नई पुस्तकें >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
सूर्य-पुत्र शनि
फलित ज्योतिष में विश्वास करने वाले लोग सबसे ज्यादा शनिदेव से भयभीत होते हैं। ऐसे लोगों ने शनिदेव को आतंक का पर्याय बना लिया है। जन्मकुंडली में अन्य ग्रह कितने ही अशुभ क्यों न हों किंतु शनि का नाम आते ही वे चिंतित हो उठते हैं। शनि की साढ़ेसाती आने पर तो उन लोगों की चिंता अधिक बढ़ जाती है। अकारण क्रोध, स्वास्थ्य पर कुप्रभाव, दांपत्य जीवन में कलह और तनाव होना शनिदेव का प्रभाव माना जाता है।
शनि से भयभीत रहने वाले लोगों की यह धारणा अक्षरशः सही नहीं है क्योंकि शनिदेव हमेशा अशुभ फल नहीं देते। वे मित्र ग्रहों से भी ज्यादा कल्याण करने वाले देव हैं, इसलिए शनिदेव से घबराने की जरूरत नहीं। अगर शनिदेव अशुभ स्थिति में हों तो उनके बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए संकट-मोचन का पाठ या दुर्गा सप्तशती के कवच का पाठ करें। यह शनिदेव को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम उपाय है। शनिदेव की जन्म-कथा इस प्रकार है-
भगवान सूर्य और उनकी पत्नी संज्ञा की छाया से शनिदेव का जन्म हुआ। शनि के शरीर की कांति इंद्रनीलमणि के समान है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला और शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। इनका वाहन गीध तथा लोहे का बना रथ है। इनके हाथों में धनुष-बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा हैं। शनिदेव क्रूर ग्रह माने जाते हैं किंतु ये बचपन से क्रूर नहीं हैं। इनकी दृष्टि में जो कुरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। बचपन से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे और उन्हीं के ध्यान में मग्न रहते थे।
चित्ररथ की तेजस्विनी कन्या से शनि का विवाह हुआ। एक रात वे ऋतु स्नान करके पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शनि के पास गईं किंतु शनिदेव श्रीकृष्ण के ध्यान में मग्न थे। प्रतीक्षा करते-करते पत्नी का ऋतुकाल निष्फल हो गया। इससे कुपित होकर उन्होंने शनि को शाप दे दिया कि आज से तुम जिसे देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। तभी से वे अपना सिर नीचा करके रहने लगे क्योंकि वे नहीं चाहते कि उनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि शनि ग्रह रोहिणी-शकट भेदन कर दें तो पृथ्वी पर 12 वर्ष तक घोर अकाल पड़ता है और प्राणी तड़प-तड़पकर मर जाते हैं। शनि सूर्य से 88,40,00,000 मील तथा पृथ्वी से 79,10,00,000 मील दूर हैं। सूर्य की परिक्रमा शनि 30 वर्षों में करते हैं। ये एक राशि पर ढाई वर्ष रहते हैं और बारह राशियों पर भ्रमण करने में तीस वर्ष लगते हैं।
शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। ये कारखाने में मशीनरी का काम करने वाले और मजदूरों के आश्रयदाता हैं। वे दासवृत्ति करने वालों के संरक्षक हैं। बलवान शनि सार्वजनिक प्रसिद्धि और लोकप्रियता दिलाते हैं। शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए नीलम या लोहे की अंगूठी धारण करें।
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