नई पुस्तकें >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
|
0 5 पाठक हैं |
’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
यतिनाथ एवं हंस
प्राचीन समय में अर्बुदाचल नामक पर्वत के पास आहुक नाम का एक भील रहता था। उसकी पत्नी का नाम आहुका था। पति-पत्नी दोनों शिवभक्त थे। वे अपने गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए अपनी दिनचर्या का अधिकांश समय शिवोपासना में व्यतीत करते थे। उस भील-दंपति का जीवन भोले भंडारी शिव की पूजा-अर्चना के लिए पूर्णतया समर्पित था।
एक दिन संध्या के समय जब भगवान भास्कर अस्ताचल की ओर बढ़ रहे। थे, तब भगवान शंकर भील की भक्ति की परीक्षा के लिए संन्यासी का वेश धारण कर उनकी कुटिया पर पहुंचे। उस समय केवल आहुका ही वहां थी। उसने संन्यासी को प्रणाम करके उनका स्वागत किया। आहुक आहार की खोज हेतु वन में गया हुआ था। लेकिन थोड़ी देर में वह कुटिया पर पहुंच गया और उसने भी घर आए संन्यासी को प्रणाम किया। संन्यासी बोले, “भील! मुझे आज की रात बिताने के लिए जगह दे दो। मैं कल प्रात:काल यहां से चला जाऊंगा।"
आहुक ने कहा, "यतिनाथ! हमारी यह झोंपड़ी छोटी है। इसमें केवल दो व्यक्ति ही रात में ठहर सकते हैं। अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है और कुछ रोशनी है। अतः आप रात बिताने के लिए किसी अन्य स्थान को तलाश लें।"
यह सुनकर आहुका बोली, “प्राणनाथ! देखिए, ये यतिनाथ हमारे अतिथि हैं। हम गृहस्थ हैं। गृहस्थ-धर्मानुसार हमें इनकी सेवा करनी चाहिए। इन्हें किसी अन्य स्थान पर जाने के लिए नहीं कहना चाहिए। अतः रात में आप दोनों झोंपड़ी में अंदर रहिए और मैं शस्त्र लेकर बाहर पहरा दूंगी।"
पत्नी की बात सुनकर आहुक ने कहा, "तुम ठीक कहती हो, हमें घर आए अतिथि का सत्कार करना चाहिए, अतः आज रात यति महाराज हमारे यहां रहेंगे। मेरे होते हुए तुम्हें बाहर पहरा देने की जरूरत नहीं है। तुम दोनों झोंपड़ी के अंदर रहना। मैं शस्त्र लेकर बाहर पहरा दूंगा।''
भोजन करने के बाद यतिनाथ और भील की पत्नी कुटिया के अंदर सो गए तथा आहुक शस्त्र लेकर बाहर पहरा देने लगा। रात के समय जंगली हिंसक पशुओं ने आहुक को अपना आहार बनाने का प्रयत्न शुरू कर दिया। वह अपनी शक्ति के अनुसार हिंसक पशुओं से बचाव करता रहा, लेकिन प्रारब्धानुसार जंगली पशु उसे मारकर खा गए।
प्रात:काल आहुका ने कुटिया से बाहर निकलकर अपने पति को मृत देखा तो वह बहुत दुखी हुई। जब यति कुटिया से बाहर निकले तो आहुक को मृत देखकर उन्होंने भीलनी से कहा, "यह सब मेरे कारण हुआ है।"
आहुका बोली, “यतिनाथ! आप दुखी मत होइए। मेरे पति की मृत्यु प्रारब्धवश हुई है। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए इन्होंने अपने प्राण त्याग दिए हैं। इनका कल्याण हुआ है। आप मेरे लिए एक चिता तैयार कर दें जिससे मैं पत्नी धर्म का पालन करते हुए अपने पति का अनुसरण कर सकें।"
आहुका की बात सुनकर संन्यासी ने उसके लिए एक चिता तैयार कर दी। ज्यों ही आहुका ने चिता में प्रवेश किया, त्यों ही भगवान शिव साक्षात अपने रूप
में उसके समक्ष प्रकट हो गए और उसकी प्रशंसा करते हुए बोले, "तुम धन्य हो आहका। मैं तुमसे अति प्रसन्न हूं। तुम इच्छानुसार वर मांगो। तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अदेय नहीं है।"
भगवान शंकर को अपने सामने देखकर और उनकी वाणी सुनकर आहुका आत्मविभोर हो गई। उसके मुख से वचन नहीं निकले। उसकी उस स्थिति को देखकर देवाधिदेव अति प्रसन्न होकर बोले, “मेरा यह यति रूप भविष्य में हंस रूप में प्रकट होगा। मेरे कारण तुम पति-पत्नी का बिछोह हुआ है, मेरा हंस रूप तुम दोनों का मिलन कराएगा। तुम्हारा पति निषध देश में राजा वीरसेन का पुत्र ‘नल' होगा और तुम विदर्भ नगर में भीमराज की पुत्री 'दमयंती' होगी। मैं हंसावतार लेकर तुम दोनों का विवाह कराऊंगा। तुम लोग राजभोग भोगने के पश्चात मोक्ष पद प्राप्त करोगे जो बड़े-बड़े योगेश्वरों के लिए भी दुर्लभ है।'' इतना कहकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए और भीलनी आहुका ने अपने पति के मार्ग का अनुसरण किया।
कालांतर में आहुक नामक भील निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र ‘नल' हुआ और निषध देश का राजा बना। उस समय नल के समान सुंदर और गुणवान व्यक्ति पृथ्वी पर नहीं था। आहुका भीलनी विदर्भ के राजा भीम की पुत्री ‘दमयंती' हुई। उस समय दमयंती के समान पृथ्वी पर कोई सुंदर और गुणवती स्त्री नहीं थी। दोनों के रूप और गुणों की चर्चा सर्वत्र होती थी।
नल और दमयंती के पूर्वजन्म के अतिथि-सत्कार जनित पुण्य एवं शिव आराधना से प्रसन्न होकर यतिनाथ भगवान शिव अपने वचन को सत्य प्रमाणित करने के लिए हंस के रूप में प्रकट हुए। हंसावतारधारी शिव मानव वाणी में कुशलता से बातें करने एवं संदेश पहुंचाने में निपुण थे। भगवान शंकर ने हंस के रूप में दमयंती को नल के और नल को दमयंती के रूप-गुण बताकर उन्हें विवाह करने की प्रेरणा दी। विदर्भराज ने दमयंती के विवाह के लिए स्वयंवर आयोजित किया। स्वयंवर में दमयंती ने नल के गले में वरमाला पहना दी और दोनों का विवाह हो गया।
भगवान शिव ही यतिनाथ के वेश में आहुक और आहुका की परीक्षा लेने गए थे। उनके कारण उनका बिछोह हुआ था, इसलिए उन्होंने उन्हें फिर मिला दिया। भोले भंडारी महादेव शीघ्र ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों को वर देने के लिए प्रसिद्ध हैं। शिव की सर्वत्र पूजा-उपासना होती है। सर्वत्र शिवालय प्रतिष्ठित हैं जहां 'हर-हर महादेव' की ध्वनि गुंजती है। कल्याणकारी भगवान शिव सबका भला करते हैं।
|