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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से 2

वयस्क किस्से 2

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1215
आईएसबीएन :1234567890

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मस्तराम के कुछ और किस्से

आँटी के घर आज अचानक जोड़ा खाने का मजा लेने के बाद से उस शाम चन्दा सातवें आसमान पर पहुँच गई थी। वैसे तो रात को बिस्तर पर लेटने जाने से पहले भी उसके मन में पूरी शाम मस्ती की हिलोरें आती रहीं। लेकिन फिर भी वह रात होने पर बिस्तर पर लेट कर मन ही मन आज जो कुछ हुआ उसके बारे में ठीक से सोचने का इंतजार करती रही। क्योंकि रात के अकेले में ही वह पूरे इतमीनान से आज शाम के मजे को फिर से मन ही मन दोहरा सकती थी। बिस्तर पर लेटी हुई चन्दा कमरे की छत को देखते हुए गुदगुदे ख्यालों में खो गई। न जाने कितने दिनों से वह उत्सुकता से इस इंतजार में थी कि न जाने कब उसे यह मौका मिलेगा। आज अचानक अपने आप मिल गया।

आज शाम के पहले तो उसे गुमान तक नहीं था कि आज ही उसकी मन-माँगी मुराद यों पूरी होने वाली है। अब जब अचानक उसे इसका स्वाद मिल गया था, तब तो कहना ही क्या था! वह मन ही मन झूम रही थी। अब उसे भी सब पता चल गया था कि इस खेल में लड़के और लड़कियाँ, क्या-क्या और केसे-कैसे करते हैं। उसे यह भी पता लग गया था कि जिसे सब कुँवारी लड़कियाँ मन ही मन चाहती हैं, और पा नहीं पातीं, वह मनचाहा फल कैसा है।

बिस्तर पर लेटी हुई वह सोच रही थी कि कल वह सुनीता को पूरी बात बतायेगी, तब कितना मजा आयेगा। सुनीता तो बिलकुल जल-भुन ही जायेगी। सुनीता जरूर कहेगी कि चन्दा उसे बना रही है। आज सारे दिन विद्यालय में तो वे दोनों दिन भर साथ थीं, तब तक तो चन्दा ने इसका कोई जिक्र तक नहीं किया था। फिर एक ही दिन में अचानक इतना बड़ा काम कैसे हो गया? वह सुनीता से अधिक किस्मतवाली निकली और मजे की मुहर अपने पर लगवा ली। क्या मस्ती की बात थी!

चन्दा ने मन-ही-मन अपने सिर को झटका और कहा, "न माने तो न माने, मुझे क्या फर्क पड़ता है!" यह सोचते हुए अब रात के अंधेरे में चादर के अंदर ही उसका हाथ फिर से अपनी चड्ढी के अंदर तिकोन के मुहाने पर पहुँच गया। उसे जबरदस्त सुरसुरी हो रही थी। उसे लग रहा था कि जैसे उसे कोई बहुत ही बड़ा खजाना मिल गया था! क्यों सब लड़कियाँ इसके लिए परेशान रहती हैं, इसका सही कारण उसको आज पता चला था!

कितने मजे की बात थी कि खजाना हमेशा से ही उसके पास ही था और उसे इसका पता तक नहीं चला था। वह बड़े प्यार से अपने खजाने पर मखमली अंदाज में हाथ फेरने लग गई। उसकी दायें हाथ की उँगली पेट पर पहुँची और फिर नाभि तक पहुँची। सनसनाहट पूरे बदन में फिर से भर गई!

इसके पहले कि उसकी उँगली कुछ और आगे जाती उसे कुछ घंटों पहले आंटी और किशोर ने आज जो हरकतें की थी उनकी याद आ गई और वह लेटे ही लेटे एक बार फिर से सिहर गई। इतना कुछ थोड़ी से देर में हो गया था कि उसके दिमाग में सब कुछ उलट-पलट हो गया था। उस याद को सहेजने और अपने मन को बहलाने के लिए उसने अपना ध्यान फिर से अपने शरीर पर लगाया और उसकी उँगलियाँ आगे बढ़कर एक बार दायीं ओर सरकती हुई जाँघ और तिकोन के किनारे पर तैरती और वहाँ की चमड़ी को महसूस करती रही। नीचे तक जाने के बाद उँगली वहाँ आने लगे बालों, बल्कि रोयों के छोटे झुरमुट पर धीरे-धीरे टहलने लगी। थोड़ी देर तक इस मस्त अहसास को जी भरकर महसूस करने के बाद उसने बायें हाथ से अपनी खुद की चड्ढी बिलकुल धीरे-से अपनी खुद की नजर बचा कर नीचे खिसका दी और इस बार अपने बायें हाथ से नाभि से लेकर जाँघ और तिकोन के बीच की चमड़ी पर अपनी उँगली फिराई। आगे के ख्याल से ही उसकी हल्की सिसकारी निकल गई। अचानक निकली आवाज को उसने तुरंत दबाया तो पास में लेटी हुई छोटी बहन पिंकी कुनमुनाई। वह कुछ मिनटों तक साँस साधे लेटी रही।

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