नई पुस्तकें >> हमारे पूज्य देवी-देवता हमारे पूज्य देवी-देवतास्वामी अवधेशानन्द गिरि
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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...
देवी खण्ड
निर्गुण-निराकार को सगुण-साकार होने के लिए महामाया का आश्रय लेना पड़ता है। यहां यह भी जान लेना आवश्यक है कि भारतीय अध्यात्म चिंतन में शक्ति और शक्तिमान में कोई अंतर नहीं स्वीकार किया गया है। दोनों एक ही हैं। सृष्टि रचना के लिए ब्रह्म ही स्वयं से माया की उत्पत्ति करता है। इसीलिए वह सृष्टि के प्रति अभिन्न निमित्तोपादन कारण है। मिट्टी और कुम्हार वह स्वयं है। मकड़ी की तरह वह खुद से जाले का निर्माण करता है और फिर उसका लय भी अपने में कर लेता है।
देखने में आया है कि अपनी संतान के प्रति मां अत्यंत संवेदनशील और ममतामयी होती है। कुपुत्रो जायेत, क्वचिदपि कुमाता न भवति अर्थात पुत्र भले ही कुपुत्र हो जाए लेकिन माता कभी भी कुमाता नहीं होती। इसीलिए सामान्य रूप से देवी, शक्ति और मातृ पूजन संसार में प्रचलित है। इस पूजन से समर्पण के फलस्वरूप जहां क्रोध सहज रूप से समाप्त हो जाता है, वहीं काम की वृत्ति भी मातृ-भाव में परिवर्तित हो जाती है। काम्य कर्मों और निष्काम उपासना अर्थात दोनों में ही 'देवी' पूजन का माहात्म्य है। प्रस्तुत है, इनमें से कुछ के रूप, स्वरूप, स्वभाव और वैभव का वर्णन-
इदं श्रेष्ठं ज्योतिषां ज्योतिरागाच्चित्रा प्रकेतो अजनिष्ट बिम्बां
यथा प्रसूता सवितुः सवायं एवा राव्युषसे योनिपारैक।
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