नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
|
0 5 पाठक हैं |
डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
|
भारतीय कवितायें
आज देश को अनेकों जय प्रकाश चाहिये
निरीह निरक्षरों को नया आकाश चाहिये।
अंधकार छांट कर नया प्रकाश चाहिये।।
ज्ञान का आधार अक्षर ज्ञान है।
ज्ञान का रहा सदा जगत में मान है
ज्ञान का लक्ष्य भी सदैव ज्ञान दान है
ज्ञान का जो दान दे वही बने महान है।
प्रबुद्ध साक्षरों को जाना उनके पास चाहिये।
जगत गुरु को आज फिर स्वयम् प्रकाश चाहिये।।
मानते हैं यदि इसको आप
निरक्षरता जग का अभिशाप
समर्पित हो जाये यदि आप
जगत का मिट जाये संताप
आर्थिक विकास के साथ ही, बौद्धिक विकास चाहिये
आज देश को अनेक, जय प्रकाश चाहिये।।
मिल जुल कर हम साथ आपको यह संकल्प उठायेंगे।
अज्ञान अविद्या के बंधन को जड़ से काट गिरायेंगे।।
पूर्ण साक्षरता के सपने को हम साकार बनायेंगे।
गिरवी पड़े अगूठों को फिर उनके घर पहुँचायेंगे।।
समग्र विकसित राष्ट्र हेतु आगे बढ़ के आइये।
आज देश को अनेकों जय प्रकाश चाहिये।।
* *
|