नई पुस्तकें >> समय 25 से 52 का समय 25 से 52 कादीपक मालवीय
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युवकों हेतु मार्गदर्शिका
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सब सम्भव है
इस दुनिया में कई सारे मनोवैज्ञानिकों तथा संत महात्माओं का तर्क है कि असम्भव कुछ भी नहीं है। कोई भी काम मुश्किल नहीं होता यदि उसे चातुर्य नीति से किया जाए तो जिसने भी पूरी लगन से मन में ठाना है उसे पाकर ही माना है। ‘अध्यात्म जगत में कुछ ने भगवान को पाया है। भौतिक जगत में कुछ ने सबसे ऊँचे शिखर ‘एवरेस्ट’ को पाया है।’ और लोगों ने अपने-अपने स्तर से अपने हिसाब की धन-दौलत को पाया है। जब आदमी के चित्त में किसी वस्तु के प्रति या कोई कार्य के प्रति लगन पैदा होती है तो वहीं से उसके मन में संभावना का जन्म हो जाता है। और उसी संभावना के चीर को यदि अपनी मेहनत से बुनने लगे तो संभावना साकार रूप लेने लगती है। और इसी पर से ये तर्क निकला है कि इस दुनिया मे कुछ भी असंभव नहीं है। इंसान की कड़ी मेहनत और उसका जबर्दस्त संघर्ष संभावनाओं की सारी पराकाष्ठाओं को पार कर जाता है। और उसका जज्बा इस जहाँ में मूर्त रूप लेकर आता है।
दोस्तों ! आप उम्र के जिस भी पड़ाव पर हो, जिस भी लक्ष्य में संलग्न हो उसी स्तर से इस बात को समझिए कि इस दुनिया में असंभव कुछ नहीं, यहाँ लेखक आपको अंबानी बनने के लिये नहीं कह रहा, न ही सिकन्दर बनने के लिये दुनिया जीतने की। आप जिस भी स्थिति में हो उसी स्थिति में कम से कम अपने माँ-बाप का छोटा सा सपना पूरा कर दीजिए जो उन्होंने तुम्हारे लिये आँखों में सजा रखा है। और हमें सबसे पहले इसी बात पे ध्यान भी देना चाहिए न कि बिना लगन के ऊँचे-ऊँचे ख्वाब देखना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में धीरू भाई तो बहुत हैं लेकिन सब अंबानी नहीं हैं। यहाँ गान्धी भी बहुत हैं पर कोई महात्मा नहीं है। उसी तरह अपनी संभावनाओं का आधार पहचानो, अपने सपनों में झांक कर देखो कि जो सपना मैंने कुछ समय पहले देखा है उसके लिये वास्तविक रूप से मैं कुछ कर रहा हूँ कि नहीं, उसी चीज में मेरी लगन कितनी है। और मैं जो मेहनत कर रहा हूँ वो सही रूप से इससे सम्बन्धित है कि नहीं। अगर इन सब का तालमेल नहीं बैठता है तो निश्चित ही शेख चिल्ली की तरह हवा में सपने देख रहे हैं जिसका मूल रूप से कोई ठोस आधार नहीं है।
इसका सबसे ज्वलन्त उदाहरण है मंगलयान जो भारत ने आज से दो साल पहले इसरो के माध्यम से भेजा था। इसमें सबसे गौर तलब ये है कि ये अन्य देशों की तुलना में और अपने देश के अन्य यान की तुलना में बहुत सस्ता था। इस यान को मंगल पर भेजने का सफर बहुत रोमांच और आश्चर्य से भरपूर था क्योंकि मंगल पृथ्वी से चाँद की अपेक्षा ज्यादा दूर है। और जितना बजट चाँद पर भेजने में बनता है उसके आधे बजट में मंगल पर भेजकर संभावनाओं को सच कर दिखाया है इसरो ने, और पूरी दुनिया में भारत का गौरव बढ़ाया है। हालांकि मंगल पर मंगलयान भेजने का सफर चुनौतीपूर्ण था, रिस्की भी था। पर उस पर की हुई सच्ची मेहनत और संघर्ष सभी चुनौतियों को चूर-चूर कर देता है और असंभव में से ‘अ’ का अस्तित्व ही मिटा देता है।
