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अधूरे सपने

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : गंगा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15404
आईएसबीएन :81-903874-2-1

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इस मिट्टी की गुड़िया से मेरा मन ऊब गया था, मेरा वुभुक्ष मन जो एक सम्पूर्ण मर्द की तरह ऐसी रमणी की तलाश करता जो उसके शरीर के दाह को मिटा सके...

22

मैं भी हँसते-हँसते बोला-अगर मैं गोद लूं। मुझे भी तो लोग अमीर ही समझते हैं।

'आप।'

कावेरी की आंखों के सामने तो स्वर्गलोक के दरवाजे खुल गये या उसके हाथों अलादीन का प्रदीप लग गया हो। तभी वह खुशी से झूम उठी। आप लेंगे। अरे वाह!

फिर थोड़ी बुझ गई-मैं तो ईसाई हूं।

मैं हँसने लगा-तो क्या इतने दिनों तक तुम्हारे हाथ से खाता रहा और तुमने मुझे जीवनदान दिया। तुम्हें ही ईसाई कर कर छोटा करूंगा। मैं ही तुम्हें गोद ले लेता हूं।

वह तब भी संदेह से भर कर बोली-आप मजाक कर रहे हैं?

जरा भी नहीं। देखस ही तो रही हो मुझे नुक्सान नहीं फायदा-ही-फायदा है। हमेशा तुम्हारी सेवा मिलेगी, मुझे मजूरी भी नहीं देनी होगी। हां, या नहीं?

मेरी हास्य रस से उसके सरल चेहरे पर जो सेविका के शुभ्र कपड़े से घिरा था एक चमक पैदा हो गई। उसकी नीली आंखें शीशे की तरह जगमगाने लगीं-मुझे भी मजा आ रहा था।

मर्जी के प्रश्न पर वह खुशी के मारे चीख उठी-क्यों? पैसा तो मुझे फ्लैट, खाना, कपड़ा इन सबके लिए चाहिए था। मुझे रहने दें, खाना दें, कपड़ा दें। मुझे पैसे की जरूरत क्यों होगी? मैं भी कम नहीं था उसने प्रश्न किया।

वह तो ठीक है पर मैं तो गोद लेकर हमेशा के लिए निश्चिन्त होने के दिलासे में रहूं और बाद में तुम्हें कोई आकर मांगे?

क्यों-और कोई क्यों?

कावेरी भी उत्तेजित थी-आपके पास इतनी किताबें हैं, इतना सुन्दर घर है, आप भी इतने अच्छे हैं, आपके पास से चली क्यों जाऊंगी?

वाह वह क्या कोई बता सकता है? तुम्हारा अगर प्रेमी तुम्हें ब्याह कर मुझसे दूर ले गया?

अभी नहीं। मैं ब्याह करूंगी ही नहीं। वह अस्थिरता से इधर-उधर टहलने लगी।

और अचानक मेरे बिल्कुल करीब आकर मेरे हाथ पर अपना हाथ रखकर धीमे से बोली, ''इससे तो यही अच्छा है आप मुझसे शादी कर लीजिये फिर तो किसी और के मुझे यहां से ले जाने का सवाल ही नहीं रहेगा।''

क्या विश्वास नहीं हो रहा? सोचते होंगे मैं मनगढन्त किस्सा सुना रहा हूं।

नहीं मैं बनावट में विश्वास नहीं करता। जो सच है वही बयान कर रहा हूं।

मैंने कहा-इस रोगी वृद्ध से अपने को बांध कर अपना जीवन काहे को बर्बाद करोगी?

उससे क्या? मुझे तो नर्सिंग आती है। अपनी सेवा से आपको पहले सा बना दूंगी। पर उस उम्र को तो काट-छांट नहीं सकता।

वह भी हँसी-उम्र का हिसाब मेरे लिए नई बात नहीं है। मेरे पिता से मां बीस बरस छोटी थीं, मां को तो इसका दुख ना था। मां पिताजी को प्यार करतीं थीं।

मुझे उसके सरल स्वभाव ने मोह लिया।

मैं सोचने लगा कावेरी जैसी लड़की मेरी जीवन-संगिनी बनेगी यह क्या कम लोभनीय प्रस्ताव था?

बीमारी दूर हो चुकी थी पर कमजोरी थी उसी हालत में मेरी शादी कावेरी के साथ हो गई।

मेरे दोस्तों ने पीछे से छि:-छि: किया पर प्रकाश में आकर यही कहा-अच्छा ही किया। स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया है कि तुम्हारे पास दिन-रात एक प्रशिक्षित सेविका हर वक्त मौजूद रहनी जरूरी थी। यह तो अच्छा है। कमरे में रात को यह रहेंगी पर कोई निन्दा भी नहीं कर पायेगा। यह कहकर हँसते-हँसते वे चलते बने।

फिर भी कावेरी के पास उपहारों के ढेर लग गये। नर्स की पोशाक से दुल्हन के वेश में वह बड़ी सुन्दर लग रही थी। शादी के बाद भी परिस्थिति अपरिवर्तनीय ही रही। सिर्फ कावेरी ने नर्स की ड्रेस तथा रूमाल छोड़ कर स्वयं को नये-नये रंग में सजाती। रात को पास वाले कमरे में ना जाकर वह मेरे कमरे में एक छोटी खाट पर सोने लगी। आजकल मेरे मित्र भी अक्सर आते। कहते-लगता है पोती के साथ संसार सजा रहे हो। कावेरी हँसी से लोटपोट होती।

