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हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15402
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

शैलपुत्री

मां दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। वृषभ स्थिता मां के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। अपने पूर्वजन्म में वे प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब उनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया। उसमें उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया किंतु शंकर जी को निमंत्रित नहीं किया।

जब सती ने सुना कि उनके पिता विशाल यज्ञ कर रहे हैं तो वे वहां जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। सती ने अपनी इच्छा शंकर जी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा, “प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ भाग भी उन्हें समर्पित किए गए हैं किंतु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया गया है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी भी प्रकार से ठीक नहीं है।''

शंकर जी के इस उपदेश से सती को प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने और माता एवं बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकर ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी।

सती ने पिता के यहां पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने उन्हें स्नेह से गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे थे।

परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत दुख पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक् भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव है। उनके पिता दक्ष ने शंकर जी के प्रति कुछ अपमानजनक शब्द भी कहे।

यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। वे अपने पति भगवान शंकर के अपमान को सह नहीं सकीं। उन्होंने अपने रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि में भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुणदुखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष का यज्ञ पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं। उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्होंने हेमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनंत हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का आरंभ होता है।

        

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