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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


ध्यान

कैलासपीठासनमध्यसंस्थं भक्तै: सनन्दादिभिरर्च्यमानम्।
भक्तार्तिदावानलहाप्रमेयं    येदुमालिङ्गितविश्वभूषणम्।।

ध्यायेन्नित्यं  महेश   रजतगिरिनिभं   चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं   परशुमृगवराभीतिहस्तं   प्रसन्नम्।

पद्मासीनं   समन्तात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं   वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।

(शि० पु० वि० २०। ५१-५२)


जो कैलास पर्वत पर एक सुन्दर सिंहासन के मध्यभाग में विराजमान हैं, जिनके वामभाग में भगवती उमा उनसे सटकर बैठी हुई हैं, सनक-सनन्दन आदि भक्तजन जिनकी पूजा कर रहे हैं तथा जो भक्तों के दुःखरूपी दावानल को नष्ट कर देने वाले अप्रमेय-शक्तिशाली ईश्वर हैं, उन विश्वविभूषण भगवान् शिव का चिन्तन करना चाहिये। भगवान् महेश्वर का प्रतिदिन इस प्रकार ध्यान करे - उनकी अंग-कान्ति चाँदी के पर्वत की भांति गौर है। वे अपने मस्तक पर मनोहर चन्द्रमा का मुकुट धारण करते हैं। रत्नों के आभूषण धारण करने से उनका श्रीअंग और भी उद्भासित हो उठा है। उनके चार हाथों में क्रमश: परशु, मृगमुद्रा, वर एवं अभयमुद्रा सुशोभित हैं। वे सदा प्रसन्न रहते हैं। कमल के आसन पर बैठे हैं और देवतालोग चारों ओर खड़े होकर उनकी स्तुति कर रहे हैं। उन्होंने वस्त्र की जगह व्याघ्रचर्म धारण कर रखा है। वे इस विश्व के आदि हैं, बीज (कारण) रूप हैं। तथा सबका समस्त भय हर लेनेवाले हैं। उनके पाँच मुख हैं और प्रत्येक मुखमण्डल में तीन-तीन नेत्र हैं।

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