लोगों की राय

नई पुस्तकें >> समय 25 से 52 का

समय 25 से 52 का

दीपक मालवीय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15416
आईएसबीएन :978-1-61301-664-0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

युवकों हेतु मार्गदर्शिका

8

घबराएं नहीं, रुकें नहीं

दोस्तों ! इसी क्रम में लगभग 29 से 30-32वें पड़ाव पर भी मंजिल का यही कारवां लगा रहता है। मेहनत करने का और धीरे-धीरे फैसले लेकर आगे बढ़ने का। इस उम्र में हमें कहीं भी किसी भी दौर में कोई भी काम से रुकना नहीं है। डर कर या घबरा कर कोई राह बीच में नहीं छोड़ना है। क्योंकि अभी संघर्ष करने का समय और लेना है। पसीना बहाने का वक़्त अभी बचा है। इस दुनिया में सभी लोगों की प्राकृतिक मानसिकता ये ही होती है कि राह पर चलते चलते डर कर रुक जायें फिर चाहे वो किसी प्रकार का डर हो या कोई भी प्रकार का रास्ता हो चाहे अपनी मंजिल का या लम्बी दूरी का। उक्त अध्याय के अंतर्गत लेखक कुछ ऐसे तथ्यों पर भी प्रकाश डालना चाहता है जो संघर्ष और मेहनत की दुनिया से बाहर समृद्धि की दुनिया के बारे में है। आप उम्र के इस पड़ाव में जो भी उचित कार्य में लगे होंगे उसी मेहनत और उससे मिलने वाले छोटे-छोटे रिजल्ट को आगे बढ़ाते रहना और लक्ष्य से अटूट सम्पर्क बनाकर निरन्तर वृद्धि पथ पर प्रगतिशील रहना है। दर असल यही इस अध्याय की आत्मा है। अनुचित परिणाम से घबराना नहीं है और अवांछित डर से रुकना नहीं है। विवेकानन्द जी ने भी तो युवा पीढ़ी को ये ही कहा है कि ‘ उठो जागो और चलते रहो जब तक मंजिल नहीं मिले।’ इसी वजह से ये अध्याय लिखा गया है क्योंकि ये जो समस्या आपके रास्ते में आती है उम्र के इस पड़ाव में उसी वजह से भी हमारे कई युवा और महिला-पुरुष अपने एक महान गंतव्य या इच्छित परिणाम तक नहीं पहुँच पाते। आधी दूरी ही तय करके अपनी किस्मत को कोसते हैं। मानो आपको दोस्त के घर उसकी शादी में जाना है। आपने यात्रा प्रारंभ की और कुछ घंटे चलने के बाद आप थक जाते हैं तो आराम करने के पश्चात फिर से आप चलना प्रारंभ कर देते हैं क्योंकि आपको एक आनन्दमय उत्सव में पहुँचना है। बस इसी तरह अपने लक्ष्य से भी लगन लगा के आप निरन्तर चलते रहें। कहीं रुकें नहीं, कहीं डरें नहीं तो आप देखना एक दिन अपने सफलता के समारोह में पहुँच जाओगे और सपनों के उत्सव का आनन्द लोगे।

जब एक खिलाड़ी रेस के मैदान में दौड़ रहा है तो उसे तब तक नहीं रुकना होता है जब तक वो अंतः लाइन के पास नहीं पहुँच जाये क्योंकि वो अंतः लाइन उसकी मंजिल है। उसका सपना है, उसके अंतःकरण में उपजा एक सपना है। जिन्दगी की उसी दौड़ में एक तथ्य और उजागर होता है कि आपने यदि दौड़ने में जरा भी देर कर दी या आप रुक गये तो कोई और आपसे पहले पहुँच जायेगा अंतः लाइन के पास । ‘ ये अंतः लाइन आपके लक्ष्य के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है।’ पर दौड़ सबकी एक जैसी होती है चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो या आपकी रुचिकर विधा हो।

