नई पुस्तकें >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
कमला
‘भागवत पुराण' के आठवें स्कंध के आठवें अध्याय में कमला के उद्भव की विस्तृत कथा दी गई है। देवताओं एवं असुरों द्वारा अमृत-प्राप्ति के उद्देश्य से किए गए समुद्र-मंथन के फलस्वरूप ही इनका प्रादुर्भाव हुआ था। इन्होंने भगवान विष्णु का पति रूप में वरण किया था। महाविद्याओं में ये दसवें स्थान पर परिगणित होती हैं। भगवती कमला वैष्णवी शक्ति हैं तथा भगवान विष्णु की लीला-सहचरी हैं, अत: इनकी उपासना जगदाधार-शक्ति की उपासना है।
कमला एक रूप में समस्त भौतिक-प्राकृतिक संपत्ति की अधिष्ठात्री हैं। और दूसरे रूप में सच्चिदानंदमयी लक्ष्मी हैं जो भगवान विष्णु से अभिन्न हैं। देवता, मानव एवं दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं। इसलिए आगम और निगम-दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, सिद्ध एवं गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।
महाविद्या कमला के ध्यान में बताया गया है कि इनकी कांति सुवर्ण के समान है। हिमालय के सदृश श्वेत वर्ण के चार हाथी अपनी सूंड़ में चार सुवर्ण कलश लेकर इन्हें स्नान करा रहे हैं। ये अपनी दो भुजाओं में वर एवं अभयमुद्रा तथा दो भुजाओं में दो कमल पुष्प धारण किए हैं। इनके सिर पर सुंदर किरीट तथा तन पर रेशमी परिधान सुशोभित है। ये कमल के आसन पर आसीन हैं।
समृद्धि की प्रतीक महाविद्या कमला की उपासना स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति तथा नारी-पुत्रादि के सौख्य के लिए की जाती है। कमला को ही लक्ष्मी तथा षोडशी भी कहा जाता है। भार्गवों द्वारा पूजित होने के कारण इनका एक नाम भार्गवी है। इनकी कृपा से पृथ्वीपतित्व तथा पुरुषोत्तमत्व की प्राप्ति होती है।
भगवान शंकराचार्य द्वारा विरचित 'कनकधारा स्तोत्र' और 'श्रीसूक्त' का पाठ तथा कमलगट्टों की माला पर श्री मंत्र का जप करने से कमला की विशेष कृपा प्राप्त होती है। 'स्वतंत्र तंत्र' में कोलासुर के वध के लिए कमला का प्रादुर्भाव होना बताया गया है। वाराही तंत्र के अनुसार प्राचीन काल में ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव द्वारा पूजित होने के कारण कमला का एक नाम त्रिपुरा प्रसिद्ध हुआ। 'कालिका पुराण' में कहा गया है कि त्रिपुर शिव की भार्या होने से इन्हें ‘त्रिपुरा' कहा जाता है। शिव अपनी इच्छा से त्रिधा हो गए। उनका ऊर्ध्व भाग गौर वर्ण, चार भुजा वाला तथा चतुर्मुख ब्रह्मरूप कहलाया।
'भैरवयामल तंत्र' तथा 'शक्ति लहरी' में कमला के रूप एवं पूजा-विधान का विस्तृत वर्णन किया गया है। इनकी उपासना से समस्त सिद्धियां सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।'पुरुष सूक्त' में कमला को परम पुरुष भगवान विष्णु की पत्नी बताया गया है। अश्व, रथ और हस्ति के साथ इनका संबंध राज्य-वैभव है। पद्म में स्थित होने तथा पद्म वर्णा होने का भी संकेत श्रुति में मिलता है।
भगवच्छक्ति कमला के पांच कार्य हैं-तिरोभाव, सृष्टि, स्थिति, संहार और अनुग्रह। भगवती कमला स्वयं कहती हैं कि नित्य निर्दोष परमात्मा नारायण के सब कार्य मैं स्वयं करती है। इस प्रकार काली से लेकर कमला तक दश महाविद्याएं सृष्टि, व्यष्टि, गति, स्थिति, विस्तार, भरण-पोषण, नियंत्रण, जन्ममरण, बंधन तथा मोक्ष की अवस्था की प्रतीक हैं।
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