लोगों की राय
नई पुस्तकें >>
चेतना के सप्त स्वर
चेतना के सप्त स्वर
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
|
पुस्तक क्रमांक : 15414
|
आईएसबीएन :978-1-61301-678-7 |
 |
 |
 |
|
0
5 पाठक हैं
|
डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
पतझड़
पतझड़ से तुम ना घबड़ाना,
पतझड़ एक किनारा।
पतइड़ से ही आरम्भ हुआ है,
नव युग का नया सहारा।।१
नियम प्रकृति का यही रहा है,
पहले आती सदा निशा।
आता प्रभात है खुशियाँ लेकर,
चमकाता सम्पूर्ण दिशा।।२
निशा सुन्दरी के आने पर,
धैर्य कभी तुम ना खोना।
अटल रहो कर्तव्य मार्ग पर,
निष्क्रिय होकर ना सोना।।३
रजनी प्रवाह को बल देती है,
नव युग के फैलाने का।
पतझड़ भी होता सुख-दाई
फिर नवजीवन पाने का।।४
रजनी प्रवाह की धारा है,
खर्राटे भर जो सोता है।
रजनी रहती जीवन भर।
वह भाग्य-भाग्य कह रोता है।।५
मैं कहता हूँ भौरों से,
बतलाओ अनुभव औरों से।
जीवन में पतझड़ हर दम आते हैं।
क्या क्या अनुभव दे जाते हैं?६
जब बगिया में पतझड़ होता है,
भौरा दल कभी नहीं रोता है।
बगिया छोड़ नहीं जाता है।
मेहनत का ही फल खाता है। १७
बगिया की रज-खोज-खोज
वह मोती पाकर मुस्काता है।
खुद प्रसन्न रह कर वह
औरों को मीठे गीत सुनाता है।।८
तुम सदा-सदा मुस्काते हो,
मधुमास के गीत सुनाते हो।
हे प्राणों से प्यारे हृदय अंग।
रहना तुम मेरे सदा संग।।९
हम बहा पसीना निज तन का,
मधुमास को पास बुलायेंगे।
'प्रकाश' रहेगा जीवन भर,
फिर मन्द मन्द मुस्कायेंगे।।१०
* *
...Prev | Next...
पुस्तक का नाम
चेतना के सप्त स्वर
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai