| मूल्य रहित पुस्तकें >> उपयोगी हिंदी व्याकरण उपयोगी हिंदी व्याकरणभारतीय साहित्य संग्रह
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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
      (1) संज्ञा से संज्ञा
      
      (क) लघुतावाचक (जिससे छोटेपन अथवा प्यार-दुलार का बोध हो)
      
      — इया : डिब्बा > डिबिया, खाट > खटिया, दुख > दुखिया, बेटी >
      बिटिया
      — ई : घंटा > घंटी, पहाड़ > पहाड़ी, रस्सा > रस्सी
      — ड़ा/री : मुख > मुखड़ा, (वत्स) > बछड़ा, कोठा > कोठरी
      
      (ख) भाववाचक (इनसे भाववाचक संज्ञा बनती है)
      
      — पन/-पा : 
      
      लड़का > लड़कपन, 
      बच्चा > बचपन, 
      बूढ़ा > बुढ़ापा
      
      — ई : 
      
      चोर > चोरी, 
      खेत > खेती, 
      दोस्त > दोस्ती, 
      दुश्मन > दुश्मनी
      
      — ता/- त्व : 
      
      मनुष्य > मनुष्यत्व, 
      मानव > मानवता
      
      — आई : 
      
      पंडित > पंडिताई
      
      (ग) पेशा/ जीविकावाचक (इससे तत्संबंधी जीविका चलाने वाले का बोध
      होता है)
      
      — एरा : 
      
      साँप > सँपेरा, 
      चित्र > चितेरा
      
      — आर : 
      
      सोना > सुनार, 
      लोहा > लुहार
      
      — वाला : 
      
      इक्का > इक्केवाला, 
      टाँगा > टाँगावाला
      
      — वान : 
      
      गाड़ी > गाड़ीवान, 
      कोच > कोचवान
      
      — कार : 
      
      पल > पलकार, 
      कला > कलाकार
      
      — क : 
      
      लिपि > लिपिक, 
      लेख > लेखक
      
      — गर : 
      
      जादू > जादूगर, 
      सौदा > सौदागर
      
      — दार : 
      
      जमीं > जमींदार, 
      दुकान > दुकानदार
      
      — हारा : 
      
      लकड़ी > लकड़हारा, 
      चूड़ी > चुड़िहारा
      
      (घ) संबंधवाची : उस संज्ञा से संबंध रखनेवाला। प्रायः संतान के
      अर्थ में। प्राचीनकाल में उपत्यार्थी शब्दों का बड़ा प्रचलन था। जैसे 
 वसुदेव > वासुदेव(कृष्ण), पाण्डु पाण्डव, रघु > राघव, दशरथ >
      दाशरथि आदि। अब इन प्रत्ययों से नए शब्द नहीं बन रहे हैं।
      			
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