नई पुस्तकें >> सूक्ति प्रकाश सूक्ति प्रकाशडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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1000 सूक्तियों का अनुपम संग्रह
सात्त्विक लोगों को एकान्त छोड़ना चाहिए और बाजार में आना चाहिए। जब तक धर्म बाजार में नहीं आयगा और मंदिर, मठ, मस्जिद में ही कैद रहेगा तब तक उसकी शक्ति नहीं बनेगी। इधर तो दान-धर्म चलता है, पर बाजार में धोखाधड़ी चलती है। धर्म डरपोक बनकर मंदिर में बैठा रहता है। अब उसको आक्रमण करना चाहिए; यानि बाजार में, व्यवहार में, राजनीति में धर्मों चलना चाहिए।
- विनोबा
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धर्म वह है जिससे शान्ति और समाधान मिले।
- श्री ब्रह्मचैतन्य
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धर्म को छोड़ दोगे तो वह तुम्हें मार डालेगा; धर्म का पालन करोगे तो वह तुम्हारी रक्षा करेगा।
- महाभारत
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मनुष्य का बन्धु एकमात्र धर्म है, जो मरने के बाद भी आदमी के साथ जाता है। बाकी हर चीज शरीर के साथ मिट जाती है। धर्म एक ही है, भले ही रूप उसके सौ हों।
- बर्नार्ड शा
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धर्म एक ही है-नेक जिन्दगी।
- टामस फुलर
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धर्म ज्ञान में नहीं है बल्कि पवित्र जीवन में है।
- विशप टेलर
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धर्म का स्थान हृदय है।
- गाँधी
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नम्रता के सामने झुक जाना धर्म है। जब के सामने झुकना अधर्म है।
- गाँधी
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सर्वोत्तम धर्म है-सहनशीलता।
- विक्टर छू गो
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शान्ति के समान कोई तप नहीं है, संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है, तृष्णा से बढ़कर कोई व्याधि नहीं है, दया के समान कोई धर्म नहीं है।
- चाणक्यनीति
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अपने धर्म को दिखने दो। दीपक बोलता नहीं, चमकता है।
- कॉयलर
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आदमी धर्म के लिये झगड़ेगा; उसके लिये लिखेगा; उसके लिये मरेगा; सब कुछ करेगा मगर उसके लिये जियेगा नहीं।
- कोल्टन
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दो धर्मों का कभी भी झगड़ा नहीं होता। सब धर्मों का अधर्म से ही झगड़ा है।
- विनोबा
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स्वधम पर प्रेम, पर-धर्म पर आदर, अधर्म पर दया-मिलकर धर्म।
- विनोबा
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हम चीन में धर्मप्रचारकों को भेजते हैं ताकि चीनी लोग स्वर्ग पहुँच सकें। लेकिन हम उन्हें अपने देश में नहीं आने देते।
- पर्लबक
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अपना उल्लू सीधा करने के लिये शैतान धर्म-शास्त्र के हवाले दे सकता है।
- शेक्सपीयर
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दो चेहरे वाले आदमी से सावधान रहो।
- डच कहावत
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ठगो मत, चाहे ठगे जाओ।
- श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती
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धर्मज्ञान की प्राप्ति बाहरी दुनिया के पढ़ने से नहीं, अंदरूनी दुनिया के पढ़ने से होती है।
- विवेकानन्द
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जितनी जल्दी करोगे उतनी देर लगेगी।
- चर्चिल
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धीरज तमाम आनंदों और शक्तियों का मूल है।
- रस्किन
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नीतिनिपुण लोग निन्दा करें या स्तुति, लक्ष्मी आवे या जावे, मृत्यु आज ही आ जाय या युगान्तर के बाद, परन्तु धीर पुरुषों का न्यायमार्ग से कदम नहीं डिगता।
- भर्तृहरि
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मधुमयी वाणी के पीछे धोखाजनी छिपी रहती है।
- डेनिश कहावत
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