एक छात्र की दौड़ तब तक है जब तक वो चयन परीक्षा में पास होके प्रवीण्य सूची में आकर कोई प्रतिष्ठित नौकरी न पा ले। अगर कोई परीक्षा में चयन होने से केवल 4 या 5 अंकों से रह जाता है तो उसे बिल्कुल भी रुकना नहीं चाहिए। मेहनत करने से घबराना नहीं चाहिए बढ़ते समय से। अगर शुरुआती समय में अच्छा प्रदर्शन नहीं रहा परीक्षा में तो उसे बिल्कुल नहीं रुकना चाहिए पढ़ने से । अगर आपका लक्ष्य वही है तो या आपने उसी का सुन्दर सपना देखा है तो।

कुछ युवक या युवती जो अपने बुरे राजनैतिक दौर से गुजर रहे हैं उन्हें भी ये अपना सपना नहीं छोड़ना चाहिए। लोगों से मिलिए, जुड़िए और संघर्ष करके संगठन बनाइये। कुछ अच्छे-अच्छे काम करके सेवा कीजिए। देखना आने वाले 5 सालों में जीत आपकी ही होगी क्योंकि मेहनत के बाद ही जीत है। और ये जीत दिलाएगी आपको नियति और आपके कर्मों को तौलते हुए  प्रकृति। एक कलाकार को तो बिल्कुल भी इस पथ से हटना नहीं चाहिए। अगर उसने इस क्षेत्र में अपना लक्ष्य चुना है तो। ये जिन्दगी भी तो एक नाटक ही है बस उसमें अभिनय करते जाओ, कला का मंचन करते जाओ। कई प्रकार के दर्शक, श्रोतागण और पाठकगण होते हैं। इनमें से एक न एक दिन तुम हर किसी की पसंद पे खरा उतरोगे। लोग आपको पसंद करेंगे और आपके लिये ताली भी बजाएंगे। खाली कुर्सी देखकर आप अपने लक्ष्य को ठेस न पहुँचने देना। कुर्सी धीरे-धीरे भरती जाएंगी। भीड़ का जमावड़ा बढ़ता ही जाएगा यदि आपकी अच्छी कला में सच्ची लगन होगी। एक कलाकार का मैं आपको किस्सा सुनाता हूँ कि ‘उसे अपने कद-काठी और रंग की वजह से हर जगह से नकार दिया जाता था फिर भी वो निरंतर इसी पथ पर बढ़ता रहा और आखिरकार उसे अभिनय करने का मौका मिल ही गया और फिर कभी उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज उसे पूरी दुनिया कला का महानायक ‘अमिताभ बच्चन’ के नाम से जानती है।

जैसे एक किसान कड़ी धूप और कड़कड़ाती सर्दी में भी नहीं रुकता निरन्तर अपनी मेहनत की ओर बढ़ता रहता है। जैसे एक देश का जवान सर्दी-गर्मी न देखते हुए हमारी रक्षा करने के लिये खड़ा आगे बढ़ता रहता है। ठीक उसी प्रकार हमें भी अपने सपनों की मंजिल को बीच में से नहीं छोड़ना चाहिए, बिना रुके, बिना घबराए त्वरित गति से आगे बढ़ते रहना चाहिए। अन्यथा हमारी वैसी ही दशा होगी जैसी अगर कोई किसान सर्दी-गर्मी देखकर यदि रुक जाए और फसल बोना छोड़ दे तो दुनिया में अन्न की क्या समस्या पैदा हो जाए। कोई जवान यदि हमारी रक्षा करना छोड़ दे तो देश का क्या हाल होगा। बस इसी तरह के कोई अंजाम को हम प्राप्त हो सकते हैं यदि हमने मेहनत करना छोड़ दिया तो। इसीलिए लाल बहादुर शास्त्री ने भी ये नारा दिया था ‘जय जवान - जय किसान’। इसके पीछे का तर्क असल में इसी अध्याय में निहित है।

