नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
प्रकृति का उपहार (प्रसन्नता)
मुस्कराने वाला सदा मंजिल को पायेगा।
श्रम करेगा वह थकान भूल जायेगा।।
दीपक जला के घर-घर सम्मान पायेगा।
उदास रहने वाला न विकास पायेगा।।
तुम पथिक हो पथ के काँटे हटाइये।
भूल जाइये कष्ट को मुस्कराइये।।१
अहम् भाव मान कर क्रोध ना करो,
क्रोध छोड़ दीजिये चेतना भरो।
नई शक्ति आयेगी विश्वास यह करो,
निराश जगत छोड़ दो आश ही धरो।
आश ही है जिन्दगी, विकास पाइये।
भूल जाइये कष्ट को मुस्कराइये।।२
कहते थे जिसे अंगुलमाल,
हिंसा का था एक सवाल।
गौतम ने देखा मुस्काया,
अचानक भेद समझ में आया।
बोला हे नाथ! क्षमा कीजिये गले लगाइये।
गौतम बोले भूल जाइये कष्ट को मुस्कराइये।।३
जहाँ क्रूरता ही क्रूरता थी, प्रेम छा गया,
जाग गया ज्ञान 'प्रकाश' आ गया।
समझ अर्थ प्रेम का फिर बदल गया,
दस्यु कार्य छोड़कर भक्त बन गया।
गौतम बोले मुस्करा के शरण में आइये।
भूल जाइये कष्ट को मुस्कराइये।।४
सारी अराजकता को, तत्काल छोड़ दो,
क्रोध को विरोध दो, लोभ बन्धन तोड़ दो।
भेद-भाव सभी हटाकर, प्रेम राह जोड़ दो,
न्याय-न्याय मानकर, अन्याय को मरोड़ दो।
आज से अब आप नया राग गाइये।
भूल जाइये कष्ट को मुस्कराइये।।५
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