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समय 25 से 52 का

दीपक मालवीय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15416
आईएसबीएन :978-1-61301-664-0

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युवकों हेतु मार्गदर्शिका

5

लोगों को सोचने दो

लोग क्या सोचेंगे,
ये भी आप सोचेंगे
तो फिर लोग क्या सोचेंगे

दोस्तों ! जिन्दगी की किताब में और मेरी इस किताब में भी समय हो चला है उम्र के 27वें से 29वें पड़ाव पर, जब आपको जिन्दगी कुछ कड़वा सा, कुछ अटपटा सा घूँट पिलाएगी। और मेरी ऐसी उम्मीद है आप सब से कि आप एक दिन जरूर सोने सा चमकोगे और सोने को चमकाने के लिये जो आग उस पर पड़ती है, उसमें घी डालने का काम करते हैं आप के आसपास के लोग, रिश्तेदार, दोस्त। और यही वो लोग भी हैं जो अपनी सोच की छेनी और तानों का हथौड़ा लेकर के आप को तराशेंगे, बस यही वो मरमरी घड़ी है जिन्दगी की जिसमें आपको बिल्कुल भी दर्द नहीं होना चाहिए ना ही आपको अपने आपको टूटने देना है। और अगर आपने प्रकृति की इस सुन्दर निर्माण प्रक्रिया में थोड़ी भी चूक कर दी तो फिर आप न तो सोने की तरह चमक पाओगे न ही सुन्दर मूरत बन पाओगे।

दोस्तो ! जीवन के इस पड़ाव में जब आप कोई लक्ष्य बनाते हैं तो ये ही वो लोग हैं आपके आसपास के जिनके बारे में ये पूरे अध्याय में लेखक आपको बता रहा है। मेरे अनुमान अनुसार लगभग 50 प्रतिशत युवा-युवतियों के घर वालों को भी ये लोग ताना मारते हैं। और अपनी सोच/बात उनके द्वारा आप से मनवाना चाहते हैं तथा मनोबल गिरा के समाज में फिर से रूढ़िवादी पद्धति कायम करना चाहते हैं इससे और समाज अवगति को प्राप्त होता है।

उदाहरण के लिये : कोई युवती माडलिंग के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने का ठान चुकी है तो आसपास के लोग, रिश्तेदार उसे और घरवालों को क्या ताना मारेंगे आप जानते ही हैं। कोई युवक अगर ज्यादा उम्र हो गई हो जिसकी वो आइ.ए.एस. की पढ़ाई में लगा हुआ है तो लोग फिर सोचेंगे और ताना मारेंगे कि ना तो कमाई, ना ही शादी, बस इस उम्र में समय खराब कर रहा है वगैरा-वगैरा इत्यादि।

दोस्तों, जीवन में कहीं न कहीं इन बड़ों की बातें भी सत्य हैं। परन्तु इससे लेखक इस पुस्तक के माध्यम से आपको ये सलाह देना चाहता है कि अपने सपनों की मंजिल की राह में और लक्ष्य के बीच में किसी की भी कोई सोच का फर्क और तानों का असर मत पड़ने देना क्योंकि जो लोग इनको नकार देते हैं फिर भी यही लोग उनके लिये बोलते हैं बस तानों की जगह तारीफ करते हैं और फूल झड़ते हैं इनके मुँह से। लोग वही रहते हैं बस अल्फ़ाज बदल जाते हैं। तो इस अध्याय की आपसे यही आशा है कि जीवन की इस अनमोल घड़ी में बहुत सोच-समझ कर फैसला लें क्योंकि अन्तिम फैसला आपका ही मान्य रहता है।

इस देश में ऐसे बहुत से युवा सह-साथी तथा बड़ी उम्र के लोग हैं शादीशुदा, जिनकी बहुत समय बाद चेतना जगती है - कुछ करने की, योजना बनाने की। पर फिर भी उनके जेहन में, मन मस्तिष्क में कोई स्त्रोत नजर नहीं आता, ना ही कोई उपाय सूझता है अपने जीवन के प्रति, तो इस समय आप गहरी साँस लीजिए और अपने पुराने अनुभवों का अवलोकन करो, तथ्यों के साथ चिन्तन करो कि मुझमें भी कोई प्रतिभा है क्या, कोई खास आदत है क्या, जो मुझे बाकी से अलग करती है या जिसको मैं अपने जीवन का आधार बना सकता हूँ। चाहे अस्थायी या स्थायी रूप से... और फिर भी कुछ समझ में न आये तो लेखक आपको बहुत खास सलाह देना चाहता है जो लगभग लाखों युवकों के काम आ सकती है कि दोस्तों ! आप इस समय फिर कुछ समय तक उन लोगों के साथ रहिए जो आपके आदर्श हों या जिनका आप बहुत सम्मान करते हों या आपके आसपास ऐसे लोग हों जो बहुत महान उपलब्धियाँ या बड़ी-बड़ी सफलताएं पाए बैठे हों। उनसे मिलिए-जुलिए और उनकी संगत में रहिए क्योंकि हिन्दू धर्म में कई साधु-सन्त कह गये हैं कि संगत का असर बहुत होता है

