नई पुस्तकें >> समय 25 से 52 का समय 25 से 52 कादीपक मालवीय
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युवकों हेतु मार्गदर्शिका
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दूसरों की कामयाबी से सीखें
दोस्तों, ये जो अध्याय है इसके पिछले अध्याय का पर्याय भी हो सकता है कुछ मात्रा में, पर इस अध्याय में खास ये है कि हमारी मंजिल की गाड़ी जिस पर सवार होकर हर आदमी अपने पसंदीदा मुकाम पर पहुँचता है अगर इस गाड़ी के चारो पहिए ‘ मेहनत, संघर्ष, सब्र, धैर्य ’ बराबर से चलते रहें, इसमें अगर कोई खराबी नहीं आई तो व्यक्ति जल्दी ही अपनी मंजिल तक पहुँच जाता है। इस अध्याय में इस तथ्य का वर्णन है कि कैसे हमें इस गाड़ी की खिड़की में से झांक कर अच्छे लोगों को देखना है, उनसे सीखना है।
दोस्तों ! हमारे मन में जब कभी भी, किसी भी उम्र में, किसी भी स्थिति में ईर्ष्या की तलवारें चलने लगती हैं तो वो वास्तव में अपने ही सपनों को छिन्न-भिन्न करती हैं, अपने ही दृढ़-संकल्प को खोखला करती हैं। क्योंकि उस पर घमण्ड का दानव हावी हो जाता है और यहीं से मंजिल के रास्तों पर अपने कदम उल्टे पड़ने लगते हैं। यानी कहीं न कहीं हम धीरे-धीरे अवगति को प्राप्त होने लगते हैं मानसिक रूप से, इस भौतिक जगत में इत्यादि।
दोस्तों ! जब हम अपनी किसी विधा में लगभग आधे से ज्यादा मेहनत कर चुके होते हैं, हम लगभग मंजिल के करीब होते ही होते हैं तब भी हमें बहुत सचेत होने की आवश्यकता होती है ना कि खुश होने की, यही तो सही समय है कि आप इस घड़ी में, दूसरों की तरक्की से जलें नहीं बल्कि उनसे कुछ विनम्रता से सीखें। इस अध्याय में इसी पर इसीलिए प्रकाश डाला जा रहा है। आज की युवा पीढ़ी पर अधिकतर क्रोध और आक्रोश हावी रहता है। वो उसी विधा में सब कुछ अकेले कर लेना चाहते हैं। चाहे कोई उसी विधा का मास्टर ही क्यों न हो। उससे ईर्ष्या करना पसंद करेंगे। जलन का भाव रख लेंगे पर उससे कुछ सीखेंगे नहीं। परन्तु वो ये नहीं जानते कि शुद्ध प्रगति इसी में है कि आप सबसे थोड़ा-थोडा़ सीखते जाइए। मानो किसी साहिल पर हम रेत का घर बनाते हैं या वहाँ महल बनाते हैं और पर बहुत मेहनत-संघर्ष करके उसे ऊपर तक लाते हैं परन्तु ऊपरी हिस्सा यदि हमने घमण्ड और ईर्ष्या के चलते कमजोर बना दिया तो महल तो पूरा बन जाएगा पर उतना बुनियादी नहीं बनेगा जितना किसी दूसरे का बनता है साहिल पर। हमें अपने अदभुत लक्ष्य को पाने की साफ ललक में ईर्ष्या के जरा भी दाग नहीं लगने देना है, न ही हमें इस सफर में वैचारिक मतभेद की दीवार बनाना है।
इस महत्वाकांक्षी तथ्य की महत्वपूर्णता आपको इस उदाहरण से समझ में आ जाएगी जो कि इस पर सटीक बैठती है। यदि हम दूसरों की कामयाबी से नहीं सीखते, ईर्ष्या पाल लेते तो आज हमारे देश में स्वदेशी तकनीक से बड़े हथियार और खतरनाक मिसाइलें रूस और जापान की तर्ज पर आज देश में नहीं तैयार होतीं। इससे पहले हमें कई देशों पर निर्भर रहना पड़ता था और अनायास धन भी खर्च होता था। पर हमने उनकी तरक्की से सीखकर फिर मेहनत की तो आज देश भौतिक मशीनों की उपलब्धता से सम्पन्न है।
इससे यही सीख तो हमें भी लेना चाहिए कि हमारे आस-पास दोस्त-रिश्तेदार इस विधा में आश्चर्यजनक प्रगति कर रहा है तो उससे सीखिए, उसे देखकर सीखिए या उसे सुनकर सीखिए या उसका अवलोकन करके सीखिए पर उससे मानसिक मतभेद मत कीजिए।
पहले भारतीय करेन्सी की स्याही और कागज बाहर से आयात होता था, दूसरे कई देशों से मंगवाना पड़ता था पर अब किसी की तरक्की से ही सीखकर देश में ही निर्मित होती है भारतीय मुद्रा की स्याही। इससे अपने आप ही धन और समय की बचत हुई है तथा देश अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर कुछ मुद्दों पर और सामर्थ्यवान बन गया है। ये उपलब्धि है किसी से कुछ सीखने की और मतभेद न करने की।