किसी के भी दृढ़ संकल्प को कुतरने वाली असल में ये एक मानसिक समस्या होती है इसका भौतिकता और वस्तु से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। मन में उठने वाली नकारात्मक लहरें पहाड़ से ऊँचे संकल्प को भी गला सकती हैं पर जरूरी नहीं कि गला ही दें। इस पर रोक और नियंत्रण भी अपने पास ही है।

हमारे युवा साथी गण जो छोटे-छोटे परिणामों की कश्मकश में उलझे हैं पर ठीक से उसे भी प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। जिनके पास पर्याप्त संसाधन होते हुए भी किसी रिजल्ट पर नहीं पहुँच पा रहे हैं उन्हें ‘एक महिला से सीखना चाहिए जोकि अपने देश की ही है’ अरुणिमा सिंह, एवरेस्ट फतह करने वाली। इस महिला ने मन में एवरेस्ट से भी ऊँचा और बुलन्द हौसला रखा होगा। तब ही तो वो सबसे ऊँची चोटी को भी पार कर गई।

हम तो रोज हौसले बनाते हैं और किसी के कहने पर रोज हौसले तोड़ भी दिया करते हैं। हम इतने आसान से रास्ते पर घबरा कर रुक जाते हैं और कोई इंसान टेढ़े-मेढ़े बर्फीले रास्तों पर भी नहीं रुकते। जो लोग अपना लक्ष्य तय करने के बाद बीच में से रुक जाते हैं वो अपने साथ ही कितना बड़ा पाप करते हैं। जरा तुलना करके देखिए अपनी उन लोगों से। जैसे आप सलाह ले सकते हो किसी अनुभवी से या अपने गुरू से, जीवन में किस रास्ते पर चलना है। और अरुणिमा सिंह को तो ‘लाशें’ रास्ता बताती थीं, आगे किस तरफ मुड़ना है। तो भी वह मुड़ती रही और निरन्तर आगे बढ़ती रही। इस तरह सबसे ऊँची चोटी पे पहुँच के सबसे ऊँचा लक्ष्य प्राप्त किया है देश की बेटी अरुणिमा सिंह ने। कुछ लोग जो पर्वतारोही होते हैं या एवरेस्ट फतह करते हैं वो 8848 एम यानी 8.84 किमी ऊँचा चढ़ जाते हैं अपनी मंजिल को पाने के लिये और कुछ लोग जीवन के छोटे-छोटे रास्ते भी पार नहीं कर पाते जो कि सीधे सीधे और आसान होते हैं।

जिन लोगों को उम्र के इस पड़ाव तक जिम्मेदारियों का अहसास नहीं हुआ है (चाहे वो पिता की तरफ से, धन सम्पदा से हो या न हो), जिनकी आँख अभी भी नहीं खुली है या जो कुछ करते तो हैं पर सिर्फ नाटकीय ढंग से किसी को दिखाने के लिये, मैं जानता हूँ हर शहर में ऐसे कई लोग या युवा हैं जो ऐसा दिखावा करते हैं। उनको मैं ये कहना चाहता हूँ कि आप ये दिखावे में भी समय बर्बाद न करें क्योंकि ये समय भी बहुत मूल्यवान है।

ईश्वर सबको तौल के पल-पल गिन के समय देता है। एक पल ठहर के आप अपनी अन्तरात्मा को अपने पिछले हर पल का हिसाब दीजिए। आपको पता लग जाएगा कि मैंने अभी तक क्या किया है। जोकि मेरे लिये कारगर हो और आगे समय को कैसे उपयोग करना है इसकी भी सही योजना बन जाएगी।

मेहनत का साथी है तू ,
सफलता का तू है हिस्सेदार
ये रास्ते चीख-चीख के कह रहे तुम से...
कि गुजर जाओ हमसे...
और भर लो कोरी उम्मीदों में रंग
और पा लो चित्त में नयी उमंग ।

बस तू कहीं घबराना नहीं...
कहीं रुकना नहीं...।
¤ ¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book