गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
विधिपूर्वक शिव की पूजा सम्पन्न करके होम आरम्भ करे। अपने गृह्यसूत्र के अनुसार सुखान्त कर्म करके अर्थात् परिसमूहन, उपलेपन, उल्लेखन, मृद-उद्धरण और अभ्युक्षण- इन पंच भू-संस्कारों के पश्चात् वेदी पर स्वाभिमुख अग्नि को स्थापित करके कुशकण्डिका के अनन्तर प्रचलित अग्नि में आज्यभागान्त आहुति देकर प्रस्तुत होम का कार्य आरम्भ करे। कपिला गाय के वीसे ग्यारह एक सौ एक अथवा एक हजार एक आहुतियाँ स्वयं ही दे अथवा विद्वान् पुरुष शिव भक्त ब्राह्मणों से एक सौ आठ आहुतियाँ दिलाये। होमकर्म समाप्त होने पर गुरु को दक्षिणा के रूप में एक गाय और बैल देने चाहिये। ईशान आदि के प्रतीकरूप जिन पाँच ब्राह्मणों का वरण किया गया हो, उनको ईशान आदि का स्वरूप ही समझे तथा आचार्य को साम्ब सदाशिव का स्वरूप माने। इसी भावना के साथ उन सब के चरण धोये और उनके चरणोदक से अपने मस्तक को सींचे। ऐसा करने से वह साधक अगणित तीर्थों में तत्काल स्नान करने का फल प्राप्त कर लेता है। उन ब्राह्मणों को भक्तिपूर्वक दशांश अन्न देना चाहिये। गुरुपत्नी को पराशक्ति मानकर उनका भी पूजन करे। ईशानादि-क्रम से उन सभी ब्राह्मणों का उत्तम अन्न से पूजन करके अपने वैभव विस्तार के अनुसार रुद्राक्ष, वस्त्र, बड़ा और पूआ आदि अर्पित करे। तदनन्तर दिक्पालादि को बलि देकर ब्राह्मणों को भरपूर भोजन कराये। इसके बाद देवेश्वर शिव से प्रार्थना करके अपना जप समाप्त करे। इस प्रकार पुरश्चरण करके मनुष्य उस मन्त्र को सिद्ध कर लेता है। फिर पाँच लाख जप करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। तदनन्तर पुन: पाँच लाख जप करने पर अतल से लेकर सत्यलोक तक चौदहों भुवनों पर क्रमश: अधिकार प्राप्त हो जाता है।
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