नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
तृष्णा
रूप मारे हुए यह नयन बावरे
प्रेम पर है नियति का नियंत्रण नहीं।
मन भटकता फिरा द्रोण सुत की तरह,
है जिसे शान्ति की छाँव तक भी नहीं।।१
तितलियों ने सुमन से कहा काम में,
रंग-रूपों का क्या समाधान है?
पायलों ने कहा सुन जरा बावरी!
रंग तो रूप का एक परिधान है।।२
कृष्ण बन कर जिये, तो न राधा मिली,
अब मिली राधिका कृष्ण जब हम नहीं।
कोटि उपमान हो, पर प्रयोजन रहित,
एक उपमा अगर है, विदग्धा विरत।।३
प्रेम उन्मूलन, तो रूप प्रतिवन्ध्य है,
वासना में प्रणय कामना अनवरत।
प्रेम की नव त्रिपथगा वही चित्त में,
मोक्ष की किन्तु सम्व्यक्ति कुछ भी नहीं।।४
मार्ग में यदि मिल गयीं मुझे तुम कहीं,
पंथ की धूल से राग हो जायेगा।
मत्स्य गंधा बनो शान्तनु की सही,
सत्य ही दिव्य अनुराग हो जायेगा।।५
सत्य का सुपरिधि से न च्युत हो सका
लक्ष्य के प्राप्ति की कामना भी नहीं।
रूप मारे हुए यह नयन बावरे,
प्रेम पर है नियति का नियंत्रण नहीं।।६
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