नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
|
0 5 पाठक हैं |
डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
|
भारतीय कवितायें
पत्थर बोल रहे शहरों में...
गगन चूमती अभिलाषायें,
कुन्ठित तृष्णाओं की प्रतिध्वनि है।
पत्थर बोल रहे शहरों में,
सहमा सहमा सा जीवन है।१
असामयिक अब राम-कृष्ण हैं,
ईसा, गौतम व्यर्थ हो रहे।
गीता, बाईबिल और कुरान के,
व्यर्थ ही सारे अर्थ हो रहे।।२
कौन सुन रहा इनकी बानी,
कान हमारे कहीं और लगे हैं।
आँखों में है धुंधली छाया,
ध्यान हमारे कहीं और लगे हैं।।३
वेष और परिवेष बदलता
धीरे-धीरे देश बदलता।
आने वाले हर नये वर्ष में
बापू का संदेश बदलता।४
कलयुग के इस कोलाहल में,
मछली रहती जैसे जल में।
मगर, मगर का डर रहता है,
फिर भी धैर्य बना रहता है।।५
आशाओं को हृदय संजोये,
हँसती जाती रोये-रोये।
मिल जाता 'प्रकाश' सिंधु जब,
जीवन तब परिपूरण होये।।६
गगन चूमती अभिलाषायें,
कुन्ठित तृष्णाओं की प्रतिध्वनि है।
* *
|