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काल का प्रहार

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : गंगा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15412
आईएसबीएन :000

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आशापूर्णा देवी का एक श्रेष्ठ उपन्यास

10

पर इतनी खुबसूरत दलूमौसी का ब्याह क्यों नहीं हो रहा था? निमन्त्रणांक्षा करने जाती थी तो लोग उम्र, गोत्र की पूछताछ करते ही थे।

फिर भी परिवार के सदस्यों की उदासी का कारण था उनका वैधव्य। योग जो सोलह बरस की उम्र में बताया गया था। अतएवं उस उम्र को पार किये बिना ब्याह देना अनुचित था। और बड़ी को बिठाकर या समान उम्र वाली बुआ का ब्याह नहीं हों रहा तो उन्हीं की उम्र वाली भतीजियों का ब्याह भी-देना निर्लज्जता की बात हो जाती; तभी घर की सभी लड़कियों की उम्र कम होती जा रही थी।

सिर्फ दलूमौसी को ही दो ढाई बरस से तेरह के झूले में नहीं झूलना पड़ा बाकी लड़कियों का भी यही हाल था।

ऐसी अवस्था में भी जन्मपत्री, कोष्ठी, राशि, गन आदि लेकर धूम और राजयोग विचार कर ब्याह की बात चल रही थी। जो भी हो दलूमौसी को वैधव्य योग ही से बचाया जा रहा था पर उस खाते पर अंकित उत्सर्गपत्र जो गुलाब की तस्वीर पर था सब गड़बड़ कर दिया।

नये दादा सहसा एक दिन वीरता से घोषणा करने आये-दीदी, बड़े भैया एक घटकी पकड़ लाया हैं। सुना है उसके पास काफी पते है, जो करना हो करवा लो।

सुन कर ऐसा लगा जैसे मिस्त्री ले आया हूँ। उससे जो काम करवाना है करवा लो।

सबके ऊपर बिजली गिरी। केवल दलूमौसी पर ही नहीं, दीदी बड़े भैया सबके ऊपर। धोंता यानि नये दादा के मुंह पर किसी की नहीं चलती थी, उस दल घटकी का आगमन किसी को भी ना सुहाया।

बड़े परिवार में एक प्राणी अपने गुणों के द्वारा प्रधान पद ग्रहण कर लेता है, यह भी एक अजीब रहस्यमय प्रश्न है? नये दादा भी ऐसे ही एक रहस्य थे, दूसरी रहस्यवती मझली दादी, हाँ बुआ दादी को छोड़ जो नैवेद्य के सबसे उच्च स्थल पर विराजमान थी।

इधर इस महल में भी बज्र निनाद। दलूमौसी ने सखीयों के समूह के सामने घोषणा की, मैं उसके अलावा किसी से ब्याह नहीं करूंगी।

सुन कर सखियाँ तो आसमान से गिरीं। उसे छोड़ कर ब्याह नहीं करेगी? तू क्या ब्याह करने की मालकिन है? दलूमौसी ने अपनी घोषणा जोरदार की। कर्ता नहीं तो मैं अपने प्राण की कर्ता तो हूँ। विष नहीं, रस्सी नहीं, तेल, देशलाई? सुनकर हम सब वहीं के वही ढेर हो गये थे।

विष है या कहाँ है पता नहीं, रस्सी तो है पर झूलने लायक जगह, पर मिट्टी का तेल, दियासलाई वह तो हाथ के अन्दर। मिट्टी का तेल सीढ़ी के नीचे टीन में, रसोई के चूल्हे के पास बोतल में भरा हैं।

दियासलाई तो चाची, दादाओं के जेबों में भरे हैं। जिसे पाना मुश्किल काम ना था।

चीख कर बोली ओ दलूमौसी-ऐसी दुर्बुद्धि दिमाग से निकाल दो। मैं भी मर जाऊँगी। पता तो है, बाल्यप्रणय में अभिशाप रहता है।

हैं तुझे किसने बताया? सारी यन्त्रणा के बीच जो समाज व्यवस्था के है। मैं भी साफ कहे देती हूँ उससे ब्याह करूंगी या मरूंगी।

यह दलूमौसी थी या कोई-झाँसी की रानी, अग्मिशिखा।

अगले दिन एक अद्भुत आकस्मिक घटना घटी। सुबह मझले दादा सबको बुला कर पूछ रहे थे-कल रात तुम लोगों ने कुछ सुना-

क्या-क्या कुछ तो-।

अजीब बात है। कुछ भी नहीं सुना। छत पर चलने की आवाज। सब एक दूसरे का चेहर देख रहे थे। सभी छत के तले थे पर ऊपर की घटना तो ना जान पाये।

कब किस प्रहर में।

प्रथम प्रहर में।

मझले दादा गम्भीर भाव से बोले, मैं तब तक जागा हुआ था, नींद नहीं आ रही थी। लगा छत पर कोई घूम रहा है, पुराना छत-जोरों की आवाजें आ रहीं थी चलने की।

बुआ दादी--और अरे ऐसा होता हैं। रात के बीच में लगने लगता है। छत पर कोई जोरों से चल रहा है। कोई कंचे फेंक रहा है, ठकठाक कर ठोक-पीट रहा है। असल में दिन भर हो धूप से परेशान।

दीदी-दया करके अलतू-फालतू बातें कम करो। साफ सुनाई दिया-छत के इधर से इधर कोई चल रहा है। आ रहा है, जा रहा है, कमरे की खिड़की में छाया। कुछ फट से उतर गया, एक बार, दो बार, तीन बार।

हाय भगवान सर्वनाश ! छत की नाली से चोर-उचक्का नहीं चढ़ा?

आह दीदी ! पूरी बात बताने तो दो। वह सब देख डर के मारे घबड़ा कर तीन पैर वाले मेज को लेकर बैठा बड़ी दीदी बोलीं-तुम्हारे पालतू भूत को बुलाया? बुलाना ही था। अनजानी अपदेवता घर में आना-जाना तो नहीं कर रहा। भला हो जो बुलाया था। बता कर गया घर में दुष्ट आत्मा की छाया है, बूढ़े को सावधानी से रखना।''

मझले दादा ने बड़ा-सा फटा कागज दिखाया। जिस पर पेन्सिल के असंख्य काट-कूट जिससे किसी प्रकार सावधान और बूढ़ी दो शब्द अविष्कृत हो पाये।

मझली दादी तो थी ही, बूढ़े की माँ समेत सबका मुँह सूख कर काँटा हो गया।

घर में दुष्ट आत्मा का आविर्शाव? और बूढे को ही सावधान क्यों? बुआ दादी कृष्णभामिनी देवी ही अनायास बोल पड़ीं, घर में इतने सारे लड़के हैं पर बूढ़े पर ही नजर क्यों? जो कहा, वही बता रहा हूँ, यह मेरी सपने की खुमारी नहीं, यह तो कागज पर लिखी प्रमाणिक बात है।

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