श्रंगार-विलास >> यात्रा की मस्ती यात्रा की मस्तीमस्तराम मस्त
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मस्तराम को पता चलता है कि यात्रा में भी मस्ती हो सकती है।
अभी-अभी मैं उसके कुचों से दो-चार हुआ था, और अब मैं उसके सबसे अंतरंग हिस्से
को छूने जा रहा था। किसी लड़की और लड़के के बीच, इस स्पर्श बाद कोई दूरी नहीं
रह जाती। नाभि के पास पेट से नीचे फिसलती उंगलियों का सबसे पहले सामना वहाँ के
बालों से हुआ। मेरी उंगलियों उस पूरे भाग पर फैले बालों का फुर्सत से
इधर-से-उधर फिरते हुए थोड़ी देर तक मुआयना करती रहीं। वह फिर से कसमसाने लगी
थी। हम दोनों के शरीर आपस में चिपके हुए थे और गर्मी के कारण पसीने से तर-बतर
थे। पसीने की बूँदों ने वहाँ के बालों को भी नम कर रखा था।
अचानक मेरी बीच वाली उंगली के नेतृत्व में तर्जनी और अंगूठी वाली उंगली ने
मिलकर उन बालों के बीच की जगह की ओर रुख कर लिया। आगे केवल इतना ही कहा जा सकता
है कि मेरी अब तक की जिंदगी का यह सबसे यादगार अनुभव है। वैसे तो आदमी के शरीर
का कोना-कोना अपनी पहचान रखता है, लेकिन किसी युवती के शरीर का यह हिस्सा तो
प्रकृति ने विशेष बनाया है। और यदि वह नवयुवती है, तब तो बात कुछ और ही होगी!
मैंने उंगलियों के सहारे बिना रोशनी और आँखों के प्रयोग के उससे ऐसा संबंध
स्थापित कर लिया कि संभवतः वह और मैं, दोनों ही इस अनुभव को याद रखेंगे।
परिस्थितियाँ इतनी विचित्र हैं कि मैं सोच भी नहीं सकता कि इस अनुभव को मैं
दोबारा उसके साथ कभी दोहरा पाऊँगा। हाँ, यदि ऐसा हो गया तो शायद हम दोनों इसी
क्षण को हमेशा याद करेंगे। कम-से-कम अपने बारे में तो मैं यह पक्के तौर पर कह
सकता हूँ। उसने अपने धड़ को बर्थ से थोड़ा ऊपर किया और उसके हाथों के हिलने के
ढंग से मैं समझ गया कि उसने अपनी जीन्स को कुछ नीचे खिसका दिया है, मैं समझ गया
कि उसका इरादा आखिरी मंजल तक पहुँचने का था। अगर किसी और सहयात्री ने बीच में
जागकर हल्ला कर दिया, तब की बात अलग होगी। अभी तक मेरे मन में जो भी आशंकाएँ
थी, वे खत्म हो चुकी थीं। क्या जिन्दगी है! कारण जो भी रहा हो, आज किस्मत मुझ
पर बहुत मेहरबान थी। बिन मांगे मोती मिलें, माँगे मिले न भीख।
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