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चेतना के सप्त स्वर
चेतना के सप्त स्वर
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 15414
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आईएसबीएन :978-1-61301-678-7 |
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
जब ऋतु बसन्त की आती है
जब ऋतु बसन्त की आती है,
सूरज- थोड़ा गरमाता है।
सब पात पुराने झर जाते
फिर समय सुहाना आता है।।१
कवि और प्रबुद्ध लिखा करते,
मौसम बसन्त की महिमा को।
ऋतु राज बता करके उसकी
वह सदा बढ़ाते गरिमा को।।२
पर सूनी गोदें उजड़ी मांगें,
कैसे बसन्त का गान करें?
जिनके आंचल की छाँव जली
वह कैसे मधुरस पान करें।।३.
जहरीली हवा बसन्ती जो,
पंचनद प्रदेश से आती है।
पल्लव' नवीन प्राचीन तो क्या
तरु तक को ही खा जाती है।।४
कश्मीर और पंजाब असम,
हो चुकी परिस्थिति महाविषम।
बारूद भड़कता सड़कों पर,
गोष्ठियां बसन्ती रचते हम।।५
शैशव किशोर अरु वृद्धाधिक,
वह भेद नहीं रख पाती है।
प्रलयाग्नि बनी आँधी प्रचण्ड,
सर्वस्व भस्म कर जाती है।।६
धिक्कार हमारी कलमों को,
फेंको दवात तोड़ो कलमें।
नवनीत नहीं मिल सकता है,
कितना भी मन्थन हो जल में।।७
कलमों का अब काम नहीं है,
करना अब आराम नहीं।
तान्डव नृत्य हो भारत में,
हो हर-हर बम-बम का महोच्चार ।।८
हम बसन्त मनायें एक बार
फिर बसन्त मनायें एक बार
* *
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पुस्तक का नाम
चेतना के सप्त स्वर
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