दोस्तों ! युवावस्था वो अवस्था है जिसमें हर पल जोश और स्फूर्ति बनी रहती है। ये कभी बिना सोचे-समझे जोश से कुछ भी करने की सोचते हैं। जोश दिखाना अच्छी बात है परन्तु बहुत सोच समझ के साथ। उदाहरण के लिये आपने अपनी स्थिति को अंबानी बनाने का सोच लिया जोश के साथ तो मैं आपको बता दूँ कि कोई काम इस दुनिया में मुश्किल नहीं होता परन्तु उसे भी एक-एक सीढ़ी चढ़ना होता है, सीधे सफलता की सीढ़ी पर छलांग नहीं लगा सकते। अगर लगाओगे तो बहुत बुरी तरह से गिरोगे और आपके सपनों में मोच आ जायेगी और मेहनत आपकी टूट जाएगी। क्योंकि जिसका आपने सपना देखा है वो भी कहीं न कहीं समय के साथ एक-एक सीढ़ी चढ़कर ऊपर पहुँचा है। आपके जीवन में लोगों की सोच तो बाद में आयेगी उससे पहले आपकी ये गलत सोच ही आपकी सफलता के आड़े आ जाएगी।

बहुत से लोगों के जीवन में ऐसा समय आता है जब वह अपनी ही सोच का शिकार हो जाता है और मंजिल के आधे रास्ते से ही वापस लौट आता है। एक ये भी कारण है युवा पीढ़ी के उन्नति के गिरते हुए ग्राफ का। ऐसा उन्हीं लोगों के साथ होता है जो मन से बहुत कमजोर होते हैं तथा जिनके संकल्प में शक्ति नहीं होती तथा जिनमें आत्मविश्वास का अच्छा-खासा अभाव रहता है। यदि किसी कार्य की शुरुआत में इच्छित परिणाम नहीं भी आए हैं या पहले चरण की परीक्षा में कम अंक प्राप्त हुए हैं तो ये अपनी ही बुरी सोच का शिकार हो जाते हैं। जिससे इस देश की भावी तरक्की में मेहनत का एक बीज कम हो जाता है।

दोस्तों ! ईश्वर ने जब तुम्हें या मुझे बनाकर भेजा था तो ब्रह्माण्ड की सम्पूर्ण शक्तियाँ अच्छी और बुरी दोनों अपने अन्दर समाहित करके भेजा है। आपके भीतर दिमाग (बुद्धि) आपका सच्चा साथी, तो मन आपका सौतेला साथी है। ये मन ही है जो आपको हर समय भटकाता रहता है और पूरी तरह से इसके वश में हो गये तो फिर दर-दर भटकना पड़ता है। ये मन ही है जो हर समय नयी सोच उत्पन्न करता है। इसी मन की वजह से इस पुस्तक में ये अध्याय तथा नियति ने आपके जीवन में ये सोच की समस्या दी। पर समस्या ये है कि अच्छी सोच कोई नहीं बताता, सब उल्टी और नकारात्मक सोच से ही परिपूर्ण हैं। और इसी सोच से भी युवा शक्ति खोखली हो रही है।

दोस्तों ! इसी अध्याय में मन-महाशय की और भी करतूतों पर प्रकाश डालना चाहूँगा कि ये सौतेला साथी हर दिन इंसान के दिमाग में 60000 विचार उत्पन्न करता है, तो हो सकता है इन विचारों का आपके लक्ष्य से, आपकी सफलता से कोई सम्बन्ध न हो। उनमें से 60 विचार भी या 6 विचार भी कभी-कभी आपके मतलब के न हों पर मन तो आपको भटकाने के लिये उत्पन्न करेगा। उसको जिस बुराई के साथ ईश्वर ने बनाया है वो तो उसे फैलाएगा ही। इसीलिए तो इस पुस्तक के माध्यम से प्यारे उम्मीदार्थियों को लेखक ये ही संदेश देना चाहता है कि लोगों की सोच को अपने सपनों के बीच में मत आने दो। चाहे दो तीन बार जीरो रिजल्ट ही क्यों न आये ।

हम जितनी बार असफल होंगे उतने ही सफलता के करीब जाते जायेंगे। मानो, हमें किसी की दूकान पर जाना है जो यहाँ से दस कदम की दूरी पर है। पर कुछ लोग चलते-चलते 7-8 कदमों में ही हार मान जाते हैं और मंजिल को बीच रास्ते में ही छोड़ देते हैं। पर ये नहीं जानते कि दो कदम और चल लेते तो हमें इच्छित सफलता मिल जाती। बल्कि मैं तो ये कहूँगा कि असफलता ही सफलता की कुँजी है। हार और बुरे परिणाम मिलना कहीं न कहीं आपकी सफलता की जड़ें भी है। ऐसी जितनी मात्रा में जड़ें होंगी सफलता का तना भी उतनी ही विशालता से खड़ा होगा और समृद्धि के मीठे-मीठे फल उगेंगे। याद रखिए किसी इमारत को बनाने के लिये जितना नीचे जमीन में जाएंगे उतनी ही समय तक वो इमारत खड़ी रहेगी। आप अपने दृढ़ संकल्प से सपनों की इमारत को इतना ऊँचा बना लो कि ये ताने मारने वाले लोग आपको बहुत छोटे नजर आयें।

दोस्तों ! घर की जरूरतें और कन्धों पर जिम्मेदारियों का वजन ज्यादा होने की वजह से आप कोई छोटा मोटा धंधा कर रहे हो और ये लेख पढ़ने के बाद आप कुछ और सोच रहे हैं तो लेखक आपको यहाँ दो सलाह देना चाहता है कि एक - इस दुनिया में कोई भी काम मुश्किल नहीं है। कड़ी मेहनत और धैर्य के साथ। दो - इस संवेदनशील घड़ी में आप अपने वर्तमान से भविष्य का तालमेल बैठा कर देख लें और फैसला लें।

दोस्तों ! लोगों की सोच का ये जो अध्याय है वैसे तो किसी किसी के लिये कोई मायने नहीं रखता पर कुछ लोगों के लिये बहुत हद तक मायने रखता है। इसीलिए तो ईश्वर ने आपकी जिन्दगी में और मैंने इस पुस्तक में इस अध्याय को जोड़ा है। जो लोग बचपन से ही बहुत जागरूक, मेहनती, जोशीले होते हैं वो चाहे अमीरी-गरीबी, छोटे-बड़े से परे हो, उनके लिये ये कोई बड़ी समस्या नहीं है। परन्तु जिनकी आँखें बाद में खुलती हैं वो लोग इस समस्या के शिकार हो गये तो उनका बना बनाया खेल बिगड़ सकता है। और फिर दोबारा मन में ही दृढ़ संकल्प के. साथ मनोबल बनाना कठिन होता है। आज विज्ञान का और चमत्कार का जमाना है। उदाहरण देखे बिना ये कोई काम करते नहीं हैं। इसीलिए मैं कुछ ऐसे उदाहरण बताने जा रहा हूँ जिनको आप चमत्कार ही मानिए। उनकी आप तुलना करना अपने आज से, अपनी इसी उम्र से और फिर आशा करना उनके परिणाम से, सफलता से कि मैं भी एक दिन ऐसा ही बनूँ।

  • हरियाणा प्रदेश में जहाँ छोरियों को अधिकतर चूल्हे-चौके से बाँधा जाता है वहीं की दो लड़कियाँ बाल कटवा कर लड़कों से कुश्ती लड़ती थीं दंगल में... और बाद में उन्होंने भारत के गौरव में, भारत की सरकार में कितनी बार चार चाँद लगाए हैं। यदि मान लो वो आपकी उम्र में ‘लोगों की सोच’ का शिकार हो जातीं तो...!  गीता-बबीता फोगाट

  • पेट्रोल पम्प पर काम करने वाला नौकर अपनी आधी तनख्वाह सिर्फ बड़े होटल में चाय पीने पर ही खर्च कर दिया करता था। उसके साथियों ने उसे बहुत टोका, ताने मारे और पागल कहकर मजाक उड़ाया करते थे उसका पर वो नहीं माना और लगातार ऐसा करता रहा। उसने किसी का नहीं सोचा... नतीजा आप जानते हो। धीरू भाई अम्बानी।

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