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उपयोगी हिंदी व्याकरण

भारतीय साहित्य संग्रह

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 12546
आईएसबीएन :1234567890

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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक

अध्याय 11


अव्यय


पिछले चार अध्यायों में आपने संज्ञा, विशेषण, सर्वनाम और क्रिया के संबंध में जानकारी प्राप्त की। इन सब में एक समानता यह है कि प्रत्येक की रूपावलियाँ चलती हैं और एक ही शब्द वचन-लिंग-पुरुष-काल आदि के अनुसार भिन्न-भिन्न रूप लेता है। इस अध्याय में अब हम उन शब्दों के संबंध में जानकारी प्राप्त करेंगे जिनमें रूपावली नहीं चलती अर्थात् जिनका एक ही रूप बना रहता है। एक ही रूप बने रहने के कारण इन्हें अव्यय (अ-व्यय = न व्यय होता है जिसका) कहते हैं। अव्यय वे शब्द हैं, जिनमें लिंग-वचन-पुरुष-काल आदि की दृष्टि से कोई रूप परिवर्तन (=व्यय) नहीं होता है। इनके पूर्व परिचित उदाहरण है— यहाँ, कैसे, कब, और, लेकिन, में, केवल, ओह! आदि। अव्यय के निम्नलिखित पाँच भेद हैं—

1. क्रियाविशेषण
2. संबंध बोधक
3. समुच्चय बोधक
4. विस्यमादि बोधक
5. निपात

क्रियाविशेषण


क्रियाविशेषण वह अव्यय शब्द है जो क्रिया की किसी विशेषता को बताता है, जैसे— मोहन धीरे-धीरे चल रहा है में धीरे-धीरे क्रिया चलने की एक रीतिविषयक विशेषता बताता है या मोहन बिल्कुल बहुत थक गया है में बिल्कुल क्रिया थकने की मात्रा विषयक विशेषता बताता है। क्रिया के विशेषण होने के नाते इन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं। इनके चार प्रकार हैं—

1. रीतिवाचक क्रियाविशेषण
2. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
3. कालवाचक क्रियाविशेषण
4. स्थानवाचक क्रियाविशेषण

1. रीतिवाचक विशेषण: रीतिवाचक विशेषण वह क्रियाविशेषण होता है, जो क्रिया की रीति या विधि से संबंद्ध विशेषता का बोध कराता है। यह बताता है कि क्रिया कैसे या किस प्रकार से हो रही है, जैसे—

प्रथम आने के लिए मोहन तेजी से दौड़ा।
आप कहते जाइए, मैं ध्यानपूर्वक सुन रहा हूँ।
अब वह वहाँ भलीभाँति रह रहा है।

2. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण: परिमाणवाचक क्रियाविशेषण वह है जो क्रिया के परिमाण या मात्रा से संबंद्ध विशेषथा का बोध कराता है। यह बताता है कि क्रिया मात्रा में कितनी हुई, जैसे—

वह थोड़ा- बहुत/बिल्कुल/बहुत थक गया था।
मैं जरा/ थोड़ा चला ही था कि रिक्शा आ गया।
वह उतना ही खाता है, जितना कि डाक्टर ने बताया था।

3. कालवाचक क्रियाविशेषण: कालवाचक क्रियाविशेषण वह क्रियाविशेषण है जो क्रिया के काल काल से संबंद्ध विशेषता का बोध कराता है। यह तीन प्रकार का होता है—

क. कालबिंदुवाचक: आज, कल, अब, जब, अभी, कभी, सायं, प्रातः आदि।
ख. अवधिवाचक: सदैव, दिनभर, आजकल, नित्य, लगातार आदि।
ग. बारंबारतावाचक: प्रतिदिन, रोज, हर बार, बहुधा आदि।

4. स्थानवाचक क्रियाविशेषण: स्थानवाचक क्रियाविशेषण वह क्रियाविशेषण है, जो क्रिया के स्थान से संबंद्ध विशेषता का बोध कराता है। यह दो प्रकार का होता है—

क. स्थितिवाचक: आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, पास, दूर, आरपार, भीतर, बाहर, यहाँ, वहाँ, सर्वत्र आदि।

ख. दिशावाचक: इधर-उधर, दाहिने-बाएँ, ऊपर-नीचे, — की तरफ, — की ओर, — के दोनों/चारों ओर आदि।

क्रियाविशेषणों की रचना

कुछ शब्द तो अपने मूल/सरल रूप में क्रियाविशेषण होते हैं (जैसे — आज, ऊपर आदि) और कुछ शब्द प्रत्यय लगाने से या समास-रचना द्वारा क्रियाविशेषण बनते हैं (जब कि उनका मूल शब्द संज्ञा आदि होता है जैसे — अनुमानतः, अनजाने आदि)

क. मूल क्रियाविशेषण:  ये मूलरूप में क्रियाविशेषण होत हैं, जैसे — आज, अब यहाँ, इधर, नीचे आदि।

ख. योगिक क्रियाविशेषण: ये मूलरूप में संज्ञा आदि होते हैं और किसी-न-किसी प्रत्यय या निपात का सहारा लेते हैं या किसी शब्द के साथ मिलकर समास//युग्मक बनकर आते हैं। जैसे — ध्यानपूर्वक, स्वाभावतः, वस्तुतः, अनजाने, धीरे-धीरे, दिन-रात, रातभर आदि।

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