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चेतना के सप्त स्वर

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15414
आईएसबीएन :978-1-61301-678-7

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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ

दर्पण


आज हमारा समाज भ्रष्टाचार की गहरी निद्रा में सो रहा है,
कहीं सामने से कही गोपनीय ढंग से भ्रष्टाचार हो रहा है।
कहीं व्यवसाय में, कहीं अधिवक्ता की राय में व्यभिचार हो रहा है,
कहीं रास्ते में, कहीं रिश्तों के वास्ते में दुराचार हो रहा है।
जो सामाजिक चिंतक सत्य का मार्ग बताए अर्पण उसे कहते हैं,
जो वास्तविकता का ज्ञान कराए दर्पण उसे कहते हैं।।१

छात्र और शिक्षक के बीच जन्म-जन्मान्तर का नाता है,
जो भूत, वर्तमान तथा भविष्य तक जाता है।
छात्र ही देश का भावी कर्णधार कहलाता है,
शिक्षक को युग का निर्माता बताया जाता है।
जो छात्र के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में,
अपने आपको अर्पित करें समर्पण उसे कहते हैं।
जो वास्तविकता का ज्ञान कराए दर्पण उसे कहते हैं।।२

चिकित्सक तथा रोगी के बीच भक्त एवं भगवान का नाता है,
चिकित्सक ही रोगी का भगवान बताया जाता है।
यदि रोगी के जीवन की परवाह न करके,
धन की सौदेबाजी करता तो हैवान बन जाता है।
चिकित्सक धर्म है तन-मन-धन एवं रक्तदान तक
रोगी की सेवा करो,
रोगी की अपनी पूजा एवं ईश्वर समझकर कर्तव्य करो
यदि चिकित्सक ऐसा कर जाता है,
तो रोगी का भगवान कहलाता है।
चिकित्सक रोगी हेतु खरा उतरे सत्य समर्पण इसे कहते हैं,
जो वास्तविकता का ज्ञान करायें दर्पण उसे कहते हैं।।३।।

मित्र और मित्र के बीच नाता पुराना है,
मित्रता के रिश्ते को जानता जमाना है।
एक मित्र अपने मित्र को गलत रास्ते से हटाकर,
सही रास्ता दिखाता है वही सच्चा मित्र कहलाता है।
अपने एवं मित्र के बीच भेद नहीं जानता है,
मित्र के सुख और दुःख में सहयोगी अपने आपको मानता है।
मित्र अपने मित्र के अवगुणों को कांटे की तरह निकालकर
सामने डाल दें सत्यार्पण इसे कहते हैं,
जो वास्तविकता का ज्ञान कराए दर्पण उसके कहते हैं।।४

जो व्यक्ति भारत को अपना देश मानता
अपने कर्तव्य को जानता,
आलस्य छोड़ काम में जुट जाता है
पड़ोसी को अपना भाई मानता है।
जन-जन को अपने गले लगाता है,
भ्रष्टाचार के अन्धकार को काटकर प्रकाश की पुंज लाता है,
सच्चा देशार्पण उसे कहते हैं।
जो वास्तविकता का ज्ञान कराये दर्पण उसको कहते हैं।।५

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