आज देश के कई शहरों और महानगरों में युवाओं की लाखों की भीड़ है। जो इस पुस्तक को पढ़कर इस अध्याय को यदि मन में बैठा लें तो भी उनकी नैया पार हो सकती है। और कई लोगों ने ऐसा किया भी है कि दूसरों को देख देख कर, उनका तरीका अपना कर, अपना दिमाग लगाकर बहुत आगे बढ़ चुके हैं। इस जिन्दगी की रेस में वो उन्हीं को पीछे छोड़ चुके हैं जिनके पीछे वो चला करते थे कभी। ऐसा विशेषकर वो लोग कर सकते हैं जिनका अभी तक कोई लक्ष्य निश्चित नहीं हो पाया है या ज्यादा समय बीतने पर भी जिनकी आराम की नींद नहीं टूट पाई है अभी। जिन्हें मनुष्य रूपी योनि का कोई सिद्धांत ही नहीं समझ आया है। अभी तक वे लोग अपने आस-पड़ोस में, दोस्त रिश्तेदारों में किसी से भी सीख सकते हैं चाहे वो कोई भी विधा का हो, किसी भी क्षेत्र का हो। सीखने से उम्र का कोई सम्बन्ध नहीं है, न ही समय की बंदिश है।
आप जीवन के किसी भी मोड़ पर अपने आदर्श व्यक्ति के सानिध्य में आकर एक नई शुरुआत कर सकते हैं। चाहे आप विवाहित हों या न हों इसका उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और न ही हमें असर पड़ने देना है। वैसे तो कम से कम हरएक युवक को अपने जीवन साथी के गठबन्धन से पहले जीवन की बागडोर सम्भाल लेना चाहिए।
वैसे तो ये सीखने की परम्परा इस धरती पर अनादिकाल से चली आ रही है। अगर दूसरों की प्रगति से सीख की बजाय ईर्ष्या की परम्परा होती तो इस दुनिया में कभी गुरु-शिष्य की प्रथा ही नहीं जन्म लेती, न गुरु-शिष्य के बीच एक अभीष्ट रिश्ता बन पाता और ना ही इस धरती की गोद में कभी ऋषि वाल्मीकि, विश्वामित्र, तुलसीदास, विवेकानन्द जी जन्म ले पाते। जबकि इन लोगों के उच्चतम आदर्श विचार से ही ये सर्वोत्तम गुण सीखने की कला पनपी है इस दुनिया में।
दोस्तों अपने जीवन में भी कोई भी अच्छा नियम या शुद्ध विचार यदि हम शुरूआती स्तर पर छोटे हिस्से से ही शुरु कर दें तो आगे का पूरा जीवन इस छोटी सी आदत से सुधर सकता है। एक बीज में यदि हमने शुरु में ही अच्छी खाद या दवाई का उपयोग कर लिया तो आगे भविष्य में हमारी फसलें अविराम हरी-भरी लहलहाती रहेंगी। उसी तरह किसी भी लक्ष्य को पाने का शुरूआती स्तर है ‘छात्र जीवन’ या ‘पढ़ाई’। ये ही वो समय होता है जिस पर 90 प्रतिशत युवा-युवतियों का भविष्य निर्भर करता है। जैसी जिसकी पढ़ाई होगी वैसी उसकी मानसिक योग्यता होगी। अच्छी पढ़ाई होगी तो जीवन संवर सकता है और जबर्दस्ती की पढ़ाई होगी तो जीवन व्यर्थ हो सकता है। तो ‘ अपनी पढ़ाई को और प्रखर बनाने के लिये हमें दूसरे छात्रों से, हमारे मित्रों से हमें सीखना चाहिए। ना कि अपनी झूठी छवि बनाना चाहिए, अपने घमंड और वैचारिक मतभेद की आड़ में। क्योंकि इस शुरुआती समय में ही आपने इस गुण को ठुकरा दिया और अहम का व्यक्तित्व बना लिया तो दोस्तों, आगे का पूरा सुन्दर जीवन छिन्न-भिन्न हो जाएगा तुम्हारा, तुमसे जिनकी आशाएं है वे सब विछिन्न हो जाऐंगी। इसलिए दूसरों से सीखने की आदत आप अभी ही डाल लीजिए। अगर इस आदत के चलते आपकी पढ़ाई अच्छी हो गई तो उच्च शिक्षा हेतु किसी भी अच्छी यूनिवर्सिटी में आसानी से प्रवेश पा सकते हो या अच्छी स्कालरशिप प्राप्त करके विदेश जा सकते हो। जब स्कूली शिक्षा अच्छी होगी तो उच्च शिक्षा अच्छी होगी और यही आदत आपने जारी रखी उच्च शिक्षा में तो अच्छी नौकरी अच्छा पद होगा, एक आदर्श रहन-सहन होगा फिर भी इस आदत को जारी रखा तो उसी नौकरी में आप शीर्ष तक भी पहुँच सकते हो या आप किसी संस्था में हो अगर तो संस्था के अधिपति भी बन सकते हो।
इस शुरुआती छात्र जीवन में ही हमें ईर्ष्या नाम के अवगुण से बचना है क्योंकि जिन्दगी की कोई भी अच्छी-बुरी आदत इस समय में आसानी से लग जाती है। और... बुरी आदतें और जल्दी लग जाती हैं।
दोस्तों ! आपने जीवन में जो भी करने का ठाना है या जो भी आप कार्य में संलग्न हो वहाँ किसी न किसी से बेझिझक सीखते रहिए। दूसरों की तरक्की से तो बिल्कुल सीखिए। देखना आपका विनम्रता से झुकने का ये गुण आपको उनसे भी आगे ले जा सकता है, जिनसे सीखने के लिये लेखक आपको कह रहा है।
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