अपने कड़े अभ्यास से ही संभावनाओं को साकार रूप दिया जा सकता है। इस धरती पर बहुत से ऐसे शीर्ष लोग हुए हैं जिनको उदाहरण के तौर पर हम देख सकते हैं। जैसे : ब्रूस-ली जो पांच हजार पंच रोज मारता था। उसमें इतनी फुर्ती थी कि बल्ब की बटन चालू करने के बाद, बल्ब जलने से पहले वो कुर्सी पर बैठ जाता था। उसके बैठने के बाद ही रोशनी आती थी। ब्रूस-ली अपने इस अदभुत अभ्यास के चलते ही दुनिया का सबसे बड़ा मुक्केबाज बना और खास बात ये है कि सबसे कम उम्र में ही उसने ये खिताब हासिल कर लिया था। अगर आपने जीवन के किसी भी मोड़ पर छोटी-छोटी संभावनाओं को सच कर लिया है और आपके अंदर से आवाज आई होगी आखिर मैंने कर दिखाया तो फिर जीवन की बड़ी-बड़ी संभावनाओं को अपने सच्चे लक्ष्य को को भी आप पूरा कर सकते हैं। बस शर्त है इस बार निरन्तर मेहनत करना होगा और उसी दिशा में अपनी सोच को भी बढ़ाना होगा। बढ़ते जमाने में एक समस्या ये भी हो चली है कि आज हमारे किशोरों के हृदय में जो होता है वो अधरों पर नहीं होता और जो अधरों पर होता है वो हृदय में नहीं होता। किसी भी कार्य की पूर्णता के लिये इन दोनो में यही सम्बन्ध होना जरूरी है। अर्थात जिन लोगों ने आध्यात्मिक जगत में ईश्वर को पाया है उनके हृदय में पहले ईश्वर विराजमान हुए, जिन लोगों ने पर्वत की ऊँची चोटी को पाया है, पहले हृदय से ऊँची चोटी पर चढ़े हैं। इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है पर इसकी भी एक शर्त है कि विचार विच्छिन्न नहीं होने चाहिए, सपने सच्चे होना चाहिए। संघर्ष की दिशा यही होनी चाहिए अन्यथा फिर कुछ संभव नहीं है।
जिन लोगों ने अपने कर्तव्यों के प्रति रुचि नहीं दिखायी है। और अपने जीवन के उद्देश्य को समझने में नाकामयाब रहे हैं। चाहे फिर वो किशोर हो या विवाहित हो जिनकी चेतना अभी तक मरी हुई है और जो मानसिक मूर्छा को प्राप्त हैं, उनसे मैं कहना चाहूँगा कि आप पहले एक सपना तो देखिए, मन में एक उम्मीद तो जगाइए जो कम से कम आपको तो पसंद हो या जो आपके लिये अच्छा हो। अपने जीवन में सफलता का पेड़ उगाने से पहले, मन की जमीन में सपनों का बीज तो बोना ही पड़ेगा। फिर उसे यदि आप अविराम मेहनत और कड़े संघर्ष से सींचते गये तो उपलब्धियों भरे मान-सम्मान के मीठे फल तो आप ही खाएंगे और संसार भी आपकी अविराम मेहनत का लोहा मानेगा।
कोई सपना देखना और उसकी संभावनाओं को सच करने के बीच की प्रक्रिया थोड़ी लम्बी होती है। कुछ लोगों के कई साल बीत जाते हैं इस प्रक्रिया में, दुनिया के हर मुश्किल काम को आसान बनाने के लिये कुछ मंत्र हैं जो हर स्तर पर, हर विधा के लिये संघर्ष करने वालों को अपनाना जरूरी है। तभी संभव हो पाएगा... पहाड़ हिलाना या कण-कण से पहाड़ बनाना।
