मूल्य रहित पुस्तकें >> उपयोगी हिंदी व्याकरण उपयोगी हिंदी व्याकरणभारतीय साहित्य संग्रह
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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
संयुक्त क्रिया
जैसा कि अभी आपने देखा है, क्रियापद के भीतर एक से अधिक क्रियाएँ भी आती हैं,
जैसे— पढ़ लिया करता हूँ। बढ़ता चला आ रहा है। उसे अब आने दिया जा सकता
है आदि। यहाँ एक क्रिया तो मुख्य होती है जैसे— कि उदाहरणों में
पढ़ना, बढ़ना, आना आदि और अन्य संयोजी जो संयोजन कर संयुक्त क्रिया
बनाती हैं, जैसे कि उदाहरणों में लेना, करना, आना, रहना, देना, जाना, सकना
आदि।
यहाँ ध्यान दें कि पढ़ लिया करता हूँ। बढ़ता चला आ रहा है, आने दिया जा
सकता है, में हूँ, है आदि होना क्रिया के काल सूचक रूप है। होना
क्रिया संयोजी क्रिया नहीं है— यह काल (रूपावली) रचना में मुख्य
क्रिया के वर्तमान/भूतकृदंती रूपों के साथ आती है और इसलिए सहायक क्रिया कही
जाती है, क्योंकि यह रूप रचना में सहायक है।
संयोजी क्रियाएँ— संयोजी क्रियाएँ मुख्य क्रिया के पक्ष, वृत्ति
वाच्य आदि की सूचना देती हैं।
(क) क्रिया की प्रक्रिया चालू है, या आरंभ हुई है आदि भाव की सूचना
देने में निम्नलिखित संयोजी क्रियाएँ मुख्य क्रिया के बाद आती हैं:
1. आरंभ द्योतक: | -ने + √ लग | लड़का पढ़ने लगा है। |
2. सातत्यद्योतक: | Ø + √ रह | लड़का पढ़ रहा है। |
3. अभ्यास द्योतक: | -ता + √ रह | लड़का पढ़ता रहता है। |
-आ + √ कर | लड़का सोया करता है। | |
4. पूर्णता द्योतक: | Ø + √ चुक | लड़का सो चुका है। |
Ø + √ रख | लड़का ने पढ़ रखा है। |
टिप्पणी: सातत्यद्योतक में √ रह वस्तुतः संयोजी क्रिया नहीं है। यह
पक्ष को सूचित करने वाला सूचक या चिह्नक है।
अभ्यासद्योतक का रह संयोजी क्रिया है।
वह दिल्ली के प्रीतमपुरा में रहता है। में मुख्य √ रह धातु क्रिया
है। इस प्रकार रहना (1) मुख्य क्रिया (2) संयोजी क्रिया और (3)
पक्षचिह्नक तीन स्थितियों में आती है।
(ख) उपरोक्त संयोजी क्रियाएँ पक्ष के द्योतन में सहयोग
देती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ संयोजी क्रियाएँ यह बताती हैं कि कर्ता को
क्रिया करने की इच्छा है या नहीं, और इच्छा न होने पर क्या उसे विवशता
वश क्रिया करनी पड़ रही है। कुछ यह भी बताती है कि कर्ता में क्रिया करने की
समर्थता शक्यता है या नहीं:
5. इच्छा द्योतक : | ना + √ चाह | मैं पढ़ना चाहता हूँ। |
6. विवशता द्योतक : | ना √ पढ़ | मुझे पढ़ना पड़ता है। |
7. शक्यता द्योतक : | Ø + √ सक | मैं अब पढ़ सकता हूँ। |
8. असमर्थता द्योतक : | ते + √ (नहीं+बन) | मुझसे पढ़ते नहीं बनता। |
Ø + √ (नहीं+पा | मैं अब पढ़ नहीं पाऊँगा। |
(ग) वाच्य द्योतक हिंदी में मुख्तया संयोजी क्रिया √ जा के सहयोग से होता है।
9. कर्म/भाव्यवाच्य द्योतक : | आ + √ जा | किताब पढ़ी जा रही है। उससे अब दौड़ा नहीं जाता। |
(घ) अनुज्ञा (अनुमति) देने में भी हिंदी में संयोजी क्रिया दे की अपेक्षा
होती है:
10. (X) अनुज्ञाद्योतक: | ना + √ दे | उसे चुपचाप पढ़ने दो। |
उपरोक्त ये सभी संयोजी क्रियाएँ अधिकांश क्रियाओं के साथ आ सकती है और ऊपर
बताए भावों का द्योतन करती हैं। ये अगले अनुच्छेद में दी गई रंजक
क्रियाओँ से भिन्न हैं, क्योंकि वे सीमित मुख्य क्रियाओं के साथ
लगती हैं तथा लगने पर मुख्यक्रिया के अर्थ में कुछ विशिष्ट अर्थ-छवि देती हैं
और इसीलिए रंजक (कुछ विशेष रंग अर्थात् अर्थ-विशिष्टता देने वाली) कही जाती
है।
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