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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
अध्याय 13
वाक्य-रचना
निम्नलिखित अभिव्यक्तियों पर ध्यान दें:
लड़के गेंद खेल रहे हैं।
मेज पर तुम्हारी किताब रखी हुई है।
मोहन आज स्कूल नहीं जाएगा।
सबको अपनी मातृभूमि की रक्षा करनी चाहिए।
ये सब सरल वाक्य हैं और जैसा कि आपने अध्याय 10 में पढ़ा है, इनमें
से प्रत्येक के अंत में समापिका क्रिया रूप हैं। ये सभी अभिव्यक्ति की दृष्टि
से अपने में पूर्ण (स्वयंपूर्ण) और स्वतंत्र (आत्मनिर्भर) व्याकरणिक संरचना
हैं। लड़के गेंद खेल रहे हैं, का अपना स्वतंत्र स्वयं पूर्ण अर्थ
है, किंतु इसके अंश लड़के गेंद खेल रहें है पूरी अभिव्यक्ति नहीं
देते — लड़के कहने पर कोई पूर्ण सूचना नहीं मिलती, आकांक्षा
होती है कि "क्या कर रहे हैं", गेंद अकेले में कोई पूर्ण सूचनात्मक
अर्थ नहीं रखता; आकांक्षा होती है कि कौन क्या कर रहे हैं, आदि।
अर्थात् अकेले-अकेले में सदैव कुछ आकांक्षा रहती है; पूर्ण वाक्य होने पर
आकांक्षा नहीं रहती।
सरल वाक्यों के अंश अभिव्यक्ति की दृष्टि से परस्पर संगत होते हैं।
जैसे – कहें कि “लड़के किताब खेल रहे हैं।” या लड़के गेंद पढ़
रहे हैं या “बकरे गेंद खेल रहे हैं।” तो अटपटा या असंगत लगेगा,
क्योंकि ऐसा जीवन व्यवहार में होता नहीं है। इस प्रकार वाक्य के अंशों
(संरचकों) के बीच योग्यता (=संगति) होती है; योग्यता के बिना वाक्य नहीं
होता।
आकांक्षा और योग्यता की शर्त पूरी होने पर भी यदि अंश
बहुत-बहुत देर में बोले जाएँ तो कोई इन अंशों को जोड़कर वाक्य नहीं बना सकते।
अर्थ तभी निकलता है जब अंश एक समुचित समय-सीमा में ही बोले जाएँ। इस शर्त को
संनिधि (आसत्ति) कहते हैं। इस प्रकार वाक्य (सरल वाक्य) आकांक्षा
योग्यता-संनिधि वाली संरचना है।
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