- एक छात्र की कोशिश ये होनी चाहिए कि वो अपनी पढ़ाई की शक्ति को इतना प्रखर कर ले कि इम्तहान देने वाला नहीं इम्तहान लेने वाला डर जाए। अर्थात मन, कर्म , जिह्वा, वाणी से निरंतर उसी का अभ्यास करो, आप पढ़ाई के आदी बन जाओगे तो निश्चित ही हर अच्छी से अच्छी नौकरी को आप पा सकते हो। कई सुपरिन्टेन्डेन्ट और सी.ई.ओ. का भी यही तर्क है। हमारे धर्म में साधु-सन्यासी कहते हैं कि शरीर की हर इन्द्रिय से ईश्वर का चिंतन-मनन करोगे तो ईश्वर जरूर मिल जाते हैं। उसी तरह हम भी शरीर का रोम-रोम हमारी पढ़ाई में झोंक देंगे तो कोई बड़ी सफलता तो मिल ही जाएगी ‘इस मंत्र से ईश्वर मिल सकते हैं तो सफलता क्यों नहीं।’
- कला को अपनी उपलब्धियों का आधार बनाने वाले तथा मंच से अपने जीवन को संवारने वाले कलाकार को चाहिए कि वो आइने में सबसे पहले प्रैक्टिस करें। दर्शकों-जनता को भगवान मानकर इनकी हर पसंद की पूजा करें, उनकी इच्छाओं को अपने मन में बैठाकर अभिनय करें तो उसे तालियों की गड़गडाहट जरूर सुनाई देगी। जब तक कान में किसी ताली की आवाज न पड़े तब तक मेहनत को मत रोकिए, बेचैनी को बरकरार रखिए, एक दिन हर शख्स तुम्हारी कला का दीवाना जरूर हो जाएगा। दर्शकों, श्रोताओं की ‘दो हाथ की ताली की आवाज सुनने के लिये अगर आपके पास दो हाथ नहीं भी हैं तो एक हाथ से ही मेहनत कीजिए।’ इस मंत्र के परिपालन से दुनिया का हर मंच तुम्हारी मांग करेगा, लोग तुम्हें सपनों में भी देखा करेंगे।
- एक छोटा उद्यमी और व्यापारी भी चाहे तो अपने उत्पाद को नेशनल लेबल पर ले के जा सकता है। आज जो हाथ से बनाता है कल उसे दुनिया की मशीन भी बना सकती है। और बहुत उद्यमियों ने ऐसा किया भी है। आज एक मल्टीनेशनल ब्रांड भी कल छोटा व्यापारी था। शुरुआती स्तर पर धन का सही सामंजस्य बैठाकर छोटी-छोटी रिस्क ले सकते हैं। यकीनन उनसे कुछ न कुछ तो अच्छा रिजल्ट आयेगा। शुरू के कुछ समय तक तो आप मुनाफा न भी कमाएं तो चलेगा पर नाम आपको कोने-कोने में फैलाना है। जब आपका नाम या प्रोडक्ट का नाम लोग पहचानने लगे तो फिर आप किसी बड़े डीलर से या बड़ी कम्पनी से मिल सकते हैं। इसी दौर में आप छोटे-छोटे कर्जे, लोन चुकाते रहो क्योंकि कल को आपको बड़ी कम्पनी के साथ काम करना है। लोगों में घूम घूम कर जनता का टेस्ट पता कीजिए उस पर अपना काम कीजिए। और इसी तरह निरंतर गति से आप बढ़ते रहे या पीछे मुड़कर नहीं देखा तो निश्चित ही आपके नाम को ‘ट्रेडमार्क’, आई.एस.आई., आई.एस.ओ. मिल जाएगा। और आप भी एक मुश्किल काम को आसान कर जाएंगे।
इस दुनिया में कोई चीज तब तक ही असंभव है
जब तक किसी चीज को पाने की कसक
आपके मन में न उठे।
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