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हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15402
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

 

अश्विनी कुमार

अश्विनी कुमार भुवन भास्कर के पुत्र हैं। ये आयुर्वेद के परम ज्ञाता और देवताओं के वैद्य हैं। वे आयु और आरोग्य के देवता हैं। इनके द्वारा रचित 'अश्विनी कुमार संहिता' आयुर्वेद का सर्वोत्तम ग्रंथ है। अश्विनी कुमार की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है-

भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा हैं। संज्ञा अपने पति सूर्य के असह्य तेज से व्याकुल होकर अपनी छाया उनके पास छोड़कर अश्वनी (घोडी) का रूप धारण करके तप करने चली गईं। उनकी खोज में सूर्य भी अश्व का रूप रखकर वहां पहुंच गए। उनके समागम से अश्वनी का रूप धारण किए संज्ञा से दो पुत्र उत्पन्न हुए। माता के अश्वनी रूप में होने से वे दोनों 'अश्विनी कुमार' कहलाए। वैसे उनमें से एक का नाम 'नासत्य' और दूसरे का नाम 'दस्र' रखा गया था।

अश्विनी कुमारों ने दैव अथर्वण ऋषि के शिष्य दध्यंग अथर्वण ऋषि से वेदाध्ययन किया। विद्या के अभिमान में आकर एक बार अश्विनी कुमारों ने देवराज इंद्र का अपमान कर दिया। ऐसे में इंद्र ने अश्विनी कुमारों को यज्ञ-भाग से बहिष्कृत कर दिया। तब से इनको किसी भी यज्ञ में सोमरस मिलना बंद हो गया। इन्होंने नाराज होकर इंद्र का विनाश करने के लिए अपने गुरु दध्यंग ऋषि से आज्ञा मांगी। दध्यंग ऋषि ब्रह्मज्ञानी थे। उन्होंने काम-क्रोध की निंदा करते हुए अश्विनी कुमारों को अन्य उपायों से अधिकार प्राप्त करने की आज्ञा दी। तब गुरुदेव की आज्ञा से अश्विनी कुमारों ने महर्षि भृगु के पुत्र च्यवन ऋषि के फूटे नेत्र ठीक कर दिए। ऐसे में ऋषि ने इन्हें इनका अधिकार दिला दिया।

हुआ यों कि च्यवन ऋषि तप कर रहे थे। उनके शरीर पर चींटियों ने अपना अड्डा जमा लिया। वे 'बांबी' के रूप में दिखाई देने लगे। फिर एक दिन महाराज शर्याति अपने दल-बल सहित मनोरंजन करने आए। उनकी पुत्री सुकन्या टहलती हुई उधर ही पहुंच गई जहां च्यवन ऋषि तपोलीन थे। सुकन्या को मिट्टी के ढेर में दो चमकती चीजें दिखाई दीं। उसने कौतूहलवश उन्हें कांटों से बींध दिया। आंखें फूटने पर च्यवन ऋषि क्रोधित हो उठे। उनका क्रोध शांत करने के लिए राजा ने अपनी पुत्री को उनकी सेवा करने के लिए उन्हें दे दिया। सुकन्या बूढ़े एवं अंधे ऋषि की सेवा करने लगी। एक बार देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार च्यवन के आश्रम में आए। उन्होंने ऋषि को नेत्र और यौवन प्रदान किया। च्यवन ऋषि ने भी अश्विनी कुमारों को यज्ञ में भाग दिला दिया।

एक बार देवराज इंद्र ने दध्यंग ऋषि से ब्रह्म विद्या सिखाने को कहा किंतु अनधिकारी होने से ऋषि ने मना कर दिया। तब इंद्र यह धमकी देकर चले गए कि अगर किसी को ब्रह्मा विद्या सिखाई तो मैं तुम्हारा सिर उड़ा दूंगा। कुछ दिनों बाद अश्विनी कुमारों ने दध्यंग ऋषि से ब्रह्म विद्या के उपदेश का निवेदन किया। तब ऋषि ने इंद्र की धमकी की बात उन्हें बता दी।

अश्विनी कुमारों ने कहा, "हम संजीवनी विद्या के प्रभाव से कटे अंगों को जोड़कर जीवित करना जानते हैं। हम आपका सिर काटकर घोड़े के और घोडे का सिर काटकर आपके धड़ से जोड़ देते हैं। आप घोड़े के सिर से हमें ब्रह्म विद्या का उपदेश करें। जब पता चलने पर इंद्र आपका सिर काट देगा तो हम घोड़े से आपका सिर उतारकर आपके धड़ से और घोड़े का सिर घोड़े के धड़ से जोड़ देंगे। इस स्थिति में दोनों जीवित रहेंगे।"

इस प्रकार अश्विनी कुमारों ने ब्रह्म विद्या प्राप्त कर ली।

 

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