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हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15402
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

श्रीराम

त्रिलोक-विजयी राक्षसराज रावण के अत्याचार से संत्रस्त देवताओं के प्रार्थना करने पर रावण का सकुल संहार करने के लिए भगवान विष्णु ही राजा दशरथ के घर भगवान राम के रूप में अवतरित हुए। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की संक्षिप्त कथा इस प्रकार है-

अयोध्या नरेश दशरथ के तीन रानिया थीं, किंतु कोई संतान न थी। गुरु वसिष्ठ की आज्ञा से पुत्रेष्टि-यज्ञ करने पर महाराज दशरथ को चार पुत्ररत्न प्राप्त हुए-राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। राम चारों भाइयों में बड़े और गुणवान थे। जब वे किशोर हुए तो मुनि विश्वामित्र यज्ञ रक्षा के लिए राम-लक्ष्मण को अपने आश्रम में ले गए। मार्ग में राक्षसी ताड़का राम के बाण से मारी गई। रामलक्ष्मण के पहरे में मुनि का यज्ञ पूर्ण हुआ। तभी विश्वामित्र को सीता स्वयंवर का आमंत्रण मिला। राम और लक्ष्मण भी मुनि के साथ मिथिला गए।

मार्ग में गौतम पत्नी अहिल्या राम की चरण-रज का स्पर्श पाकर शापमुक्त हो गई। श्रीराम ने स्वयंवर में शिव का पिनाक धनुष तोड़कर सीता का वरण किया। चारों भाइयों का एक साथ विवाह हुआ। अयोध्या में राम के राजतिलक की तैयारियां हो रही थीं कि कैकेयी ने रंग में भंग डाल दिया। राम को सीतालक्ष्मण के साथ वन जाना पड़ा। इधर राम के वियोग में दशरथ ने प्राण त्याग दिए। पिता की अंत्येष्टि क्रिया करके भरत बड़े भाई श्री राम को मनाने चित्रकूट गए, किंतु उनकी चरण-पादुका लेकर अयोध्या लौट आए।

कुछ दिनों बाद प्रभु राम चित्रकूट से दंडकारण्य में पंचवटी पर पर्णकुटी बनाकर रहने लगे। एक दिन लंकेश रावण की बहन शूर्पणखा विचरती हुई उधर आई। श्रीराम के अद्भुत सौंदर्य को देखकर उसने मायाजाल फैलाया, परंतु उसे नकटी होकर भागना पड़ा। वह बिलखती हुई भाई खर-दूषण के पास पहुंची। वे प्रतिशोधवश सेना सहित राम से युद्ध करने के लिए आए। किंतु अकेले राम ने उन सबको मौत के घाट उतार दिया।

फिर शूर्पणखा ने रावण से गुहार की। बहन के अपमान का बदला लेने के लिए रावण ने छल से सीता का अपहरण कर लिया। राम-लक्ष्मण ने वन का चप्पा-चप्पा छान मारा, किंतु सीता का पता न चला। तभी किष्किंधा नरेश बालि के भाई सुग्रीव से मित्रता हुई। राम ने बालि का वध करके सुग्रीव को किष्किंधा के सिंहासन पर बैठाया। सुग्रीव ने सीता माता की खोज के लिए चारों दिशाओं में वानर सेना भेजी। हनुमान सीता का पता लगाकर आए। फिर क्या था, राम और रावण में घमासान युद्ध हुआ। अंत में अधर्म पर धर्म की विजय हुई।

सीता की अग्नि परीक्षा लेकर श्री राम पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे। अयोध्या में भव्य स्वागत के साथ राम का राजतिलक हुआ और राम ने रामराज्य स्थापित किया। राम जैसा प्रजावत्सल राजा पृथ्वी पर अन्य नहीं हुआ। उन्होंने जनता के मनोरंजन के लिए अपनी निर्दोष प्राणप्रिया सीता का परित्याग कर दिया किंतु रामराज्य पर कलंक नहीं लगने दिया। राम की छवि लोगों के हृदय में ऐसी अटकी हुई है कि निकाले नहीं निकलती।

वेदव्यास के अनुसार श्री राम की कथा संसार-बंधन से छुड़ाने वाली, मोह-भ्रम का नाश करने वाली और भव-सागर से तारने वाली है। राम कथा से हमें मुख्य शिक्षा यह मिलती है कि मानवता से दानवता का विनाश हो सकता है, इसलिए राम के समान व्यवहार करना चाहिए, रावण के समान नहीं।

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