठिन प्रश्नों को हल करने से बुद्धि-बल बढ़ता है, उसी तरह आई हुई परिस्थिति का शान्तिपूर्वक मुकाबला करने से आत्म-बल बढ़ता है।
आत्म-शक्ति ईश-कृपा से आती है; और ईश-कृपा उस आदमी पर कभी नहीं होती जो तृष्णा का गुलाम है।
खामोशी ही स्त्री का सच्चा जेवर है।
आँखें आवाज को नहीं देख सकतीं, उसी प्रकार भौतिक दृष्टि आत्मा को नहीं देख सकती।
जैसे नदी बह जाती है और लौट कर नहीं आती, उसी तरह रात और दिन मनुष्य की आयु लेकर चले जाते हैं और फिर नहीं आते।
अगर कोई मुझे अपना दर्शन एक शब्द में कहने को कहे, तो मैं कहूँगा "आत्मनिर्भरता", "आत्मज्ञान"।
आलस की कब्र में सभी सद्गुण दफन हो जाते हैं।
जिसके यहाँ रहना चाहते हो, उसके यहाँ अपनी आवश्यकता पैदा करो, दया पर पेट पल सकता है, आत्म-सम्मान नहीं मिल सकता।
धूल से नीच कौन होगा? मगर वह भी तिरस्कार सहन नहीं कर सकती, लात मारें तो सिर पर चढ़ती है।
समुद्र से भी बड़ी एक चीज है और वह है आकाश। आकाश से भी बड़ी एक चीज है और वह है मनुष्य की आत्मा।
आत्मा को रथ में बैठा हुआ योद्धा जानो, शरीर को रथ जानो, बुद्धि को सारथी जानो और मन को लगाम जानो।
मौन और एकान्त आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं।
धन्य है वह, जो कोई आशा नहीं रखता, क्योंकि वह कभी निराश नहीं होगा।
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