मुझे हँसी नहीं आती थी। मैं डॉक्टर से अनुमति लेकर शाम को गाड़ी लेकर घूमने निकल पड़ता जिससे मित्रों का आना बन्द कर सकूं।

हालांकि ड्राइवर ही गाड़ी चलाता। कावेरी को पास में बिठाकर उसे उद्दाम वेग से गाड़ी चलाकर दिखाना अब सपने में ही शामिल था। हां, घूमने का भी परिमिट कोटा था।

अगर डॉक्टर का निर्देश ना भी पालन करता पर नर्स के निर्देश के समक्ष हारना पड़ जाता। नर्स ड्राइवर को आदेश देती अब नहीं चलो।

यहीं पर कावेरी-माधवी में जमीन-आसमान का फर्क था। कावेरी को जिस पल अधिकार प्राप्ति हुई उसने उसी क्षण से अपनी महिमा से उस पर दखल कर लिया।

रजिस्ट्रार के यहां साक्षी वाले ब्याह में शायद इस अधिकार की अधिक प्रबलता रहती है शालिग्राम, अग्निदेवता एक ही पक्ष के साक्षी या सहायक होते हैं।

कावेरी काफी खुश थी। वह जो चाहती थी उसे वह मिला। वह निश्चिंत थी।

मैं उसकी अद्भुत सोच पर आश्चर्य करता। उस उम्र की लड़की अपने पति की उम्र से बेखबर रह सकती यह मेरी समझ से बाहर की बात थी। वह मेरे पास बैठती, नहलाती, खिलाती, दवाई खिलाती और यह सब प्यार के इजहार सहित ही करती। सोने से पहले शुभरात्रि कहते वक्त मेरे अंगों पर हाथ फेरकर प्यार भी करती? पर उसके बाद ही बड़ी निश्चिन्ता से सो जाती।

कभी ना तो उसमें किसी प्रकार की उत्तेजना का आभास हुआ ना ही यह लगा कि वह मेरे जैसा पति पाकर पछता रही है।

शादी वाले दिन दोस्तों के मृदुर्गुजन कोने में बज रहे थे। और भई-यह सब बड़ी चालू होती हैं, दो दिन बाद ही रोगी बूढ़ा मर-खप जायेगा। तब इस विशाल सम्पत्ति कि मालकिन बन कुछ भी कर सकेगी।

इस परिस्थिति में ऐसी बातें मन में आना ही उचित था। दूसरों के साथ ऐसा हुआ तो हम भी ऐसा सोचते। उत्तराधिकारी हीन वित्तशाली बूढ़ा-हालांकि अभी मरने की आयु ना होते हुए भी रोग से आक्रान्त, ऐसे पात्र तो बुद्धिमति लड़कियों के लिए आकर्षणीय हो ही सकते हैं। इसमें सन्देह की गुंजाइस ही नहीं थी।

पर कावेरी भिन्न प्रकार की थी। वह सच में ही सेविका साबित हुई। ऊपरी तौर पर वह चाहे कहती थी मुझे नर्सिंग अच्छा नहीं लगता पर विधाता ने उसे ऐसे गुणों से विभूषित करके भेजा था जिससे वह कल्याणी सेविका की आदर्श उदाहरण प्रतीत होती।

मेरे लिए वह नर्स, पोती, पत्नी तीनों की एक मिश्रित समन्वित रूप लेकर आई थी।

अगर मैं रात को देर तक बात करना चाहता तो वह हँस के प्यार करके कहती-ना अब सो जाओ। कहकर खुद ही सो जाती।

अगर मैं रोज एक ही प्रकार का रोगी वाला पथ्य लेने से इंकार करता तो वह हुक्म करती-खबरदार, याद रखना मैं एक दायित्वपूर्ण नर्स हूं।

नहीं वह शादी के बाद मुझे आप कहकर सम्बोधित नहीं करती थी।

विचित्र-मधुर रिश्ता हम दोनों के बीच बन गया था। उसने ही इस रिश्ते को बनाया था।

पर मैं उस मधुर से सन्तुष्ट ना था। मेरा स्वास्थ्य अच्छा होने लगा तो मेरे भीतर से उस स्वर्गीय गुलाब की इच्छा भी प्रबलतम हो गई।

मैं लगातार अपनी उम्र का हिसाब लगाता। कहां-इतने कांड कर इतने इतिहास रच कर भी मेरी उम्र बावन बरस से जरा भी अधिक ना हो पाई थी। मेरा बना क्यों सफल नहीं होगा? बेबी बोस की तरह फूल। जिसे मैं इच्छानुसार बड़ा करूंगा, जो धमकी से मुरझायेगी नहीं, किसी के धक्के की चोट से मर भी नहीं जायेगी।

और कावेरी जैसी लड़की की कोख से-मेरा दिल दिन-रात उस सौभाग्यवान शिशु की कल्पना से आच्छादित रहता। मैं जी-जान लड़ा कर सुस्वास्थ्य का अधिकारी बनना चहता।

कावेरी से मुझे शर्म आयेगी। क्यों वह क्या मेरी ब्याहता नहीं है?

उसने जानते-बूझते ही अपने से तीस-बत्तीस साल बड़े आदमी से ब्याह किया है।

जानबूझ कर किया है तो पत्नी के सारे कर्त्तव्यों का उसे पालन करना ही चाहिए। शर्म कैसी? विदेशों में तो ऐसी शादियां होती हैं। तरुणी के साथ साठ, सत्तर, अस्सी बरस के बूढ़ों का ब्याह।

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